लेखक : पल्लव बागला
पानी में जीवन होता है तथा पानी के बगैर कोई जीवन नहीं हो सकता है। पानी जीवन का कमोवेश उत्पादक है। घने जंगल जहां विविध प्लांट एवं जीव-जंतुओं का मानव बस्तियों में जमाव होता है जो स्वाभाविक रूप से इसके आसपास हमेशा के लिए पानी एवं क्लस्टर की तलाश में रहते हैं,
यह एक प्राकृतिक संसाधन है जो धरती पर जीवन का मुख्य स्रोत है। आज नए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पहले से कहीं अधिक स्वच्छ पानी को अच्छे अभिशासन के केंद्र में रख रही है। इसलिए, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 जुलाई, 2014 को ‘हर बूंद,
अधिक फसल’ की तलाश में कृषि विशेषज्ञों से बोलते समय आह्वान किया, तो इसने स्वाभाविक रूप से भारतीयों के दिल को छू लिया।
व्यक्तिगत रूप से मुझे इस बात को लेकर कई बार आश्चर्य हुआ है कि क्या मेरे शरीर की धमनियों में रक्त ही प्रभावित हो रहा है अथवा ऐसी जीवनदायिनी शक्ति जिसे हमारे पूर्वज तरल स्वर्ण के रूप में बताया करते थे? यहां तक कि एक बालक के रूप में जब मुझे मेरे पिता से हमारी
उत्पत्ति के बारे में जानकारी मिली, जो चुरू, पश्चिमी भारत में राजस्थान राज्य के एक मरूस्थल के निकट छोटा सा कस्बा से हुई थी, जहां गर्मियों का तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है, वहां सूखेपन और पानी के अत्यधिक अभाव के कारण मेरा गला सूख जाता था।
मेरे दिमाग में हमेशा ऐसे प्रश्न आते रहते हैं – जब मैंने मानव के दैनिक जीवन में होने वाले पानी के औसतन बड़े दुरूपयोग को महसूस करना प्रारंभ किया तो मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैंने अपने बचपन के कई खुशनुमा घंटे भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के किनारे पर बिताए।
स्वच्छ पेय जल नितांत महत्वपूर्ण हैं और यह संभवत: भविष्य में दर निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है। 1.2 बिलियन लोगों के साथ भारत विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 17 प्रतिशत है – परंतु प्रतिकूल स्थिति यह है कि देश के पास विश्व स्तर पर स्वच्छ पेय
जल संसाधनों का महज 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है और भारत के नवीकरणीय स्वच्छ पेय जल संसाधन प्रतिवर्ष 1869 बिलियन क्यूबेक मीटर (बी सी एम) मात्र हैं। वर्तमान में प्रत्येक भारतीय को विश्व के औसत की तुलना में एक चौथाई से भी कम पानी उपलब्ध है और यह अंतर लगातार बढ़ता
जा रहा है। क्या पानी के अभाव वाले क्षेत्रों और जल संपन्न क्षेत्रों के बीच की इस खाई को सुदृढ़ जल प्रबंधन और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं के परिनियोजन दूर किया जा सकता है।
(भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा की सफाई के लिए एक गंभीर प्रयास किया जा रहा है, यहां 2013 में आयोजित कुंभ
मेले के दौरान कुछ समर्पित हिंदू महिलाएं गंगा मां की पूजी कर रही हैं, जो कि एक ही स्थान पर लोगों की सबसे बड़ी भीड़़ है। क्रेडिट और कॉपीराइट : पल्लव बागला )राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार की गंगा नदी की साफ - सफाई में विशेष रूचि है और यहां
तक कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय का ‘जल संसाधन, नदी विकास और गंगा स्वच्छता मंत्रालय’ के रूप में पुन: नामकरण भी किया गया है। 7 जुलाई, 2014 को नई दिल्ली में बड़े पैमाने पर अंतर मंत्रालयी राष्ट्रीय परामर्श – ‘गंगा मंथन’ का आयोजन किया गया जहां यह सिफारिश
