आर्चिस मोहन द्वारा
प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह 10 से 12 अक्टूबर तक इंडोनेशिया का राजकीय दौरा करने वाले हैं। इस दौरे भारत और इंडोनेशिया के बीच सामरिक साझेदारी गहन होगी। जिसे प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसिलो बम्बांग युद्धोयोनो ने 2005 से पाला-पोसा
है ताकि नई दिल्ली - जकार्ता संबंध इस क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक बन सकें।

इस बात की भी पूरी संभावना है कि भारत के प्रधान मंत्री की युद्धोयोनो के साथ इंडोनेशिया के राष्ट्रपति के रूप में उनकी आखिरी बैठक होगी। 'एस बी वाई', जैसा कि युद्धोयोनो को इंडोनेशिया में आमतौर पर इसी नाम से जाना जाता है, अपना दो कार्यकाल पूरा कर लेने के बाद 2014
के पूर्वार्ध में राष्ट्रपति का पद छोड़ देंगे। इंडोनेशिया में अप्रैल 2014 में नए राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है तथा उस समय तक उम्मीद है कि भारत में आम चुनाव हो जाएंगे।
इसलिए, अधूरे कार्यों, विशेष रूप से व्यापार, सुरक्षा, समुद्री तथा रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। उनके सुयोग्य नेतृत्व
में भारत और इंडोनेशिया ने 2005 में सामरिक साझेदारी करार पर हस्ताक्षर किया था। दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे के महीनों के अंदर अपनी - अपनी सरकारों का नेतृत्व ग्रहण किया था। डा. मनमोहन सिंह ने मई, 2004 में भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी, जबकि युद्धोयोनो
ने उसी साल अक्टूबर में राष्ट्रपति के चुनाव में मेगावटी सुकर्नोपुत्री को पराजित किया था।
दोनों नेताओं ने भारत - इंडोनेशिया द्विपक्षीय संबंधों की क्षमता को पहचान तथा घनिष्ट संबंधों के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मजबूती से काम किया है। प्रधान मंत्री डा. मनमोहन ने अफ्रो - एशियन बंडुंग सम्मेलन की 50वीं वर्षगांठ के लिए अप्रैल, 2005 में जकार्ता
का दौरा किया था। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो ने नवंबर, 2005 में नई दिल्ली का दौरा किया था जहां दोनों नेताओं ने सामरिक साझेदारी करार पर हस्ताक्षर किया था। सामरिक साझेदारी करार पर हस्ताक्षर होने के बाद से भारत - इंडोनेशिया द्विपक्षीय व्यापार 5 गुना
बढ़कर 2012-13 में 20 बिलियन अमरीकी डालर हो गया है। वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण द्विपक्षीय व्यापार को मुश्किल के दौर से गुजरना पड़ रहा है पंरतु उम्मीद है कि 2015 तक 25 बिलियन अमरीकी डालर के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाएगा।

प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो दोनों ने ही नई दिल्ली - जकार्ता द्विपक्षीय संबंधों को जीवंत बनाए रखने का सुनिश्चय किया है। प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने इंडोनेशिया का दो बार दौरा किया है जिसमें 2005 एवं 2011 में किए
गए दौरे शामिल हैं। इसी तरह, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो ने भी तीन बार नई दिल्ली का दौरा किया है जिसमें नवंबर, 2005 में, जनवरी, 2011 में गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि के रूप में तथा आगे चलकर दिसंबर, 2012 में आसियान - भारत संस्मारक शिखर बैठक में
भाग लेने के लिए उनके द्वारा किए गए दौरे शामिल हैं। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो की 2011 की यात्रा महत्वपूर्ण थी क्योंकि भारत और इंडोनेशिया ने उस समय सुरक्षा, व्यापार एवं निवेश, संयोजकता एवं सांस्कृतिक सहयोग पर अनेक महत्वपूर्ण करारों पर हस्ताक्षर
किया था।

