लेखक : राजदूत भास्वती मुखर्जी
भूमिका :
- परमाणु आतंकवाद तथा गुप्त प्रसार की वजह से अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। परमाणु सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों पर विश्व के निरंतर सरोकार से भारत पूरी तरह सहमत है। भारत उस चमकदार भूमिका का स्वागत करता है जिसे परमाणु सुरक्षा शिखर
बैठक प्रक्रिया ने इस खतरे के बारे में जागरूकता बढ़ाने में तथा राष्ट्रीय कार्रवाई एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में निभाई है। भारत निरंतर इस बात को रेखांकित करता रहा है कि परमाणु सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रयासों में
आई ए ई ए की भूमिका प्रमुख है। हालांकि परमाणु सुरक्षा पर कार्रवाई का मुख्य बल प्राथमिक तौर पर राष्ट्रीय है परंतु राष्ट्रीय जिम्मेदारी द्वारा राष्ट्रीय कार्रवाई को संपूरित करने की जरूरत है। सभी राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं, जो उन्होंने की
है, का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
- तीसरी परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक 2010 में वाशिंगटन में और 2012 में सियोल में आयोजित पिछली दो शिखर बैठकों का अनुवर्तन है। विदेश मंत्री भारतीय शिष्टमंडल के नेता थे तथा उनके साथ एक उच्च स्तरीय शिष्टमंडल भी गया था जिसमें विदेश सचिव श्रीमती सुजाता सिहं शामिल
थी जो इस शिखर बैठक के लिए भारत की शेरपा थी। परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य परमाणु आतंकवाद के मुद्दे पर विश्व में जागरूकता बढ़ाना और ऐसे उपायों पर सहमत होने के लिए सरकारों को राजी करना है जो आतंकवादियों एवं अन्य गैर राज्यकर्ताओं को
संवेदनशील परमाणु सिद्धांत, सामग्री एवं प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त करने से रोकने के लिए अपेक्षित हैं। एक तरह से, परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक में आई ए ई ए के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रेरक के रूप में काम किया है।
- भारत परमाणु ऊर्जा को बिजली की अपनी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के एक आवश्यक स्रोत के रूप में देखता है। हम बंद ईंधन चक्र तथा पुन: प्रयोग के लिए पुन: प्रोसेस करने के सिद्धांत के आधार पर हम अपने तीन चरणीय परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के
लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत ने आने वाले दशकों में परमाणु ऊर्जा में भारी वृद्धि की परिकल्पना की है तथा उम्मीद है कि यह वर्तमान में 5000 मेगावाट से बढ़कर 2020 तक 20,000 मेगावाट और 2030 तक 60,000 मेगावाट पर पहुंच जाएगी।
- भारत का परमाणु कार्यक्रम उपलब्ध यूरेनियम संसाधनों की ऊर्जा क्षमता का अधिकतम उपयोग करने तथा भारत के विशाल थोरियम भंडार का उपयोग करने की दिशा में केंद्रित है। भारत के नजरिए से उपलब्ध वैश्विक यूरेनियम संसाधन बंद ईंधन चक्र दृष्टिकोण अपनाए बगैर परमाणु ऊर्जा
के प्रस्तावित विस्तार को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस तरह का दृष्टिकोण परमाणु सुरक्षा, परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन तथा परमाणु प्रसार की दुविधाओं के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समाधान की संभावना की भी पेशकश करता है।

शिखर बैठक के परिणाम :
- शिखर बैठक ने स्थिति का जायजा लिया तथा सियोल के बाद से हुई प्रगति का मूल्यांकन किया और कुछ नए उपायों पर सहमति हुई जिन्हें घोषणा पत्र में दर्शाया गया है। अनेक देशों ने अपने स्वयं के देशों में परमाणु सुरक्षा सुदृढ़ करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में
