लेखक : मनीष चंद
हो सकता है कि यह पूरी तरह एक संयोग हो, परंतु यह अपार प्रतीकात्मक महत्व से भरा हुआ लाभदायक घटनाक्रम है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का कार्यभार संभालने और नई दिल्ली में अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशिया के सभी देशों के नेताओं को आमंत्रित करके एक बड़ा
कूटनीतिक कदम उठाने के ठीक 6 माह बाद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी काठमाण्डू में 18वें सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि ‘पड़ोसी सबसे पहले’ का टेम्प्लेट उनकी आकार ले रही विदेशी नीति का हिस्सा पहले से ही रहा है।
दक्षिण एशिया पर ध्यान देने की बात मोदी सरकार के पहले दिन से ही दिखाई पड़ने लगी थी और प्रधान मंत्री की भूटान और नेपाल यात्राओं तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ढाका, थिम्पू, माले और काठमाण्डू के दौरों से इस बात को और बल मिला। इस पर यह बात भी ठीक बैठती है
कि, क्योंकि इस क्षेत्र के देशों की नियति एक दूसरे के साथ अंतरंग रूप से गुँथी हुई है, अत: दुनिया भर के दर्जनों नेताओं से मिलने और कई बड़े बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में भाग लेने के बाद श्री मोदी भारत की एशियाई कूटनीति को अभिप्रेरित करने और आर्थिक एवं सांस्कृतिक
रूप से एकीकृत क्षेत्र के स्वप्न को मूर्त रूप देने के लिए पुन: एक पड़ौसी देश की यात्रा करते हैं।
(प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद मई,
2014 में नेपाल और भूटान का दौरा किया है)
आपस में जुड़े सपने
आपस में जुड़ी हुई नियति, आपस में जुड़े हुए स्वप्न- निराशावादी लोगों के लिए ये अभिव्यक्तियां अलंकृत बातें प्रतीत हो सकती हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र की अपार क्षमता को फलीभूत करने में प्रत्येक देश की बड़ी भूमिका को जितना महत्व दिया जाए, उतना
कम है। सार्क को क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण के पहले से ख्यातनाम मंच के रूप में पुन: ताकत प्रदान करने के अपने प्रयासों में भारत, जो इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सर्वाधिक आबादी वाला देश है, आदर्शवादी होने के साथ-साथ यथार्थवादी भी है। क्योंकि इंडिया
स्टोरी को दक्षिण एशिया की स्थिति, इसके विकल्पों और इसके संघर्षों तथा इसकी बढ़ती आशाओं और आकांक्षाओं से अलग नहीं रखा जा सकता।
दक्षिण एशिया किस दृष्टि से महत्वपूर्ण है
(विदेश मंत्री ने मई 2014 में पद ग्रहण करने के बाद बांग्लादेश,
भूटान, मालदीव और नेपाल की यात्रा की है)
आठ राष्ट्र, स्पंदनशील और उभरते हुए प्रजातंत्र, प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाएं, और 1.7 बिलियन जनसंख्या तथा दुनिया के बड़े धर्मों की जन्म-भूमि, दक्षिण एशिया में वह सब कुछ मौजूद है जो इसे वैश्विक परिदृश्य पर अपनी पहचान बनाने वाली एक क्षेत्रीय ताकत बनने के लिए
चाहिए। अपनी स्थापना के उनतीस वर्ष बाद और 30वीं वर्षगांठ से पहले सार्क के लिए अब समय आ गया है कि बड़ी-बड़ी घोषणाओं और ठोस कार्रवाई के बीच के अंतर को पाटा जाए ताकि दक्षिण एशिया इस क्षेत्र में और विश्व स्तर पर एक क्षमतावान एवं प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह
करने वाला क्षेत्र बन सके।
तथापि, निराशावादियों द्वारा सार्क को अनुचित रूप से ‘बातें करने वाला और काम न करने वाला’ समूह बताया गया है; यह आलोचना सही नहीं है, चूँकि अपेक्षित संकर्षण प्राप्त करने के लिए सार्क को अभी मीलों लंबी यात्रा करनी है, परंतु अब लगभग तीन दशक की यात्रा हो गई है, फिर
