लेखक : मनीष चंद
समय की कसौटी पर खरा, हमेशा के लिए मित्र, हर समय साथ देने वाला, विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त – जब कोई भी राजनयिक संबंधों की बात करता है तो भारत और रूस के बीच राजनयिक साझेदारी के विशुद्ध कार्यक्षेत्र एवं रेंज का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि दोनों
ही देश अच्छे समय में तथा अच्छा समय न होने पर भी एक दूसरे के समर्थन के मजबूत स्तंभ के रूप में निरंतर खड़े रहे हैं।
तमिलनाडु में कुडानकुलम परमाणु बिजली संयंत्रअब भारत – रूस साझेदारी
की बहु-स्तरीय मशीनरी एक नया दशकीय विजन आरंभ करने के लिए कृत संकल्प है तथा इसके नवीकरण का एक नया अनुनादी गीत उस समय आरंभ होगा जब भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 11 दिसंबर को रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के साथ अपनी पहली वार्षिक शिखर बैठक करेंगे।
जब से श्री मोदी ने मई में विश्व के सबसे समृद्ध लोकतंत्र की सत्ता संभाली है तब से वह राष्ट्रपति पुतिन से दो बार पहले ही मिल चुके हैं – पहली बार जुलाई में फोर्टलेजा, ब्राजील में ब्रिक्स शिखर बैठक के दौरान अतिरिक्त समय में और उसके बाद नवंबर में ब्रिसबेन,
आस्ट्रेलिया में जी-20 शिखर बैठक के दौरान अतिरिक्त समय में। इन दोनों बैठकों में निजी गर्माहट तथा परस्पर सद्भाव एवं सम्मान प्रचुर मात्रा में दिखाई दिया था। अब, इस निजी कैमिस्ट्री का उस समय गहन होना तय है जब दोनों नेता नई दिल्ली में अपनी पहली पूर्ण वार्ता
करेंगे, जिसका चरमोत्कर्ष अगले दशक में भारत – रूस संबंध के एक आकर्षक विजन के रूप में होगा। भारत के विदेश मंत्रालय में यूरेशिया के प्रभारी संयुक्त सचिव श्री अजय बिसारिया ने कहा कि संयुक्त विजन वक्तव्य ''हमारे दोनों देशों के बीच साझेदारी को गुणात्मक दृष्टि
से नए स्तरों पर ले जाने के लिए एक रोड मैप प्रदान करेगा।'' उम्मीद है कि विविध क्षेत्रों में एक दर्जन से भी अधिक संधियों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे जिसमें रक्षा, परमाणु ऊर्जा, सीमा शुल्क, बैंकिंग एवं ऊर्जा जैसे क्षेत्र शामिल होंगे।
‘विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त’
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, रक्षा एवं परमाणु ऊर्जा के अग्रणी क्षेत्रों से लेकर हाइड्रो कार्बन, व्यापार एवं निवेश तथा सांस्कृतिक सिनर्जी जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच संबंध सही मायने में व्यापक एवं सर्व समावेशी हैं। राष्ट्रपति पुतिन की भारत
यात्रा के दौरान अक्टूबर, 2000 में ''भारत – रूस सामरिक साझेदारी पर घोषणा’’ पर हस्ताक्षर के बाद से वस्तुत: सभी क्षेत्रों में संबंधों में गुणात्मक दृष्टि से बदलाव आए हैं। दिसंबर, 2010 में, सामरिक साझेदारी के स्तर को ऊपर उठाकर इसे ''विशेष एवं विशेषाधिकार
प्राप्त सामरिक साझेदारी’’ के स्तर पर पहुंचाया गया।
छठी ब्रिक्स शिखर बैठक के दौरान अतिरिक्त समय में फोर्टालेजा, ब्राजील में रूस के
राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी (जुलाई, 2014)और राष्ट्रपति महोदय की आगामी यात्रा में दोनों देश एक आकर्षक संयुक्त विजन वक्तव्य के माध्यम से अपने बहु-आयामी संबंधों में एक नए चरण की शुरूआत करेंगे। इस संदर्भ
में, इस बात को रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि भारत एवं रूस के नेताओं के बीच वार्षिक शिखर बैठक, जिसकी शुरूआत 2000 में हुई, किसी विफलता के बगैर नियमित रूप से आयोजित हुई है तथा यह उस विशेष महत्व को रेखांकित करती है जिसे दोनों देश विदेश नीति की अपनी समग्र प्राथमिकताओं
में एक – दूसरे को प्रदान करते हैं। सामरिक साझेदारी की सुचारू मशीनरी सबसे बड़ी साझेदारी में से एक है जिसे भारत ने विश्व के किसी देश के साथ स्थापित किया है जिसमें द्विपक्षीय वार्ता के प्रमुख क्षेत्रों को शामिल करते हुए दो स्तरीय तंत्र हैं। इनमें व्यापार,
आर्थिक, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय एवं सांस्कृतिक सहयोग पर अंतर – सरकारी आयोग (आई आर आई जी सी – टी ई सी) जिसकी सह-अध्यक्षता भारत के विदेश मंत्री तथा रूस के उप प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है, तथा सैन्य तकनीकी सहयोग पर अंतर – सरकारी आयोग (आई आर आई जी सी –
एम टी सी) जिसकी सह-अध्यक्षता भारत और रूस के रक्षा मंत्रियों द्वारा की जाती है।
रक्षा संबंध
भविष्य को ध्यान में रखते हुए रक्षा एवं परमाणु ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग पहले से ही मजबूत है तथा आगामी शिखर बैठक स्तरीय वार्ता में इसे एक नवीकृत गति प्राप्त होगी। भारत रूस से अपने सैन्य हार्डवेयर का 60 प्रतिशत से अधिक आयात करता है तथा हालांकि
नई दिल्ली हथियारों की अपनी आपूर्ति में विविधता ला रहा है, इसके बावजूद आने वाले वर्षों में इस स्थिति के बने रहने की पूरी संभावना है। रक्षा संबंध – जो भारत-रूस संबंध का आधार है – ने क्रेता – विक्रेता रूपरेखा से अधुनातन रक्षा प्रौद्योगिकी एवं शस्त्र प्रणालियों
के संयुक्त अनुसंधान, विकास एवं उत्पादन के लिए सतत कार्यक्रम में शिफ्ट के साथ एक नई गतिशीलता प्राप्त की है। संयुक्त विकास एक नया मंत्र है जो ब्रह्मोस मिसाइलों, पांचवीं पीढ़ी के फाइटर एयरक्राफ्ट, मल्टी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट तथा भारत में सुखोई-30 एयरक्राफ्ट
तथा टी-90 टैंक के लाइसेंसी उत्पादन में प्रतिबिंबित होता है।
ऊर्जा राजनय
द्विपक्षीय संबंधों में सामरिक सहजता चल रहे असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग में प्रतिबिंबित होती है, जहां रूस भारत का मनपसंद साझेदार है। कुडानकुलम परमाणु बिजली संयंत्र (के के एन पी पी) की पहली यूनिट, जो जुलाई, 2013 में चालू हुई तथा 7 जून, 2014 को अपनी पूर्ण उत्पादन
क्षमता प्राप्त की, सफल परमाणु सहयोग के क्षेत्र में एक आमूल परिवर्तनकारी काल का प्रतीक है। कुडानकुलम परमाणु बिजली संयंत्र की दूसरी यूनिट के शीघ्र ही चालू हो जाने की उम्मीद है। ऐसा प्रतीत होता है कि रूस अगले कुछ वर्षों में कम से कम एक दर्जन परमाणु रिएक्टर
स्थापित करने वाला है। आगामी शिखर बैठक में, हम ऊर्जा सहयोग पर एक संयुक्त दस्तावेज की उम्मीद कर सकते हैं जिसमें यह शामिल होगा कि रूस भारत को नए तेल एवं गैस फील्ड का प्रस्ताव करेगा।
