लेखक: मनीष चंद
लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट। एशियाई स्वप्न पुष्पित हो रहे हैं, और 10 देशीय आसियान समूह के साथ भारत के पल्लवित हो रहे संबंध इस आसियान पुनर्जागरण की धड़कन बन रहे हैं। भारत और आसियान, जो आर्थिक स्पंदनशीलता, नवाचार और उद्यम का केंद्र है, के बीच परस्पर लाभ की
इस रासायनिक अभिक्रिया को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की प्रथम भारत-आसियान शिखर वार्ता और 18 देशीय पूर्वी एशियाई शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए 11-14 नवंबर की प्रथम म्यांमा यात्रा अपने में समेटेगी। आर्थिक रूप से पुनर्जाग्रत इस क्षेत्र के साथ महत्वपूर्ण बहु-स्तरीय
संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जहां 600 मिलियन लोग रहते हैं और 2.5 ट्रिलियन डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद है जो उच्चतर विकास मार्ग पर अग्रसर है।
तीन सी
कॉमर्स, कल्चर और कनेक्टिविटी (वाणिज्य, संस्कृति और कनेक्टिविटी) आसियान के साथ भारत की मजबूत साझेदारी के तीन स्तंभ हैं। आर्थिक परिदृश्य में, भारत-आसियान संबंध नई बुलंदियों को छुएंगे। दोनों पक्षों को शीघ्र ही सेवाओं और निवेशों में एक भारत-आसियान एफटीए
पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है। यह माल संबंधी एफटीए का सम्पूरक होगा जिस पर वर्ष 2009 में पांच वर्ष पहले हस्ताक्षर किए गए थे और जिसके फलस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार में मात्रात्मक उछाल आया है जो अब लगभग 80 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। दोनों पक्ष इसे
2015 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने और वर्ष 2022 तक दुगुने स्तर तक ले जाने के प्रति आश्वस्त हैं। द्विपक्षीय निवेशों में उछाल आया है : भारत में आसियान की ओर से पिछले आठ वर्षों में निवेश 27.9 बिलियन अमरीकी डॉलर का रहा, और आसियान में भारतीय निवेश 32.4 बिलियन
डॉलर तक पहुंच गया है।
मील के पत्थर
(नई दिल्ली में दिसंबर, 2012 में आयोजित
आसियान-भारत कमेमोरेटिव शिखर वार्ता)
1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में आरंभ हुए भारत-आसियान संबंधों ने अनेक मील के पत्थर पार किए हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मुक्त अर्थव्यवस्था बनाए जाने के दौर से गुजरे और जिन्हें परवर्ती सरकारों ने उत्साह से कार्यान्वित किया। 1992 में भारत आसियान का
एक क्षेत्रीय संवाद भागीदार बना और 1996 में एक पूर्ण संवाद भागीदार बना। दिसंबर 2012 में, भारत और आसियान देशों के नेता आसियान के साथ भारत की क्षेत्रीय संवाद भागीदारी की 20वीं वर्षगांठ और उनकी वार्षिक शिखर वार्ताओं की 10वीं वर्षगांठ मनाने के लिए नई दिल्ली में
एकत्र हुए थे। शिखर वार्ता में दोनों पक्षों के संबंध बढ़कर कूटनीतिक भागीदारी के स्तर तक पहुंच गए और परिणामस्वरूप आसियान - भारत विजन स्टेटमेंट तैयार हुआ जो इस बहु-आयामी संबंध के भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। भारत ने आसियान की केंद्रीय भूमिका, विकास अंतराल
को कम करने हेतु आसियान एकीकरण हेतु पहल, आसियान कनेक्टिविटी के संबंध में मास्टर प्लान, और 2015 तक नशा मुक्त आसियान का उत्साहपूर्वक समर्थन किया है।
एक्ट ईस्ट
(विदेश मंत्री दिनांक 25 अगस्त, 2014 को
हनोई में वियतनाम के प्रधान मंत्री एनजुएन टैन जुंग के साथ बैठक करते हुए)
दिल्ली में नए नेतृत्व के तहत, भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी एक्ट ईस्ट की एक अग्रसक्रिय नीति में बदल गई है, जिसमें दैदीप्यमान एशिया के दो प्रगति ध्रुवों के बीच सभी के लिए समान रूप से लागू त्वरित सहभागिता की परिकल्पना की गई है। यह मोदी सरकार के प्रथम कुछ महीनों
