लेखक - मनीश चंद
यह इतिहास, विरह तथा सांस्कृतिक सम्मिश्रण की कभी न समाप्त होने वाली यात्रा है। यदि भारत एवं अफ्रीका के बीच दो तरफा व्यापार इस समय तेजी से आगे बढ़ रहा है तथा 2015 तक 100 बिलियन डालर के आंकड़े को पार करने वाला है, तो यह सब सदियों पुराने संबंधों की देन है जब
कच्छ के साहसी गुजराती व्यापारियों ने अफ्रीका में मसालों का व्यापार किया तथा हजारों मील दूर स्थित हिंद महासागर के एक छोटे से द्वीप से लाभ कमाया।
जंजीबार : मसालेदार कारोबार
सदियों से भारत एवं भारत के लोगों ने जंजीबार की भावना को बढ़ावा देना जारी रखा है जिसे दर्शनीय समुद्री तटों तथा आर्कषक मसाला व्यापार के लिए अधिक जाना
जाता है। कई तरीकों से, जंजीबार, जहां काफी संख्या में भारतीय समुदाय पाया जाता है, अफ्रीका के साथ भारत की भागीदारी के मिनीएचर के रूप में उभरा है, जो व्यापार, प्रशिक्षण एवं प्रौद्योगिकी अंतरण की परिधि के चारों ओर घूमता है। जंजीबार, जो तंजानिया का एक अर्ध स्वायत्त
क्षेत्र है, के साथ भारत के बहुआयामी संबंधों का यह रंगारंग इतिहास राष्ट्रपति डा. अली मोहम्मद शईन की भारत की इस 9 दिवसीय यात्रा (1 से 9 फरवरी, 2014) की रूपरेखा तैयार करता है।(चित्र में : 2 फरवरी, 2014 को नई दिल्ली पहुंचने पर
राष्ट्रपति डा. अली मोहम्मद शईन)
उनके साथ वरिष्ठ मंत्रियों तथा हाई प्रोफाइल वाले कारोबारियों का एक शिष्टमंडल भी आ रहा है, जो उनके साथ दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बंगलौर भी जाएंगे। कारोबारी संबंधों में वृद्धि करना, क्षमता निर्माण में सहयोग तथा सांस्कृतिक आदान – प्रदान आदि डा. शईन की भारत
यात्रा के एजेंडे में सबसे ऊपर हैं।
प्रकाश का वरदान, आईटीईसी की राह
अपने प्रांत में तथा पूरे अफ्रीका में शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए बढ़ती भूख को देखते हुए इस बात में कोई अचरज नहीं है कि जंजीबार के नेता ने भारत की अपनी यात्रा की शुरूआत राजस्थान के बेयरफुट कॉलेज की यात्रा से की है, जो अफ्रीका, लैटिन अमरीका तथा प्रशांत महासागर
के द्विपीय राष्ट्रों की सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रकाश एवं उम्मीद के बीकन के रूप में उभरा है। वे तिलोनिया, राजस्थान में सोलर इंजीनियरिंग का हुनर सीखती हैं और अपने घर लौट कर दूर – दराज स्थित अपने गांवों को रोशनी प्रदान करती हैं। वापस लौट कर, जंजीबार
के नेता ने अपनी आंखों से लगभग 100 घरों को बिजली प्रदान करने के लिए सोलर लैंप के संयोजन, संस्थापन और अनुरक्षण में जंजीबार की ग्रामीण महिलाओं के हुनर एवं निपुणता को देखा है। भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग कार्यक्रम, जिसे ज्यादातर आई टी ई सी के नाम से जाना
जाता है, के अंतर्गत अपने प्रशिक्षण में उन्होंने प्रकाश का यह उपहार प्राप्त किया है जो मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी का एक प्रमुख अंग है। परिवर्तन के इस कृत्य से प्रभावित होकर जंजीबार के नेता अब अपने प्रांत में इस तरह के
प्रशिक्षण की सुविधाएं शुरू करना चाहते हैं।
(चित्र में : विदेश मंत्रालय के आई टी ई सी कार्यक्रम के तहत सबसे कम विकसित देशों से बेयरफुट सोलर ग्रैंडमदर्स ने प्रशिक्षण
प्राप्त किया तथा 8 मार्च, 2013 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया)
ज्ञान की शक्ति
एक मायने में, सोलर ग्रैंडमदर्स, जैसा कि उन्हें पुकारा जाता है, अफ्रीका के साथ भारत की विकास पर केंद्रित साझेदारी का प्रतीक बन गई हैं। प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर भारत अफ्रीका के साथ अपनी भागीदारी में मुख्य रूप से बल देता है। अफ्रीका