विस्तार से बताया जिसमें उनकी राष्ट्रीय प्रगति रिपोर्टों का परिचालन शामिल है। भारत की राष्ट्रीय प्रगति रिपोर्ट को भी इस शिखर बैठक के दौरान जारी किया गया तथा बड़े पैमाने पर उसका स्वागत किया गया।
- मेजबान देश नीदरलैंड की पहल पर इस शिखर बैठक की एक नवाचारी विशेषता यह थी कि परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक के भावी अभिमुखीकरण पर विचार - विमर्श में शिष्टमंडल के प्रमुखों की भूमिका में वृद्धि की गई। इसमें परिदृश्य आधारित नीति डिबेट में शासनाध्यक्षों द्वारा विचार
- विमर्श शामिल था जिसमें एक काल्पनिक परमाणु सुरक्षा संकट परिदृश्य प्रस्तुत किया गया तथा नेताओं को विकल्प चुनने तथा उन विकल्पों पर शिष्टमंडलों के प्रमुखों के एक अनौपचारिक पूर्ण सत्र में चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। परिणाम को अंतिम विज्ञप्ति
में दर्शाया गया।
भारत के परिप्रेक्ष्य से परिणाम :
- भारत के परिप्रेक्ष्य से परिणाम पूरी तरह से संतोषप्रद था1 हमारी राष्ट्रीय प्रगति रिपोर्ट की खूब सराहना की गई। हमारे प्लेनरी वक्तव्य में भारत के शिष्टमंडल के नेता अर्थात विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने इस बात को रेखांकित किया कि भारत व्यापक विनाश
के हथियारों तथा डिलीवरी के उनके साधनों के प्रसार को रोकने से संबंधित वैश्विक प्रयासों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से बिल्कुल नहीं डिगा है। भारत कभी भी संवेदनशील सामग्रियों एवं प्रौद्योगिकियों के प्रसार का स्रोत नहीं रहा है। भारत को परमाणु सुरक्षा एवं परमाणु
अप्रसार के अपने रिकार्ड पर बहुत गर्व है परंतु भारत बेपरवाह नहीं है। भारत परमाणु सुविधाओं एवं सामग्रियों की भौतिक सुरक्षा बनाए रखने एवं सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध है तथा सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार अपनी निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं को और सुदृढ़
करने के लिए तैयार है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह तथा प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था के दिशा-निर्देशों एवं सूचियों का भारत द्वारा अनुपालन इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है। चार निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं की भारत की सदस्यता से विश्व के गैर प्रसार
से जुड़े प्रयास और सुदृढ़ होंगे। भारत जिनेवा में निरस्त्रीकरण पर सम्मेलन में जीवाश्म सामग्री कटौती संधि पर वार्ता शीघ्र शुरू करने का भी समर्थन करता है।
- विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि फुकुशिमा में त्रासदी के बाद हमने अपनी सभी परमाणु सुविधाओं पर परमाणु सुरक्षा के उपायों की व्यापक पैमाने पर समीक्षा की है; हम आपातकालीन तत्परता, निगरानी तथा परमाणु दुर्घटनाओं के लिए प्रत्युत्तर को सुदृढ़ कर रहे हैं। 2012 में,
दो परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों पर आई ए ई ए प्रचालनात्मक सुरक्षा समीक्षा दल की सफल मेजबानी के पश्चात इस वर्ष हमने भारत के परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (ए ई आर बी) की एक विनियामक समीक्षा संचालित करने के लिए आई ए ई ए को आमंत्रित किया है। हम परमाणु सुरक्षा मानकों
पर आई ए ई ए आयोग, परमाणु सुरक्षा पर आई ए ई ए महानिदेशक सलाहकार समूह तथा परमाणु सुरक्षा मार्गदर्शन समिति के साथ भागीदार बने हुए हैं। हमारे विशेषज्ञ आई ए ई ए की परमाणु सुरक्षा योजनाएं तैयार करने में योगदान कर रहे हैं। हमें इस बात से बड़ी प्रसन्नता है कि आई