भी, क्षेत्रीय सहयोग संरचना को मजबूत करने के लिए इसने एक दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय, संकटकाल में राष्ट्रीय प्रयासों को सम्पूरित करने के लिए सार्क विकास निधि, एक सार्क खाद्य बैंक, और संकट तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय एक दूसरे को साथ देने के लिए सार्क आपदा
प्रबंधन केंद्र की स्थापना करने जैसे कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ये सभी सराहनीय कदम हैं, और अपने पंख फड़फड़ा रहे अनेक विचारों के कार्यान्वयन की गति को बढ़ाए जाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं।
(दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) एक अंतरराष्ट्रीय विश्विविद्यालय
है जो सार्क के 8 सदस्य राष्ट्रों द्वारा प्रायोजित है।)
साथ ही, सार्क को सशक्त बनाने तथा दक्षिण एशिया को अवसरों की अनुगूँज की गाथा बनाने का यह चल रहा प्रयास 26-27 नवंबर की काठमाण्डू शिखर सम्मेलन का समग्र क्षेत्र होगा- यह वह एजेंडा है जिस पर भारत अग्रसक्रिय रूप से भागीदारी करना चाहता है और जिसे फलीभूत करना चाहता
है।
क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण
क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को नवीन ऊर्जा और गति प्रदान करना काठमाण्डू शिखर सम्मेलन का शीर्ष एजेंडा होगा, परंतु इसकी विषयवस्तु विपरीत रूप से ‘‘शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए बेहतर एकीकरण’’ रखी गई है। दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) संबंधी करार
के परिणामस्वरूप अंत:क्षेत्रीय निर्यात 2006 के 10 बिलियन यूएस डॉलर से बढ़कर 2013 में लगभग 22 बिलियन यूएस डॉलर हो गया है, परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक झलक मात्र है। सर्वश्रेष्ठ अभी आना बाकी है और भारत से अपेक्षा की जा रही है कि वह दक्षिण एशिया आर्थिक
संघ के स्वप्न को साकार करने के लिए अन्य देशों के साथ प्रयासों में अग्रसक्रिय रूप से शामिल रहेगा। आर्थिक संघ में बेहतर व्यापारिक उदारीकरण, सीमा पार व्यापार अवसंरचना के विकास तथा इस क्षेत्र में माल और सेवाओं के मुक्त आवागमन को बाधित करने वाली नॉन-टैरिफ
बाधाओं के निवारण की परिकल्पना की गई है। भारत को एक विनिर्माण पावरहाउस बनाने की मोदी सरकार की आकांक्षा के साथ, प्रधान मंत्री मोदी से नए सीमा-पार उत्पादन नेटवर्क तथा संयुक्त विनिर्माण परियोजनाएं बनाने की बात को आगे बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है। भारत को
सेवाओं के संबंध में हुए सार्क करार के अग्रसक्रिय कार्यान्वयन की बात को भी बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र को निर्बाध आर्थिक स्थान बनाने के दीर्घकालिक लक्ष्य को न केवल माल के मुक्त आवागमन के जरिये, अपितु सेवाओं के उदारीकरण एवं व्यवसायियों के मुक्त
आवागमन के जरिये ही प्राप्त किया जा सकता है।
ऊर्जा सहयोग को गहनता प्रदान करना एक अन्य प्राथमिकता वाला क्षेत्र होगा। इस संदर्भ में, सार्क शिखर सम्मेलन से यह अपेक्षा की जा रही है कि इसमें ऊर्जा साझेदारी संबंधी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे, जो इस क्षेत्र के देशों के बीच आर्थिक सहयोग का नया मार्ग
प्रशस्त करने वाला एक महत्वपूर्ण करार होगा।
ओनली कनेक्ट
कनेक्टिविटी काठमाण्डू शिखर सम्मेलन की मुख्य विषय वस्तु है। और भारत का ध्यान भी इस क्षेत्र को रेल, सड़क और वायुमार्ग के जाल में एक साथ गूँथने पर होगा। सार्क देशों द्वारा यात्री एवं कारगो वाहन यातायात के विनियमन हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने तथा
ट्रांस-रीजनल रेल नेटवर्क में सुधार करने के तौर-तरीकों को अंतिम रूप दिए जाने की अपेक्षा की जा सकती है। कनेक्टिविटी परियोजनाओं की उम्मीद की सूची बहुत लंबी है, और कई बातों पर विचार किया जाने वाला है, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ, एक कंटेनर सेवा शामिल है जो
