लेखक मनीश चंद
यह बिना फ्रंटियर की एक यात्रा है। 30 लोग, 19 देश, एक साझा मिशन : चुनाव आयोजित करने की कला और लोकतांत्रिक व्यवस्था को जीवंत रखने के लिए धार तेज करना (होनिंग)।
2014 के ग्रीष्मकाल में चुनाव प्रचार और आलंकारिक कहावतों के अत्यधिक शोरगुल से परे दिल्ली में चुनाव आयोग की बिल्डिंग के सातवें तल का दृश्य काफी हद तक उत्साहपूर्ण और उद्देश्यपरक था। यह यमन, घाना, लेबनान, जार्जिया, भूटान और अफ्रीका के नए राष्ट्र दक्षिणी
सूडान जैसे विविध देशों से आए 30 मिड कैरियर पोलिंग अधिकारियों के एक समूह की कक्षा से पीछे था और वे इस बात का पता लगाने की नितांत ईमानदार कोशिक कर रहे थे कि विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला भारत जैसा लोकतंत्र किस प्रकार से मुक्त, निष्पक्ष और विश्वसनीय ढंग
से चुनावों का आयोजन करता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आई टी ई सी) नामक एक प्रयास,
जो दक्षिणी - दक्षिणी एकांत में अल्प विकासशील देशों के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के लिए भारत का एक हस्ताक्षर (महत्वाकांक्षी) और चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम है के अंतर्गत 2012 के ग्रीष्मकाल में इसकी स्थापना से लेकर अब तक पिछले तीन वर्ष में 40 से भी अधिक
देशों के 90 मिड कैरियर पोलिंग अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। यह प्रशिक्षण इंडिया इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन मैनेजमेंट (आई आई आई डी ई एम), चुनाव आयोग का एक संबद्ध संस्थान, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय द्वारा संचालित किया
जाता है, जो सतर्कता, निष्पक्षता और बेहतर ढंग से भारत के व्यापक चुनावों का संचालन करता है।
प्रतिभागियों के लिए यह वर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि उन्हें न केवल इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के प्रचालन और पोलिंग बूथों पर सुरक्षा जैसे चुनाव प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर चुनाव आयोग के जानकार अधिकारियों से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ
बल्कि उन्होंने भारत में संसदीय चुनावों जैसे बहुत बड़े कार्य का प्रथम दृष्ट्या अवलोकन किया और अनुभव प्राप्त किया। क्योंकि इसे विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कार्रवाई के रूप में माना जाता है। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भाग लेने के अलावा उन्होंने आगरा, जिसे
ताज महल जैसे वैश्विक अजूबे का घर माना जाता है और भारत में इतनी बड़ी चुनावी मशीन किस ढंग से कार्य करती है यह देखने के लिए ग्वालियर का भी दौरा किया। यद्यपि चुनाव प्रक्रिया अपने शबाब पर है, फिर भी अप्रैल में दो सप्ताह तक चलने वाले ''चुनाव प्रबंधन पर तीसरे विशेष
पाठ्यक्रम’’ का आयोजना किया जा रहा है। गतवर्ष की भांति इस बार भी पड़ोसी और दूरस्थ देशों से प्रतिभागियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। इनमें भारत की सीमाओं से जुड़े भूटान, श्रीलंका और मालद्वीव जैसे देशों के प्रतिनिधि; इथोपिया, तंजानिया, सूडान, दक्षिणी सूडान,
कांगो, घाना, लेसोथो और सियरा लियोन जैसे लोकतांत्रिक गणराज्य सहित बहुत से आयोजक अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। दो सप्ताह तक चलने वाले इस कार्यक्रम में मध्य -पूर्व (लेबनान, यमन, फिलीस्तीन), लैटिन अमरीकी (अल सल्वाडोर, जार्जिया) और मध्य एशिया (तजाकिस्तान,
किर्गीस्तान) जैसे देशों के पोलिंग अधिकारियों ने भी भाग लिया।
विभिन्न देशों के पोलिंग अधिकारियों के लिए चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागी
डा. नूर मोहम्मद, जो आई आई आई डी ई एम में एक परामर्शदाता के रूप में कार्यरत हैं और जिन्होंने इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में सक्रिय सहयोग प्रदान किया है, का कहना है कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की संकल्पना इस तैयार की गई है ताकि सह-विकासशील देशों के
साथ चुनाव आयोजित करने में भारत के अनुभव और विशेषज्ञता का प्रचार – प्रसार किया जा सके। यह कार्यक्रम इस बात का आइना बन गया है कि भारतीय लोकतंत्र जमीनी आधार पर किस प्रकार कार्य करता है।
भारतीय अनुभव
सभी प्रतिभागियों ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि 2014 के संसदीय चुनावों में जहां 814.5 मिलियन मतदाताओं के अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अपेक्षा थी, वहां लगभग 500 से 600 मिलियन लोगों के इतने बड़े पैमाने पर भारत किस प्रकार से चुनावों का आयोजन और प्रबंधन
करता है, जिसमें रिकार्ड टर्न आउट देखा गया है। यह प्रशंसा बनावटी नहीं है बल्कि उन्होंने तहेदिल से भारत की प्रशंसा की। चुनावी प्रशिक्षण पर दो सप्ताह के पाठ्यक्रम की समाप्ति पर श्री डोरिस अनेफा अजबेजुलोर, प्रधान चुनाव अधिकारी, चुनाव आयोग, घाना कहते हैं कि