में दोनों तरफ से हुई यात्राओं से परिलक्षित हुआ है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी सितंबर में वियतनाम की यादगार यात्रा पर गए, उसके बाद अक्टूबर में वियतनाम के प्रधान मंत्री ने भारत का दौरा किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेशों में अपनी पहली यात्राओं में से
एक यात्रा के रूप में अगस्त में म्यांमा की यात्रा की, और आसियान देशों के साथ-साथ पूर्वी एशियाई देशों के मंत्रियों के साथ बैठक की। उन्होंने वियतनाम और सिंगापुर की यात्राएं पहले ही कर ली हैं और आने वाले महीनों में अन्य अधिकांश आसियान देशों की यात्रा करने
वाली हैं। सिंगापुर की अपनी यात्रा के दौरान, भारत की विदेश मंत्री ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी की आवश्यकता पर बल दिया: ‘‘अब लुक ईस्ट पर्याप्त नहीं है; अब हमें एक्ट ईस्ट पॉलिसी की जरूरत है।’’
भावी कदम
(प्रधान मंत्री दिनांक 28 अक्टूबर, 2014 को
नई दिल्ली में समाजवादी गणराज्य वियतनाम के प्रधान मंत्री एनजुएन टैन जुंग के साथ बैठक करते हुए)
अब प्रधान मंत्री मोदी की म्यांमा यात्रा में, जहां वे भारत-आसियान शिखर वार्ता के साथ-साथ आसियान देशों के अधिकांश नेताओं के साथ बैठक करेंगे, भारत - आसियान संबंध आर्थिक और कूटनीतिक दोनों दिशाओं में उल्लेखनीय रूप से आगे बढ़ेंगे। आशा है कि दोनों पक्ष अपनी भागीदारी
के अगले कदमों पर 2015-2020 एक्शन प्लान के रूप में विचारों का आदान-प्रदान करेंगे, जिसके अगले वर्ष भारत-आसियान शिखर वार्ता में मजबूत होने और उद्घाटित होने की उम्मीद है। रिश्तों की कूटनीतिक विषयवस्तु आने वाले वर्षों में और गहन होने की आशा है क्योंकि दोनों
पक्ष कूटनीतिक मुद्दों पर, जिनमें ट्रांस-नेशनल आतंकवाद, तटीय दस्युता और परमाणु प्रसार के मुद्दे शामिल हैं, अपने सहयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। दक्षिण चीन सागर में असंतोष की पृष्ठभूमि में, भारत ने समुद्र में आवागमन की स्वतंत्रता पर लगातार बल दिया है और
सभी तटीय क्षेत्रों के विवादों का संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अनुसार निपटारा करने पर बल दिया है।
कनेक्टिविटी
(प्रस्तावित भारत-म्यांमार-थाईलैण्ड राजमार्ग का मानचित्र)
भौतिक, संस्थागत एवं मानसिक संपर्क भारत-आसियान भागीदारी का चिरकालिक एजेंडा रही है। भारत ऐसी ट्रांस-नेशनल परियोजनाओं को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है जो इस क्षेत्र को सड़क, रेल और समुद्री संपर्क मार्गों से जोड़ने की मंशा से शुरू की गई हैं। भारत-म्यांमा-थाईलैण्ड
त्रिपक्षीय राजमार्ग का तमू-कलेवा-कलेम्यो सेक्टर पूरा होते ही यह इस क्षेत्र के साथ भारत के बहु-आयामी संबंधों में नई गति पैदा होगी। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, जो आसियान के प्रवेश द्वार हैं, के आर्थिक उत्थान को आगे बढ़ाने के नवीन उत्साह से भरी नई भारत
सरकार के साथ यह संवर्धित कनेक्टिविटी इस क्षेत्र की नई समृद्धि का विश्वास दिलाती है। आने वाले दिनों में, जहाजरानी एवं वायुमार्ग कनेक्टिविटी पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।
इस फल-फूल रहे संबंध के लिए नए बेंचमार्क स्थापित करते हुए भारत ने जकार्ता में आसियान के लिए भारत का एक मिशन स्थापित किया है, और नई दिल्ली में एक आसियान - भारत केंद्र स्थापित किया है। जिसे विशेषज्ञ भारत की ‘संवर्धित लुक ईस्ट पॉलिसी’ का नाम दे रहे हैं, उसके
मुख्य पहलू हैं, क्षमता-निर्माण, विकास सहयोग और ज्ञान की भागीदारी का प्रसार करना। यह इस बात से परिलक्षित होता है कि भारत तीन निधियों—50 मिलियन डॉलर की आसियान-भारत सहयोग निधि; 5 मिलियन डॉलर की आसियान-भारत हरित निधि; और आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निधि—के
माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में क्षमता-निर्माण परियोजनाओं में अपनी विशेषज्ञता को साझा कर रहा है। भारत की योजना कंबोडिया, लाओ पीडीआर, म्यांमा और वियतनाम में चार सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करने की है। भारत वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में एक