आर्थिक संबंधों को सक्रिय करने पर फोकस
सामरिक संबंध के मजबूत होने के साथ ही इस बार प्रमुख फोकस उपयुक्त ढंग से आर्थिक संबंधों में वृद्धि करने पर होगा जो एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें निष्पादन अपेक्षा से कम रहा है तथा यह मजबूत सामरिक साझेदारी के स्तर के अनुरूप नहीं है जिसे दोनों देशों ने समय के साथ
निर्मित किया है। एक अनुमान के अनुसार, भारत – रूस द्विपक्षीय व्यापार 10 बिलियन डालर के आसपास है। इसलिए, दोनों देश बाधाओं को दूर करने का प्रयास करेंगे तथा उम्मीद है कि ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे जो अन्य पहलों को संपूरित करेंगी जिससे भारत प्रधानमंत्री
मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में रूस एक महत्वपूर्ण साझेदार बन पाएगा। भारत – रूस सी ई ओ मंच के साथ प्रधानमंत्री मोदी एवं राष्ट्रपति पुतिन द्वारा संयुक्त वार्ता आर्थिक संबंधों को ऊपर उठाने पर इस नवीकृत फोकस को रेखांकित करेगी।
हमेशा के लिए हीरे
हीरे हमेशा के लिए होते हैं और शब्दश: यह भारत – रूस संबंध के बारे में सच है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि एक वैश्विक डायमंड हब के रूप में भारत के उत्थान को प्रेरित करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन एक नई महत्वाकांक्षी योजना का अनावरण करेंगे तथा रूस के डायमंड जाइंट
अलरोसा तथा भारत के हीरा व्यापारियों के बीच कुछ संधियों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे जिससे भारत के हीरा व्यापारी रूस से सीधे स्टोन प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे।
अंतरिक्ष : गगनचुंबी ऊंचाई
अंतरिक्ष के क्षेत्र में, आकाश वस्तुत: सीमा है। अंतरिक्ष में पहला भारतीय मिशन लांच करने से लेकर मानवयुक्त चांद मिशन तथा ग्लोनास एवं अन्य महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अप्लीकेशन पर चल रहे सहयोग से स्पष्ट है कि बाहरी अंतरिक्ष भारत – रूस अंतरिक्ष सहयोग का एक दैदिप्यमान
फ्रंटियर बना रहेगा।
स्मार्ट सोच : सांस्कृतिक संबंध
स्मार्ट राजनय केवल बिग टिकट सामरिक सिद्धांतों के बारे में नहीं है, अपितु लोगों को एक साथ लाने तथा सांस्कृतिक ऊर्जा का उपयोग करने के बारे में भी है। सांस्कृतिक, शैक्षिक आदान – प्रदान पर्यटन के संवर्धन के भी नए विजन वक्तव्य में प्रमुखता से शामिल होने की
उम्मीद है। अगर संस्कृति की बात करें तो शाश्वत रोमांटिक राजकपूर आज भी भारत – रूस संबंधों के मानसिक लैंड स्केप के ऊपर मंडराते नजर आते हैं। राजकपूर से स्थायी प्रेम अब रूस में वालीवुड के साथ एक सतत अफेयर के रूप में फल-फूल रहा है। अग्रणी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों
सहित रूस की अनेक संस्थाएं हिंदी के अलावा तमिल, मराठी, गुजराती, बंगला, उर्दू, संस्कृत एवं पाली जैसी भाषाएं पढ़ाती हैं। भारतीय नृत्य, संगीत, योग तथा आयुर्वेद की रूस में लोकप्रियता आसमान पर है।