भारत-पेशावर मार्ग के जरिये बांग्लादेश और नेपाल को भारत से जोड़ती है।
सांस्कृतिक समभिरूपताएं
संपर्क केवल भौतिक नहीं हो सकता; अंततोगत्वा यह दिलोदिमाग के रिश्तों को गढ़ता है जो महत्वपूर्ण है। अत: भारत से उम्मीद की जा सकती है कि वे नई पहलें करेंगे और लोगों के पारस्परिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संपर्कों को बढ़ावा देने और उन्हें घनिष्ठ बनाने की जरूरत
पर बल देंगे।
इस क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग करने से क्षेत्रीय एकीकरण की वृहत्तर परियोजना को सम्पूर्णता प्राप्त होगी। दक्षिण एशिया में विश्व के चार महत्वपूर्ण धर्म – हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म - पले-बढ़े हैं, और इसकी सांस्कृतिक
पच्चीकारी में लगभग आधा बिलियन मुस्लिम शामिल हैं जो इस क्षेत्र के देशों में रहते हैं। सिखों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थानों में से कुछ तीर्थ स्थान पाकिस्तान में हैं। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली, नेपाल के लुम्बिनी को छोड़कर बौद्ध धर्म के अधिकांश तीर्थ स्थल
भारत में स्थित हैं और बौद्ध धर्म भारत, श्रीलंका, नेपाल और भूटान को जोड़ता है।
धर्म के साथ-साथ, साहित्यिक रस को भी इस क्षेत्र को जोड़ते हुए देखा जा सकता है। नोबेल पुरस्कार विजेता कवि-महर्षि रवींद्रनाथ टैगोर भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब और इकबाल जैसे उर्दू शायरों द्वारा लिखे गए शेर भारत
और पाकिस्तान में तथा इस समूचे क्षेत्र में समान जोश के साथ पढ़े जाते हैं।
उच्चतर घूर्णन-कक्ष में प्रवेश करना
साहित्यिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों के ऐसे प्रभाव में और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण एवं विकास के साझा आवेग द्वारा पुनर्बलित होकर अब स्पष्ट रूप से दक्षिण एशिया का वक्त आ गया है। एक कल्पनाशील पहल के रूप में, प्रधान मंत्री मोदी ने संयुक्त रूप से एक सार्क
उपग्रह विकसित करने का आह्वान किया है जो क्षेत्रीय एकता का एक सशक्त प्रतीक बन सकता है तथा प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए अत्यावश्यक आंकड़े और अर्थव्यवस्था विशेष की तथा इस क्षेत्र की कृषि क्षमता का अभीष्ट लाभ प्राप्त करने के लिए मौसम-विज्ञान संबंधी आंकड़े
प्रदान करने वाला वास्तविक साधन बन सकता है। ऐसे कदम यह दर्शाते हैं कि यदि सार्क समूह चाहे तो वास्तविक रूप से और साथ ही लाक्षणिक रूप से भी, एक अलग घूर्णन-कक्ष में प्रवेश करने के लिए तैयार है। नजर को उठाने, बड़े सपने देखने और यह साबित करने का समय आ गया है कि
क्षेत्रीय एकीकरण के लिए अंतरिक्ष के पार जाने की संभावनाओं के बाद भी संभावनाएं बची रहती हैं। नेताओं को इस सार्क शिखर सम्मेलन को एक संभावित दक्षिण एशियाई पुनर्जागरण के अवसर के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए, और इस क्षेत्र के 1.7 बिलियन लोगों के लिए सामूहिक समृद्धि
का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय मामलों पर केंद्रित एक वेब पोर्टल और ई-पत्रिका इंडिया राइट्स नेटवर्क,www.indiawrites.org तथा इंडिया स्टोरी के मुख्य संपादक हैं।)
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूर्णत: लेखक के स्वयं के विचार हैं।
संदर्भ :
सार्क सचिवालय की आधिकारिक वेबसाइट: http://www.saarc-sec.org/
सार्क शिखर सम्मेलन की घोषणाएं:
http://www.saarc-sec.org/SAARC-Summit/7/
सार्क नेताओं के साथ प्रधान मंत्री की बैठक के संबंध में विदेश सचिव की वार्ता का प्रतिलेखन (27
मई, 2014)
सार्क घोषणा बेहतर शिक्षा को बढ़ावा देती है
अब दक्षिण एशिया की बारी: पड़ौसी को पहले महत्व देना
सार्क : सितारों का तारामंडल बनाना<