ट्रैकिंग एवं डाटा रिसेप्शन केंद्र शुरू करने जा रहा है, जो आसियान देशों के लिए आपदा प्रबंधन एवं खनिज खोज में अनुप्रयोग हेतु रिसोर्ससैट एवं ओशनसैट से रिमोट सेंसिंग डाटा प्राप्त करेगा।
सांस्कृतिक संबंध
जबकि वाणिज्य, कनेक्टिविटी और क्षमता निर्माण भारत-आसियान संबंधों को लगातार आगे बढ़ाते हुए नए मील के पत्थर स्थापित कर रहे हैं, तथापि, संस्कृति एवं सृजनात्मकता इस बढ़ते हुए संबंध को मानसिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। प्राचीन समय में सुवर्णभूमि,
सोने की भूमि, के रूप में जाने जाने वाले दक्षिण पूर्व एशिया पर भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव है। रामायण और महाभारत केवल महाकाव्य नहीं हैं, अपितु ये वे सभ्यतागत स्मृतियां हैं जो भारत, इंडोनेशिया, थाईलैण्ड और कम्बोडिया जैसे कई दक्षिण पूर्वी देशों की साझा
स्मृतियां हैं। बौद्ध धर्म भारत-आसियान संबंधों की आध्यात्मिक धुरी है क्योंकि इस पूरे क्षेत्र से बौद्ध, बोध गया जैसे प्रतिष्ठित स्थानों, जहां भगवान बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था, की यात्रा पर आते हैं।
(बोध गया में बुद्ध की प्रतिमा)
प्राचीन और आधुनिक का मेल करते हुए, नालंदा विश्वविद्यालय अब कोई स्वप्न नहीं रही, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता बन गई है और इस वर्ष इसने काम करना शुरू कर दिया है। इसका औपचारिक उद्घाटन इसी वर्ष सितंबर में विदेश मंत्री द्वारा किया गया था। अंत में, इसके लोगों के
घनिष्ठ आपसी मेलजोल नवीन विचारों और पहलों के साथ कूटनीतिक संबंध को मधुर बनाए रखते हैं। साथ ही, भारत एवं आसियान के नेताओं ने एक ज्ञान एवं सांस्कृतिक सेतु के निर्माण को इस संबंध की पूर्ण क्षमता का लाभ लेने के चिरकालिक तरीके के रूप में ठीक ही मान्यता दी है।
भारत के विदेश मंत्रालय के सचिव (पूर्व) अनिल वाधवा ने कहा है, ‘‘आगामी कार्य योजना में, सभ्यतागत संपर्कों को बढ़ाते हुए लोगों के आपसी मेलजोल पर ध्यान दिया जाएगा और साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आसियान देशों के साथ संपर्क के विषय में भाषा, धर्म, परंपरा,
वेशभूषा, और परंपरागत शिल्पों जैसे मुद्दों पर पर्याप्त अध्ययन किए जाएं।’’
एशियाई शताब्दी
मन और मस्तिष्क से सही निर्णय लेते हुए, बहुरंगी भारत-आसियान संबंध इस शताब्दी को एशियाई शताब्दी बनाने के स्वप्न को शीघ्र साकार करते प्रतीत होते हैं। इसी भावना से उम्मीद है कि प्रधान मंत्री मोदी 2015 तक एक आसियान समुदाय बनाने के लिए भारत के अथक समर्थन पर
म्यांमा शिखर वार्ता में नवीन बल देंगे। 1.8 बिलियन लोगों के सामूहिक स्वप्नों को गूँथते हुए भारत और आसियान इस पूरे क्षेत्र में समृद्धि का विस्तार करने वाले हैं और एक आसियान पुनर्जागरण की नई कहानी लिखने वाले हैं।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय मामलों पर केंद्रित एक वेब पोर्टल और ई-पत्रिका इंडिया राइट्स नेटवर्क,www.indiawrites.org तथा इंडिया स्टोरी के मुख्य संपादक हैं।)
- लेख में अभिव्यक्त विचार पूरी तरह लेखक के अपने विचार हैं।
संदर्भ:
नई दिल्ली में आसियान एम्बेसेडर्स इंटरेक्टिव
फोरम में सचिव (पूर्व) का मुख्य भाषण (18 सितम्बर, 2014)
थिंक टैंक के आसियान – भारत नेटवर्क के तीसरे गोलमेज
सम्मेलन में विदेश मंत्री द्वारा उद्घाटन भाषण
आसियान - भारत विदेश मंत्रियों की 12वीं
बैठक में ने पई तॉ, म्यांमा में विदेश मंत्री का भाषण (9 अगस्त, 2014)
ब्रुनेई, दारएस्सलाम में आसियान - भारत शिखर वार्ता में प्रधान मंत्री द्वारा
आरंभिक वक्तव्य
विजन स्टेटमेंट आसियान इंडिया कमेमोरेटिव समिट, नई दिल्ली:
दिल्ली से ब्रुनेई : उड़ान भरते भारत - आसियान संबंध