की अभिभावी युवा आबादी को देखते हुए यह महाद्वीप एक जनांकिकीय लाभ प्राप्त करने के लिए तैयार है तथा भारत अधिकारिता एवं बदलाव के इस प्रयास में उसे अपने साझेदार के रूप में देखता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्यों भारत ने पूरे अफ्रीका में 100 से अधिक प्रशिक्षण
संस्थान स्थापित करने का वादा किया है जिसमें कृषि, ग्रामीण विकास एवं खाद्य प्रसंस्करण से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक प्रशिक्षण, अंग्रेजी भाषा केंद्र तथा उद्यमी विकास संस्थान जैसे विविध क्षेत्र शामिल हैं। ये प्रशिक्षण संस्थान अफ्रीका के अनुवरत
पुनरूत्थान में गेम चेंजर और ज्ञान चालित समाज बनने की इसकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए तत्पर हैं। इन प्रशिक्षण संस्थानों पर प्रारंभिक कार्य पहले ही शुरू हो गया है तथा भारत उम्मीद कर रहा है कि जब तक इस साल के उत्तरार्द्ध में तीसरी भारत - अफ्रीका
मंच शिखर बैठक नई दिल्ली में आयोजित होगी तब तक इनमें से कम से कम कुछ निर्मित हो जाएंगे तथा काम करना शुरू कर देंगे। मानव संस्थान विकास पर यह फोकस 20000 से अधिक छात्रवृत्तियों से भी परिलक्षित होता है जिन्हें भारत अफ्रीकी छात्रों को प्रदान करता है। भारत में
अफ्रीका के 20000 से अधिक छात्र भी रहते हैं जिनमें से अधिकांश अपना खर्च खुद उठा रहे हैं।
प्रगतिशील भारत - अफ्रीका साझेदारी का केंद्र बिंदु विकास, समता एवं समावेशी विकास के लिए साझी खोज है। दक्षिण - दक्षिण सहयोग की भावना में तथा अफ्रीका के पुनरूत्थान में भागीदार बनने पर अपने फोकस के अनुसरण में भारत ने संसाधन समृद्ध परंतु अवसंरचना के अकाल वाले इस
महाद्वीप में अनेक विकास परियोजनाओं के लिए लगभग 8 बिलियन अमरीकी डालर के उदार ऋण (लाइन ऑफ क्रेडिट) का वचन दिया है। जैसा कि डा. मनमोहन सिंह ने कहा है, भारत 21वीं शताब्दी को एशिया एवं अफ्रीका की शताब्दी के रूप में देखना चाहता है जिसमें समावेशी भूमंडलीकरण को
बढ़ावा देने के लिए दोनों महाद्वीपों के लोग साथ मिलकर काम करेंगे।
एक नया शिखर सम्मेलन
अपने संबंध में महत्वपूर्ण उपलब्धियों का उल्लेख करने के लिए भारत और अफ्रीका ने 2008 में शिखर बैठकों की प्रक्रिया शुरू की जो बेंजुल फार्मूला के आधार
पर दोनों पक्षों के बीच उच्च स्तरीय भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण वास्तुशिल्प उपलब्ध कराता है। अब शिखर बैठक का आयोजन हर तीसरे साल किया जाता है तथा भारत एवं अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षों / शासनाध्यक्षों के एकत्र होने के लिए अफ्रीका संघ प्रतिभागी अफ्रीकी
देशों का चयन करता है। अब तक 2008 एवं 2011 में क्रमश: नई दिल्ली एवं अदिस अबाबा में आयोजित दो शिखर बैठकों ने भारत की भागीदारी की अनोखी एवं स्थायी विशेषताओं को रेखांकित है। जिसे अफ्रीका की जरूरतों, अनुरोधों एवं प्राथमिकताओं के लिए प्रत्युत्तर के रूप में प्रदर्शित
किया जाता है। अफ्रीका की प्राथमिकताओं के अनुसरण में हमने संस्थानिक क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता तथा अफ्रीका में मानव संसाधन विकास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए महत्वपूर्ण रूप से सहायता में वृद्धि करने का निर्णय लिया है। ऐसा डा. मनमोहन सिंह ने भारत
- अफ्रीका मंच की अदिस अबाबा में आयोजित शिखर बैठक में कहा था। उन्होंने रेखांकित किया कि ''विकास के हमारे अनुभवों एवं परिस्थितियों में समानता ने भारत - अफ्रीका सहयोग को एक जायज दो-तरफा रास्ता बना दिया है। यह इसकी सच्ची ताकत है तथा इसकी अनोखी विशेषता भी है।''