ए ई ए परमाणु सुरक्षा को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से सहयोग की गतिविधियों के लिए परमाणु सुरक्षा निधि में हमारे वित्तीय अंशदान का उपयोग कर रहा है। विदेश मंत्री ने परमाणु सुरक्षा पर जुलाई, 2013 में मंत्री स्तरीय सम्मेलन का आयोजन करने के लिए आई ए ई ए की प्रशंसा
की। भारत उन देशों में से एक था जिनका प्रतिनिधित्व किसी न किसी मंत्री के स्तर पर हुआ।
- उपसंहार में, विदेश मंत्री ने 2016 में वाशिंगटन में परमाणु सुरक्षा की अगली शिखर बैठक की मेजबानी करने के लिए यू एस ए के प्रस्ताव का भी स्वागत किया। विदेश मंत्री ने सुझाव दिया कि हमें अपनी अगली अंतर शिखर बैठक प्रक्रिया में उस भूमिका पर विचार करना चाहिए जिसे
आई ए ई ए वाशिंगटन के बाद एन एस एस की प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन को गति देने में निभा सकता है तथा जरूरत के अनुसार भावी शिखर बैठक कभी-कभार आयोजित करने की संभावना को बरकरार रखा जा सकता है।
उपसंहार :
- उल्लेखनीय है कि परमाणु सुरक्षा के लिए भारत कोई अजनबी नहीं है। जिस समय भारत के परमाणु विद्युत कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी उस समय भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जोरदार शब्दों में कहा था कि परमाणु ऊर्जा की स्रोत सामग्री कोई साधारण वस्तु
नहीं है और इसे सावधानी से हैंडल करने की जरूरत है। 1957 में भारत आई ए ई ए का एक संस्थापक सदस्य बना तथा चार दशक से अधिक समय तक अपनी असैन्य परमाणु सुविधाओं पर आई ए ई ए के सुरक्षोपायों को लागू किया है। वाशिंगटन में 2010 की परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक के अनुवर्तन
के रूप में प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने परमाणु सुरक्षा पर उत्कृष्टता के एक केंद्र के रूप में वैश्विक परमाणु ऊर्जा साझेदारी केंद्र (जी सी एन ई पी) स्थापित करने की घोषणा की थी। जैसा कि प्रधान मंत्री जी ने कहा है, यह केंद्र, जो स्थापित हो रहा है, अनुसंधान
का संचालन करेगा और डिजाइन सिस्टम विकसित करेगा जो सैद्धांतिक रूप से सुरक्षित, प्रसाररोधी एवं संपोषणीय होंगे। इस केंद्र की आधारशिला 3 जनवरी, 2014 को हरियाणा के खेरी जस्सौर में रखी गई तथा कुछ गतिविधियां पहले ही शुरू हो चुकी हैं।
- इसलिए, भारत के परमाणु कार्यक्रम एवं इसकी विशेषज्ञता, सुरक्षित एवं निरापद स्थितियों में असैन्य परमाणु ऊर्जा के विस्तार में इसके हित तथा राज्य प्रायोजित आतंकवाद के साथ इसके अनुभव को देखते हुए परमाणु सुरक्षा को सुदृढ़ करने से संबंधित वर्तमान प्रयासों में
भारत की सक्रिय भागीदारी स्वाभाविक है। परमाणु अप्रसार पर भारत का रिकार्ड अचूक है तथा भारत की परमाणु प्रौद्योगिकी एवं सामग्री कभी भी एवं कहीं भी लीक नहीं हुई है, एशिया में प्रचलित प्रसार के कुछ मामलों के विपरीत जिसमें सरकारें एवं राज्य के कर्ता शामिल हैं।
इन सबके बावजूद भारत परमाणु सुरक्षा पर उदासीन नहीं है तथा इसे और भी सुदृढ़ करने के लिए कदम उठाया है जिसमें आई ए ई ए एवं परमाणु सुरक्षा शिखर बैठक प्रक्रिया के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल है। हम भविष्य में भी इस प्रकार का सहयोग जारी रखेंगे। नियोजित
वैश्विक परमाणु ऊर्जा साझेदारी केंद्र (जी सी एन ई पी) इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ भारत में परमाणु सुरक्षा के विभिन्न आयामों को सुदृढ़ करने के लिए आदर्श प्लेटफार्म प्रदान करेगा।