की गई कि ईमानदारी से ऐसा अभिनव प्रयास किया जाएगा कि आगामी पांच वर्ष में भारतीयों को स्वच्छ और मुक्त प्रवाह वाली गंगा लौटाई जा सके। नई सरकार नि:संदेह स्वच्छ जल उपलब्ध कराने पर अत्यधिक जोर दे रही है, इस दिशा में भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा की साफ – सफाई
के लिए एक बड़े प्रयास हेतु बजट में 340 मिलियन डालर का आबंटन किया गया है, उत्तर भारत से निकलने वाली 2500 किमी लंबी यह नदी जिसके बेसिन पर लगभग 400 मिलियन लोग निवास करते हैं, में अत्यधिक प्रदूषण हो गया है और मोदी जी ने 2019 तक इसे स्वच्छ बनाने का वादा किया
है। उन्होंने यह वादा वाराणसी में अपने संसदीय क्षेत्र से विजयी श्री प्राप्त करने पर गंगा के किनारे दिए गए अपने विजय संभाषण के दौरान किया है।
जल संसाधन मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011 की जनगणना के आधार पर देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1545 क्यूबेक मीटर है। जनसंख्या बढ़ने के कारण देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता क्रमिक रूप से घटती जा रही है। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या
को ध्यान में रखते हुए देश में औसतन वार्षिक रूप से जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1816 क्यूबेक मीटर थी जो 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 1545 क्यूबेक मीटर हो गई है।
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एन डब्ल्यू डी ए) द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार वर्तमान में लगभग 100 मिलियन हेक्टे. की तुलना में 2050 तक लगभग 160 हेक्टे. की संभावित प्रति जल आवश्यकता को पूरा करने के लिए नई रणनीतियों को अपनाना होगा, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि
भारत की वर्तमान जनसंख्या 1.2 बिलियन से बढ़कर लगभग 1.4 से 1.5 बिलियन हो जाएगी। उस समय लोगों के उदर पोषण के लिए देश को लगभग 450 मिलियन टन खाद्यान्न उगाना होगा, जो चार से भी कम दशकों में लगभग दोगुना हो जाएगा। यह सुनिश्चित करना कि देश को हर बूंद से अधिक फसल
मिलेगी, इससे परिदृश्य काफी बदल जाएगा।
भारत में नदियां काफी बिरल हैं, व्यक्ति इस बात को जानते हुए भी कि गंगा में अत्यधिक प्रदूषण है, गंगा नदी
की पूजा करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने 2019 तक गंगा की सफाई के लिए व्यापक योजनाएं तैयार की हैं। क्रेडिट और कॉपीराइट : पल्लव बागलाएक सरकारी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ‘जल की उपलब्धता सीमित है, परंतु जनसंख्या,
शहरीकरण और औद्योगिकरण बढ़ने के कारण जल की मांग बढ़ती जा रही है। भारत के समक्ष जल की समस्या है। इसके अलावा, जल संसाधनों के संदूषण और जल उपचार की कमतर सुविधा के कारण स्वच्छ पेय जल प्राप्त कर पाना प्राय: कठिन होता है’। इन सभी समस्याओं का समाधान युद्ध स्तर
पर किया जाना चाहिए।
वर्तमान में अस्थिर मानसून भारत के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है। उप महाद्वीप में मानसून के दौरान होने वाली वर्षा लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित होती है और यह विश्व की जनसंख्या के लगभग एक तिहाई लोगों के जीवन को प्रभावित करती है, अत: इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं
है कि भारत लगभग एक शताब्दी से ग्रीष्मकालीन मानसून की भविष्यवाणी करने के लिए प्रयास करता रहा है, यही कारण है कि भारत हमेशा सूखे की संभावना व्यक्त करने में हमेशा सफल नहीं रहा है।