वर्ष 2005 से प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति युद्धोयोनो ने उस संबंध को सुदृढ़ किया है, जो ऐतिहासिक धरातल से जुड़ा है। रामायण एवं महाभारत नामक हिंदू महाकाव्य इंडोनेशिया में आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रभाव
इंडोनेशिया की संस्कृति एवं वास्तुशिल्प पर बहुत आसानी से देखे जा सकते हैं।
बौद्ध बोरोबुदूर तथा प्राम्बनन शिव मंदिर परिसर, जिनमें से दोनों का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था, भारत एवं इंडोनेशिया के बीच तत्कालीन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं व्यापारिक संबंधों के उदाहरण हैं। बहासा में सैनिक के लिए क्षत्रिय शब्द का प्रयोग होता है।
बाद की शताब्दियों में, सौदागरों एवं मिश्नरियों द्वारा इस्लाम धर्म इंडोनेशिया ले जाया गया ताकि उस क्षेत्र में इस धर्म को सूफी रहस्यवाद का एक अनोखा मिश्रण प्रदान किया जा सके।
आज, इंडोनेशिया में विश्व की मुस्लिम आबादी का लगभग 13 प्रतिशत भाग निवास करता है, जिसकी वजह से यह पूरे विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम राष्ट्र है। मुसलमानों की 10.9 प्रतिशत आबादी के साथ भारत विश्व में मुसलमानों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।
इसके अलावा, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तथा इंडोनेशिया विश्व का तीसरा सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
भारत ने जकार्ता एवं बाली में अपने सांस्कृतिक केंद्रों तथा इंडोनेशिया के विश्वविद्यालयों में संस्कृत एवं भारतीय अध्ययन चेयर्स के माध्यम से बार - बार सांस्कृतिक आदान - प्रदान करके सांस्कृतिक संबंधों को जिंदा रखने का प्रयास किया है। पिछले दिनों भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण (ए एस आई) ने प्राम्बनन मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार किया है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना में अपने योगदान के माध्यम से परंपरागत संबंधों को नवीकृत करने के लिए जकार्ता ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया है।
आधुनिक युग में, भारत में पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो के बीच मैत्री के कारण दोनों देशों के बीच घनिष्ट मैत्री का बीच बोया गया जो आज हमें दिखायी दे रहा है। जब यह नवजात राष्ट्र डच साम्राज्यवाद को समाप्त
करने के लिए संघर्ष कर रहा था उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंडोनेशिया के उद्देश्य का भरपूर समर्थन किया था।
मार्च - अप्रैल, 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंडोनेशिया की समस्या पर विचार - विमर्श करने के लिए नई दिल्ली में पहले एशियाई संबंध सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन में पूरी एशिया के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेता इकट्ठा हुए तथा यह एशियाई एकता का
निर्माण करने की दिशा में पहला प्रयास था। बीजू पटनायक, जो आगे चलकर उड़ीसा के मुख्य मंत्री बने, ने उप राष्ट्रपति मोहम्मद हट्टा तथा प्रधान मंत्री सुल्तान सजाहरिर को डच से बचाकर नई दिल्ली लाने के लिए अपना एयरक्राफ्ट इंडोनेशिया भेजने संबंधी पंडित नेहरू के
आह्वान पर कार्रवाई की ताकि वे इस सम्मेलन में भाग ले सकें। कई साल बाद, सुकर्णो ने पटनायक को मानद भूमिपुत्र बनाया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नवजात गणतंत्र पर डच हमने पर विचार - विमर्श करने के लिए जनवरी, 1949 में इंडोनेशिया सम्मेलन का आयोजन करके 1947 की घटना को आगे बढ़ाया। ये दो सम्मेलन 1955 के बंडुंग सम्मेलन के पूर्ववर्ती सम्मेलन थे। जिसकी मेजबानी इंडोनेशिया ने की। यह