''भारतीय लोकतंत्र उत्कृष्ट है। चुनावों का आयोजन सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है। चुनावों के संचालन हेतु प्रयुक्त प्रौद्योगिकी साधार और बेहतर है तथा इसके चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।’’ इसी प्रकार लेबानेसे नेशनल असेंबली के जूली टेनिओस,
जो चुनावी प्रशिक्षण हेतु इस वर्ष के पाठ्यक्रम में शामिल 30 प्रतिभागियों में से एक थीं, उन्होंने भी इसकी सराहना की। सुश्री टेनिओस कहती हैं कि ''मैं भारत के बहुत से पोलिंग स्टेशनों में गई और मैंने यह पाया कि चुनाव प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता है और वहां
का माहौल एकदम तनाव रहित है। भारत मेरे देश, अरब देशों और मध्य पूर्व के लिए लोकतंत्र का एक उदाहरण है। और मुझे आशा है कि हम लोकतंत्र और पारदर्शिता के लिए आपके स्तर तक पहुंचने में कामयाब होंगे।''
चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम में घाना से आए प्रतिभागियों में से एक प्रतिभागीप्रशिक्षण
कार्यक्रम एक दिशा में चलने वाली प्रक्रिया नहीं है; यह अन्य विकासशील देशों में चुनाव किस प्रकार आयोजित किए जाते हैं, प्रत्येक प्रणाली की अद्वितीय विशेषता और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय पोलिंग अधिकारियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को समझने हेतु भारतीय
अधिकारियों के लिए भी एक प्लेटफार्म बन गया है।
चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम ज्यादातर प्रतिभागियों के लिए भारत की लगन और सिद्धांतों का प्राय: प्रथम दृष्ट्या अनुभव है, जिन्होंने इस प्रकार के कार्य को अत्यधिक विविधतापूर्ण देश में अति प्रबल, प्रकाश पुंज और हिला देने वाली प्रक्रिया के रूप में पाया। उन्होंने
आई टी ई सी को धन्यवाद दिया और वे इस देश में जीवन पर्यंत तक जारी रहने वाली मित्रता और यादें छोड़ कर गए।
चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यापक स्तर पर लोकप्रिय हो गया है और भारत के विदेश मंत्रालय में बहुत से विकासशील देशों से प्रतिभागिता के लिए बड़े पैमाने पर अनुरोध प्राप्त होने लगे हैं। कुमार तूहिन, संयुक्त सचिव एवं आई टी ई सी के प्रभारी कहते हैं कि ''हम प्राप्त
प्रतिक्रियाओं से आश्चर्यचकित हैं’’ वे कहते हैं कि क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन दक्षिणी – दक्षिणी सहयोग के ढांचे के अंतर्गत किया जाता है और यह आई टी ई सी का आधार तैयार करता है।
आई टी ई सी के साझा करने की भावना
परिवर्तन और स्वयं फैशन करना आई टी ई सी का मूल मंत्र है जो अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमरीका और पूर्वी तथा मध्य यूरोप सहित सभी महाद्वीपों के लगभग 160 देशों में हजारों विद्यार्थियों, व्यवसायियों और मिड कैरियर राजनयिकों और अधिकारियों के क्षमता निर्माण तथा कौशल
हस्तांतरण पर आधारित है।
दक्षिणी – दक्षिणी सहयोग के प्रति भारत की निर्बाध प्रतिबद्धता के एक प्रतीक के रूप में आई टी ई सी के इस कार्यक्रम ने विकासशील दक्षिणी देशों के साथ भारत के विकासात्मक अनुभव को साझा किया है और भारत की विशेषज्ञता का प्रचार – प्रसार किया है। भारत सरकार की सहायता
के एक द्विपक्षीय कार्यक्रम के रूप में शुरू किए गए आई टी ई सी कार्यक्रम, जिसमें इसका सहयोगी प्रयास एस सी ए ए पी (स्पेशल कॉमनवेल्थ एसिसटेंस फॉर अफ्रीका प्रोग्राम) शामिल है, के अतंर्गत आई टी, टेक्सटाइल डिजाइनिंग, वाणिज्यिक, विज्ञान और मीडिया के क्षेत्र में
विदेशी कार्यों जैसे 220 अलग प्रकार के पाठ्यक्रमों को शामिल करने हेतु इसका विस्तार किया गया है।
चुनावी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आई टी ई सी के अंतर्गत तुलनात्मक रूप से एक नया प्रयास है, परंतु यह भारत के विकास केंद्रित लोकतंत्र को परिपक्व ढंग से प्रतिबिंबित करता है और दक्षिणी विश्व के ऐसे देश जिनमें आपसी भाईचारा है तक पहुंच स्थापित करता है जो नवोद्भव, उद्यम
और भावनाओं को बल देने के लिए तेजी से एक हब के रूप में उभर रहे हैं। सर्वोपरि बात यह है कि यह विचारों और ज्ञान के जरिए सहयोगी मानव प्रजाति के साथ विचारों, अभिगम को साझा करने और उनके सशक्तिकरण के लिए आई टी ई सी की भावना का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। यह भावना आई
टी ई सी 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में मनाए जाने वाले समारोह में उभर कर सामने आएगी। आई टी ई सी की स्वर्ण जयंती सालगिरह न केवल भारत में मनायी जाएगी बल्कि काबुल से लेकर किंशशा, थिंपू से बिलिसी एवं कोलंबों से कांगो जैसे विकासशील देशों में भी व्यापक पैमाने
पर मनायी जाएगी।
(मनीश चंद इंडिया राइट्स के प्रधान संपादक हैं, www.indiawrites.org एक ऑनलाइन जर्नल ओर पत्रिका है जो अंतर्राष्ट्रीय कार्यों और भारत की कहानी पर ध्यान केंद्रित करती है)।
(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के हैं)
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