मानसून की दीर्घकालीन भविष्यवाणियों को अपेक्षाकृत अधिक परिशुद्ध बनाने के लिए भारत ने मानसून के रहस्य को उजागर करने के उद्देश्य से 75 मिलियन डालर की लागत वाला ‘मानसून मिशन’ नामक पंचवर्षीय अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून एक ऐसी जीवनदायिनी
संक्रिया है जो भारत में होने वाली 105 सेमी की कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 80 प्रतिशत भारतीय भूभाग में वर्षा करता है। हर वर्ष जून से सितंबर के बीच हिंद महासागर से बहने वाली हवाएं नमी पैदा करती हैं जिससे भारतीय भूभाग फिर आच्छादित हो जाता है। मानसून निश्चित रूप
से आता है, परंतु कई माह पहले इसकी भविष्यवाणी करना एक स्वप्न के समान है। 2002 में आए सूखे से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) में अनुमानत: 5.8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। मानसून को ‘छल प्रबंधन संक्रिया’ कहते हुए शैलेश नायक, भूगर्भविद और सचिव, पृथ्वी
विज्ञान मंत्रालय कहते हैं कि ‘मानसून को समझना आगामी पांच वर्ष के लिए प्रमुख प्राथमिकता है’।
भारत में विश्व की जनसंख्या का लगभग 17 प्रतिशत भाग ऐसा है जो विश्व के स्वच्छ पेय जल संसाधनों के लगभग
4 प्रतिशत पर जीवित है। यहां गुजरात की कुछ महिलाएं दिखाई गई हैं जो कुएं से अपने घड़ों को भर कर घर लौट रही हैं। क्रेडिट और कॉपीराइट : पल्लव बागलासरकार के अनुसार विभिन्न नदियों के अलग – अलग भागों के जल गुणवत्ता डेटा से यह पता चला है कि कार्बनिक
प्रदूषण विशिष्ट रूप से जैव और रसायन आक्सीजन मांग (बी ओ डी) की मात्रा 121 नदियों को शामिल करते हुए 150 नदि भागों में जल गुणवत्ता के अपेक्षित मानदंडों से अधिक है। इन नदियों में कार्बनिक प्रदूषण, विशेष रूप से बी ओ डी की मात्रा बढ़ने का प्रमुख कारण यह है कि
देश भर में विभिन्न नगरपालिकाओं द्वारा अनउपचारित और आंशिक रूप से उपचारित घरेलू अपशिष्ट पदार्थ इन नदियों में प्रवाहित किये जाते हैं। नदियों में प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की होती है और इसके लिए निरंतर संयुक्त रूप से प्रयास किए
जाते हैं। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार केंद्र द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एन आर सी पी) के जरिए विभिन्न नदियों में प्रदूषण कम करने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों के पूरक के रूप में कार्य कर रहा है, जिसके अंतर्गत वर्तमान में 20
राज्यों के 190 कस्बों में 40 नदियों को शामिल किया गया है। प्रदूषण उन्मूलन योजनाओं में सीवेज की रूकावट, दिशा परिवर्तन और उपचार; नदियों के तटों पर कम लागत वाले स्व्च्छता कार्य शामिल होते हैं और इसके लिए गैस फायर्ड, इलेक्ट्रिक अथवा उन्नत वुड क्रेमेटोरिया
का इस्तेमाल किया जा रहा है। 4574 मिलियन लीटर प्रतिदिन की सीवेज उपचार क्षमता स्थापित की गई है। किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं हो सकता है कि भारत में नदियां अत्यधिक प्रदूषित हैं और इनकी शीघ्र सफाई करने से निश्चित ही भारत एक स्वास्थ्यकर स्थल हो जाएगा।
फिर भी, भारत के लोगों की नदियों के प्रति अगाध श्रद्धा और पवित्र भावना का पता उस समय चला जब इलाहाबाद ने 2013 में आयोजित कुभं मेले के दौरान पृथ्वी में अब तक के सबसे बड़े जन समुदाय को एक साथ देखा गया और इसमें भाग लेने वाले लोगों की 30 मिलियन से अधिक रही। जब किसी
व्यक्ति का साक्षात्कार जमीन से जुड़े लोगों की साधारण पूजा अर्चना की भावना और उसकी पवित्र शक्ति से होता है, तो वह आसानी से अपनी सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है और प्रसन्न होकर जश्न मनाने लगता है – जल की महिमा इस प्रकार है।