पुस्तकों एवं साहित्य के अलावा किसी अन्य क्षेत्र में यह गहन सभ्यतागत मेल-जोल बेहतर ढंग से परिलक्षित नहीं होता है। महात्मा गांधी तथा लेखक – संत लियो टालस्टॉय के बीच बौद्धिक आदान – प्रदान लेजेंड्री है। रूस की अनेक पीढि़यों में रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रशंसक
हैं तथा रूसी साहित्य के टालस्टॉय, दोस्तोवस्की एवं पुश्किन जैसे महान लेखकों को आज भी भारत में पूरे जोश के साथ पढ़ा जाता है। यह बहु-आयामी सांस्कृतिक संबंध भारत में रूसी संस्कृति महोत्सव के रूप में परिलक्षित होता है तथा अगले साल रूस में भारतीय संस्कृति
महोत्सव में इसे नए रंग प्राप्त होंगे।
लंबी दृष्टि : आगे की राह
भारत – रूस संबंधों को कौन सी बातें विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त बनाती हैं? और क्या वे बदलती भू-राजनीति की धूर्त गणनाओं के बीच अपनी अनोखी चमक को बरकरार रख पाएंगे? इस प्रश्न का उत्तर जोरदार आवाज में हां है, हाल की कुछ घटनाओं के बावजूद जैसे कि पाकिस्तान
के साथ एक रक्षा संधि करने के लिए रूस का विवादास्पद निर्णय। परंतु समग्र तस्वीर कुल मिलाकर ज्यादातर सकारात्मक है। भारत – रूस संबंधों को जो चीजें स्थायी प्रासंगिकता एवं मजबूती प्रदान करती हैं वह सामरिक क्षेत्रों में सहयोग की विविध रेंज तथा महत्वपूर्ण क्षेत्रीय
एवं वैश्विक मुद्दों पर संदर्शों में समानता है, जो बहु-ध्रुवत्व एवं समावेशी विश्व व्यवस्था में साझे विश्वास पर आधारित है।
राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा से पूर्व, भारत ने इस बात को दोहराया है कि यह रूस के खिलाफ किसी भी प्रतिबंध का समर्थन नहीं कर सकता है। अपनी ओर से, मास्को ने नई दिल्ली के साथ अपनी विशेष मैत्री की फिर से पुष्टि की है। प्रधानमंत्री मोदी तथा राष्ट्रपति पुतिन दोनों
ही दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने के लिए जाने जाते हैं तथा वे दोनों देशों के बीच जीवंत विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी के प्रबल समर्थक हैं। विविध क्षेत्रों में हितों में समानता के इतने विशाल क्षेत्र तथा दिल एवं दिमाग के गहन कनेक्शन के साथ, ऐसा लगता है
कि भारत – रूस संबंध इस बहुत विशेष साझेदारी की पूर्ण क्षमता को साकार करने के लिए नए विजन एवं नए विचारों को प्रस्तुत करने के लिए कृत संकल्प है।
(मनीश चंद इंडिया राइट्स नेटवर्क
www.indiawrites.org के मुख्य संपादक हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं इंडिया स्टोरी पर केंद्रित एक पोटर्ल एवं ई-जर्नल है।)
- इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के निजी विचार हैं।
संदर्भ :
रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा पर मीडिया वार्ता का प्रतिलेखन (5 दिसंबर, 2014)
14वीं भारत – रूस वार्षिक शिखर बैठक पर संयुक्त वक्तव्य : वैश्विक शांति एवं स्थिरता के लिए गहन होती सामरिक साझेदारी
14वीं भारत – रूस वार्षिक शिखर बैठक के दौरान हस्ताक्षरित द्विपक्षीय दस्तावेजों की सूची (21 अक्टूबर, 2013)
भारत – रूस संबंधों के लिए पुतिन पावर : नया विजन, डायमंड स्पार्कल के साथ
मोहिनी अट्टम महोत्सव में रूसी नर्तकों ने जादू कर दिया
क्या रूस की अंतरिक्ष एजेंसी के साथ हमारी भावी परियोजनाओं पर चर्चा होगी – इसरो प्रमुख