पहला अफ्रो - एशियन सम्मेलन था जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा सुकर्णो दोनों ने "एशिया की भावना" को प्रेरित किया तथा गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी।
अधिक समकालीन अवधियों में, 1991 में भारत की 'पूरब की ओर देखो नीति' का अनावरण तथा भारत के आसियान का सदस्य बन जाने ने नई दिल्ली एवं जकार्ता को अपने संबंधों को फिर से जिंदा करने में सहायता प्रदान की जिनमें उस समय व्यवधान आ गया था जब इंडोनेशिया 1965 से 1998 के
बीच सैन्य शासन के अधीन हो गया था। इंडोनेशिया आसियान के 10 सदस्य देशों में से सबसे अधिक आबादी, सबसे अधिक क्षेत्रफल तथा सबसे अधिक प्रभाव वाला देश है।
पिछले कुछ वर्षों में हमारा रक्षा और सुरक्षा सहयोग सुदृढ़ हुआ है। रक्षा मंत्री श्री ए के एंथोनी ने 2012 में इंडोनेशिया का दौरा किया था। भारत और इंडोनेशिया कोरपाट पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं, जो समुद्री मार्गों की सुरक्षा बनाए रखने तथा जलदस्युतारोधी आपरेशन
से संबंधित है। दोनों देशों ने एक प्रत्यर्पण संधि, परस्पर कानूनी सहायता संधि पर हस्ताक्षर किया है तथा सजायाफ्ता व्यक्तियों के अंतरण पर करार करने की दिशा में काम कर रहे हैं। आतंकवाद की खिलाफत, नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी तथा साइबर अपराधों में सहयोग में
वृद्धि हुई है।
दोनों देशों ने अपने समुद्री सहयोग में वृद्धि की है। इंडोनेशिया भारत का समुद्री पड़ोसी है। सुमात्रा द्वीप का सबसे पश्चिमी छोर अर्थात बंडा - असेह भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के सबसे पूर्वी छोर से मुश्किल से 90 नॉटिकल मील की दूरी पर है। दोनों ही देश
आईओआर - एआरसी पर घनिष्ट सहयोग के लिए कदम उठा रहे हैं तथा हाल ही में हिंद महासागर से जुड़े मुद्दों पर त्रिपक्षीय ट्रैक-II का आयोजन किया है। इन दोनों के अलावा, इस त्रिपक्षीय वार्ता में आस्ट्रेलिया भी शामिल है।
जहां तक व्यापार एवं आर्थिक संबंधों का प्रश्न है, इंडोनेशिया की अवसंरचना, विद्युत, कपड़ाद्व इस्पात, आटोमोटिव, खनन, बैंकिंग तथा एफ एम जी सी क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों ने काफी निवेश किया है। इंडोनेशिया की भी अनेक कंपनियों ने भारत की अवसंरचना परियोजनाओं में
निवेश किया है।
इंडोनेशिया से कच्चे पाम ऑयल का आयात करने वाला भारत सबसे बड़ा देश है तथा वहां से कोयला, खनिजों, रबड़, लुग्दी एवं कागज का आयात करता है। भारत परिष्कृत प्रेट्रोलियम उत्पादों, मक्का, वाणिज्यिक वाहनों, दूर संचार के उपकरणों, तिलहनों, पशु आहार, कपास, स्टील के
उत्पादों तथा प्लास्टिक आदि का इंडोनेशिया को निर्यात करता है। इंडोनेशिया में निवेश करने वाली भारत की प्रख्यात कंपनियां इस प्रकार है : टाटा पावर, रिलायंस, अदानी, एल एंड टी, जी एम आर, जी वी के, वीडियोकॉन, पुंज लायड, आदित्य बिरला, जिंदल स्टेनलेस स्टील, एस्सार,
टी वी एस, बजाज, बी ई एम एल, गोदरेज, बामन एंड लॉरी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया आदि।
इंडोनेशिया में भारतीय मूल के लगभग 1,00,000 इंडोनेशियन हैं जो ज्यादातर ग्रेटर जकार्ता, मेडान, सुराबाया एवं बंडुंग में रहते हैं। इंडोनेशिया में लगभग 10,000 भारतीय राष्ट्रिक रहते हैं।
परंतु गहन ऐतिहासिक संबंधों तथा साम्राज्यवाद से साथ मिलकर लड़ने संबंधी अतीत के साझे इतिहास को देखते हुए मजबूत भारत - इंडोनेशिया संबंध की प्रचुर संभावना है। जैसा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जावा में लगभग सौ साल पहले कहा था, "मैं भारत को हर जगह देखता हूँ परंतु
मुझे यह कहीं नहीं मिलता।"
आर्चिस मोहन दिल्ली आधारित पत्रकार हैं। वह
StratPost.com.में विदेश नीति संपादक हैं।
(ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)