फिर भी, ऐसा देखा गया है कि श्रद्धालु अपनी धार्मिक पूजा अर्चना और समारोहों के अपशिष्ट पदार्थ निकटतम जल स्रोतों अर्थात नदियों या तालाबों में प्रवाहित करते हैं, इसके पीछे हो सकता है कि उन्हें इस बात की आशा रहती है कि नदियां अथवा इसके सहायक नाले (अथवा कभी – कभी
समस्याजन्य ढंग से रूके हुए जल स्रोत) भी इन अपशिष्ट पदार्थों को अपने आप में समाहित कर लेंगे और हमें माफ कर देंगे, वे इन सभी भारों को सहन कर लेंगे और लगातार प्रवाहित होते रहेंगे। यहां तक कि महा कुंभ में शामिल होने वाले कुछ श्रद्धालु हर वर्ष यहां आते हैं और
जीवनपर्यंत जल की प्रशंसा करते रहते हैं, वे प्रमुख रूप से नागा साधु अथवा सामान्य गृहणियां होती हैं जो जीवनपर्यंत अपने घरों में गंगा जल सुरक्षित रखना चाहती हैं। मैं अपने आप से प्राय: यह प्रश्न करता हूँ कि जल वास्वत में मेरे क्या महत्व रखता है? शायद मुझे
लगता है कि इसका अत्यधिक महत्व है। मुझे स्मरण है कि 2002 में जब भारत में गंभीर सूखा पड़ा था तो भारत की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई थी। और राजस्थान के अलवर जिले के जिन गांवों में मैं गया, मैंने जल की शक्ति और ऐसे समुदायों को देखा जो जल संसाधनों के सृजन और
संरक्षण के लिए तत्पर थे। लोग वहां स्थानीय समुदायों के सक्रिय सहयोग से काफी दिन पहले सूख चुकी नदियों का जीर्णोद्धार कर रहे थे।
जल की संपूर्ण शक्ति इसकी तरलता और शांति, स्वच्छता और प्रसन्नता में निहित होती है। फिर भी युद्ध होते हैं और ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये युद्ध अभी हाल ही में शुरू हुए हैं। हो सकता है कि युद्ध जल के इस्तेमाल, इसे साझा करने और इस बात को लेकर कि जल का इस्तेमाल
कौन कितना करेगा, हों। यह युद्ध प्रतिदिन हर समय और अगणनीय भारतीय शहरों, कस्बों और गांवों में हो रहे हैं। ऐसे बहुत से दृश्य वहां देखे जा सकते हैं जहां पानी की प्रतीक्षा में महिलाएं अपनी क्षमता से अधिक घड़े लेकर घंटों लाइनों में खड़ी रहती हैं और देश के बहुत
से भूभाग में टैंकरों से पानी बेचा जाता है। ऐसे दृश्य उन राजनीतिक ड्रामों में भी देखने को मिलते हैं जहां राज्यों के बीच नदियों को साझा करने और बांध बनाकर जल संग्रहण करने का दिखावा कर जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश की जाती है।
परंतु जल मानव की क्षमताओं को सीमा से परे बनाए रखने और उसका प्रबंधन करने के लिए उपयोगी है। जल ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण लोगों के जीवन में भी शांति, सौहार्द और खुशनुमा माहौल पैदा करता है, जो लंबे समय से कष्ट में जी रहे होते हैं। यह व्यक्तियों, पशु और पेड-पौधों को
भी जीवंत बना देता है। यह पारिस्थितिकीय प्रणालियों और अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत अथवा कमजोर कर सकता है। यह उद्योगों को बंद करा सकता है और आस्तिक को भी नास्तिक बना सकता है। जल ऐसी चीज है जो प्रत्येक भारतीय के लिए वास्तविक रूप से विश्व का केंद्र का बिंदु होना
चाहिए। इस महत्वपूर्ण संसाधन के बेहतर अभिशासन से भारत का स्वास्थ्यकर और संप्रभु भविष्य सुनिश्चित होगा।
पल्लव बागला
पल्लव बागला नई दिल्ली टेलीविजन के लिए विज्ञान संपादक और वैश्विक स्तर पर ख्यातिलब्ध एक विज्ञान लेखक हैं। यह ब्लूमस्बरी इंडिया द्वारा प्रकाशित की जाने वाली आगामी पुस्तक ‘रीचिंग फॉर द स्टार्स’ के लेखक हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी
विचार / राय हैं। उनसे निम्नलिखित पर संपर्क किया जा सकता है :
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