दो-तरफा रास्ता
वास्तव में, भारत - अफ्रीका संबंध उत्तरोत्तर दो-तरफा रास्ता बनता जा रहा है और समानताओं वाले देशों की साझेदारी बनता जा रहा है क्योंकि भारत की कहानी उत्तरोत्तर अफ्रीकी आशावाद की अबूझ कहानी को जोड़ती है। आर्थिक क्षेत्र में, व्यापार एवं निवेश को गहन करने
के लिए दोनों पक्षों की ओर से उत्साह में बोधगम्य उछाल है। उत्थानशील अफ्रीका महाद्वीप अफ्रीकी आशावाद की लहर पैदा कर रहा है तथा उम्मीद है कि इस साल इस महाद्वीप की विकास दर 6 प्रतिशत के आसपास होगी। लगभग 3 ट्रिलियन डालर के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद तथा स्वस्थ
विकास दर के साथ भारत और अफ्रीका क्षरणशील मंदी के विरूद्ध बुलवर्क के रूप में तेजी से उभर रहे हैं। इस नए कारोबारी संबंध को सुदृढ़ करते हुए भारत और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 60 बिलियन डालर के आंकड़े को पार गया है। अब दोनों पक्षों को उम्मीद है कि 2015
तक द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन डालर के आंकड़े को पार कर जाएगा।
वैश्विक साझेदारी
इस बात में आश्चर्य नहीं है कि अपनी बढ़ती आर्थिक शक्ति तथा समावेशी विश्व व्यवस्था निर्मित करने के अपने साझे विजन के साथ भारत और अफ्रीका अब सामरिक
अभिविन्यास के साथ अपने आर्थिक संबंधों को संपूरित कर रहे हैं। 2011 में आदिस अबाबा में अफ्रीका नेताओं की प्रशंसा करते हुए डा. मनमोहन सिंह ने कहा था कि ''हम विश्वास करते हैं कि वैश्विक मामलों में भागीदारी तथा अफ्रीका के विकास के लिए एक नए विजन की जरूरत है।''
पूरे दमखम के साथ उन्होंने कहा कि भारत और अफ्रीका इतिहास की सही दिशा में हैं।
लिफाफे को आगे बढ़ाते हुए भारत और अफ्रीका अनेक वैश्विक मुद्दों पर सहयोग करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं जिसमें आतंकवाद एवं जलदस्युता से संयुक्त रूप से निपटना, संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर वैश्विक मंचों में निकटता से समन्वय करना, जलवायु परिवर्तन
तथा डब्ल्यू टी ओ वार्ता में आपस में तालमेल स्थापित करना आदि शामिल हैं। आने वाले दिनों में उम्मीद की जा सकती है कि भारत और अफ्रीका अभिशासन की राजनीतिक, सुरक्षा एवं आर्थिक संस्थाओं में सुधार लाने के लिए और करीब आएंगे।
जन शक्ति
भारत और अफ्रीका जहां दो बिलियन से अधिक लोग रहते हैं तथा जहां पर सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से कुछ अर्थव्यवस्थाएं हैं, के बीच आर्थिक एवं सामरिक संबंधों का गहन होना वास्तव में उत्साहवर्धक कहानी है। परंतु इस सबके अंत में, भारत -अफ्रीका
संबंधों की स्थायी ताकत गहरी सहानुभूति, भाई-चारा तथा जन दर जन संपर्कों की भावना है। तथा यह लोकप्रिय एवं सांस्कृतिक आधार सुदृढ़ हो रहा है जिसमें 21वीं शताब्दी के इस महत्वपूर्ण राजनयिक संबंध की जीवंतता को जारी रखने की कुंजी है।
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भारत और अफ्रीका: साझी यात्रा

(मनीश चंद इंडिया राइट्स (www.indiawrites.org) के मुख्य संपादक हैं, जो एक ऑनलाइन पत्रिका एवं जर्नल है जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर केंद्रित है। उन्होंने अफ्रीका तिमाही : दो बिलियन ड्रीम्स : सेलेब्रेटरिंग इंडिया - अफ्रीका फ्रेंडशिप
का संपादन किया है और इंगेजिंग विद ए रिसर्जेंट अफ्रीका का सह-संपादन किया है)
यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।