लेखक : पल्लव बागला
देश को अपनी स्वयं की उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली प्रदान करने के लिए देश के प्रयासों में तथा इसके पहले इंटर - प्लेनेटरी प्रयास में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के लिए यह सप्ताह बहुत अच्छा रहा।
मंगल के लिए भारत के मिशन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मील पत्थर को पार कर लिया गया क्योंकि 9 अप्रैल, 2014 को सवेरे 09.50 बजे इसने अपनी श्रमसाध्य यात्रा की आधी दूरी तय कर ली। 5 नवम्बर, 2013 को लांच किए गए इस उपग्रह ने आज की तिथि तक कोइ 337.5 मिलियन किलोमीटर
की दूरी तय कर ली है तथा उम्मीद है कि 26 सितम्बर, 2014 को यह रेड प्लेनेट पर अपना कदम रखेगा और भारत की ओर से अब तक का पहला ऐसा उपग्रह बनेगा जिसने सबसे अधिक दूरी तय की है।
मंगल यान नामक इस उपग्रह का निर्माण मात्र 4500 मिलियन रूपये (लगभग 70 मिलियन अमरीकी डॉलर) की लागत से किया गया तथा यह मानव जाति द्वारा विचारित अब तक का सबसे सस्ता इंटर प्लेनेटरी मिशन है। मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह पर जीवन के निशान ढूंढ़ना तथा मंगल तक पहुंचने
में अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी चीन को मात देने की भारत की गहरी इच्छा को पूरा करना है। मंगल पर पहुंचने में अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी चीन को मात देने संबंधी भारत की इच्छा सही पथ पर प्रतीत होती है क्योंकि प्लेटेनरी ताकतों के स्वरूप तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान
संगठन (इसरो) द्वारा सटीक आरबिट इंजेक्शन की वजह से वास्तव में इसे मंगल के करीब पहुंचने से कोई भी नहीं रोक सकता।
बंगलौर में इसरो केंद्र में भारत के मंगल आरबिटर मिशन पर काम करते हुए वैज्ञानिक
कोई 500 वैज्ञानिकों ने 15 माह के रिकार्ड समय में इस यान को तैयार करने में दिन और रात एक कर दिया। सही मायने में मंगल की यात्रा बहुत कठिन है। आज की तिथि तक कुल 51 मिशन लांच किए गए हैं जिनमें से 27 असफल हो गए हैं। यदि भारत मंगल पर पहुंचता है तो अपनी पहली उड़ान
पर इसे हासिल करने वाला भारत पहला देश होगा। आज की तिथि तक केवल यूएसए, रूस एवं यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी रेड प्लेनेट तक सफलता पूर्वक पहुंची है।
इस समय भारत इसरो में वार्षिक आधार पर केवल लगभग 1 बिलियन डालर का निवेश कर रहा है जो भारत के लिए सभी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का अभिरक्षक है। इसकी स्थापना 1969 में की गई थी तथा आज यहां लगभग 16 हजार लोगों को रोजगार दिया गया है।
जियोसिनक्रोनस सेटलाइट लांच व्हीकल - डी5 (जी एस एल वी - डी5), जो सेटलाइट जीसैट
14 को ले जा रहा है, चेन्नई के निकट श्रीहरिकोटा से लांच किया जा रहा है
सप्ताह में थोड़ा पहले 4 अप्रैल, 2014 को इसरो ने लगातार 25 सफल लांच के साथ इतिहास रच दिया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने लगातार 25 बार सफलता के साथ पोलर सेटलाइट लांच व्हीकल या पी एस एल वी लांच करके इतिहास रचा तथा भारत के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम या जिसे कुछ लोग
देशी जी पी एस कहते हैं, के एक कदम करीब भारत को पहुंचाया।
श्रीहरिकोटा से अपराह्न 5.14 बजे 44 मीटर लम्बा तथा 320 टन के वजन वाला पी एस एल वी रॉकेट ने सफलता पूर्वक नीले आकाश में उड़ान भरा तथा 19 मिनट बाद अंतरिक्ष में भारत के दूसरे नेविगेशन सेटलाइट पर सटीकता के साथ स्थापित हो गया।
इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने कहा, ''पी एस एल वी अपनी लगातार 25वीं सफल उड़ान में सटीकता के साथ भारत के दूसरे क्षेत्रीय नेविगेशन सेटलाइट पर स्थापित हुआ।''
इस नवीनतम लांच की वजह से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम के भारतीय संस्करण को आरंभ करने की दिशा में एक कदम और करीब पहुंच गया है। इसी तरह अमेरिकन ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी पी एस) के साथ यह काम करता है परंतु अभिसरण की दृष्टि
से यह बिल्कुल क्षेत्रीय है। भारत विश्व में ऐसा छटा देश होगा जिसके पास यह सिस्टम है। यह युद्ध के समय में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश आधुनिक प्रीशिजन बम तथा प्रक्षेपास्त्र सटीक पोजिशनिंग पर निर्भर होते हैं। कुछ लोग स्वाभाविक तौर पर पूछ सकते
हैं कि क्या भारत का यह सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम काम करेगा यदि मलेशिया की गुमशदा एयरलाइंस फ्लाइट नम्बर 370 को ढूंढना संभव होता, दुर्भाग्य से इसका उत्तर नहीं है।
आज यदि आप प्रौद्योगिकी जिज्ञासु हैं, तो खो जाना शीघ्र ही बहुत कठिन हो सकता है। भारत अपना स्वयं का सेटलाइट नेविगेशन सिस्टन इंस्टाल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है : 7 उपग्रहों का एक बेड़ा जो 20 मीटर की दूसरी से सटीक लोकेशन बताने में सफल होगा। आज की तिथि तक
हममें से अधिकांश लोग अमेरिकन जी पी एस या ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर निर्भर हैं, जो स्मार्ट फोन पर बहुत लोकप्रिय है परंतु सैन्य अप्लीकेशन के लिए बहुत अच्छा नहीं है। अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन एवं जापान के बाद इस सिस्टम को अपनाने वाला भारत छठां राष्ट्र
बन गया है।
भारतीय उपग्रह निरंतर डाटा उपलब्ध करायेंगे जिन्हें विशेष हैंड हेल्ड उपकरणों से उस समय पढ़ा जा सकता है जब ग्राउंड पर आधारित सेंसर का प्रयोग करके उनको अंशांकित किया जाएगा। इससे लोकेशन ढूंढ़ने में मदद मिल सकती है।
भारत ने जुलाई, 2013 में इंसैट 3डी सेटलाइट लांच किया
भारत का सेटलाइट सिस्टम सीमा के दोनों तरफ 1500 किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने के लिए तैयार किया गया है। विशेष रूप से यह भौगोलिक क्षेत्र को कवर करने के लिए प्रयास किया गया है जहां से भारत को खतरे की आशंका है; पाकिस्तान और चीन दोनों ही फुट प्रिंट के अंदर हैं।
अपनी 26वीं उड़ान में भारत के वर्क हार्स राकेट पी एस एल वी पर 1432 किलोग्राम का एक विशेष उपग्रह लदा था जिस पर एक प्रीसिजन क्लाक था जिसे एटामिक क्लाक कहा जाता है और इस पर देश में निर्मित अन्य उपकरण थे जो सटीक टाइम एवं लोकेशन से संबंधित डाटा भेजते हैं। उम्मीद
है कि 2016 तक 7 उपग्रहों का समूचा बेड़ा तैयार हो जाएगा जब भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आई आर एन एस एस) चालू हो जाएगी। पिछले साल जुलाई में लांच किया गया पहला भारतीय नौवहन उपग्रह सामान्य तौर पर काम कर रहा है।
इसरो अब अपने सबसे बड़े राकेट अर्थात जियोसिनक्रोनस सेटलाइन लांच व्हीकल (जी एस एल वी) मार्क 3 की पहली प्रायोगिक उड़ान के लिए तैयारी कर रहा है जिसे श्रीहरिकोटा से इस साल के मध्य में किसी भी समय लांच किया जाएगा तथा यह भारत के पहले क्रू माड्यूल का फ्लाइट टेस्ट
करेगा।
इसरो, कदम बढ़ाओ, निर्भीकता से वहां तक पहुंचो जहां कोई भी भारतीय अभी तक नहीं पहुंचा है!
(पल्लव बागला एन डी टी वी के लिए विज्ञान सम्पादक तथा वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित विज्ञान लेखक हैं। इन्होंने 'डेस्टिनेशन मून : इंडियाज क्वेस्ट फार मून, मार्स एंड बियांड' नामक एक पुस्तक लिखी है। यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। निम्नलिखित
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