लेखक : सी. राजा मोहन
चूंकि प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशी नीति के लिए अपने से विश्व को हतप्रभ कर दिया इसलिए एशिया ने उनकी सरकार की कूटनीति के संचालन में अनिवार्य रूप से केंद्र स्थान ग्रहण कर लिया है। जब श्री मोदी मई, 2014 के अंत तक भारत के प्रधानमंत्री बन गए तो इस बात की व्यापक
तौर पर उम्मीद की गई थी कि श्री मोदी का पूरा जोर भारत की आर्थिक वृद्धि को सुदृढ़ बनाना होगा जिसकी रफ्तार दशक की शुरूआत में धीमी पड़ गई थी। हालांकि, मोदी के लिए एक दूसरे से कुटनीति और आर्थिक विकास एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
वर्ष 2014 की दूसरी छमाही में सरकार की विस्तारवादी कूटनीति की सक्रियता के बारे में बोलते हुए विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने संसद को बताया कि ‘’प्रधानमंत्री जी ने विदेश नीति जो राष्ट्रीय आर्थिक विकास को गति प्रदान करने की हमारी सरकार की प्राथमिकता लक्षा
से जुड़ा हुआ है, के लिए सकारात्मक और नवोन्मेषी दृष्टिकोण अपनाए जाने की सिफारिश की। भारत को पूंजी, प्रौद्योगिकी, संसाधन, ऊर्जा, बाजार और कौशल तक पहुंच, एक सुरक्षित वातावरण, पड़ोसी का शांतिपूर्ण व्यवहार तथा एक स्थिर वैश्विक व्यापार प्रणाली की आवश्यकता
है।''
जब भारतीय कूटनीति को भारतीय विकास की सेवा से संबद्ध कर दिया गया तो अपनी गतिशील अर्थव्यवस्था के साथ एशिया विदेशी कार्यालयों के लिए शीर्ष प्राथमिकता का विषय बन गया है। 1990 की शुरूआत में, प्रधानमंत्री श्री नरसिंहराव ने भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के
एक भाग के रूप में एशिया से जोड़ने के लिए लुक ईस्ट नीति का समर्थन किया था। लगभग 25 वर्ष बाद श्री मोदी जी ने भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पुन: एशिया की ओर रूख किया। पूर्व में सक्रिय रहने की नीति भारतीय / एशिया नीति में नया जोश और नया उद्देश्य
समाहित करने के बारे में की है।
मध्यवर्ती दशकों में इस क्षेत्र में भारत का आर्थिक सरोकार पर्याप्त रूप से बढ़ा है और दिल्ली आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ) द्वारा संचालित क्षेत्रीय संस्थाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत ने आशियान
देशों के साथ अपनी भागीदारी की पूरी क्षमताओं का उपयोग नहीं किया था।
श्री मोदी इस क्षेत्र में अपनी व्यक्तिगत रूचि के कारण इसे बदलने में सक्षम हैं। एक दशक से अधिक समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री
के रूप में श्री मोदी ने इस क्षेत्र की व्यापक दौरे किए। उनके भ्रमण किए गए स्थानों में चीन, जापान, सिंगापुर और आस्ट्रेलिया शामिल थे जहां पर इन्होंने इस क्षेत्र से गुजरात में निवेश हेतु सक्रिय प्रयास किया था। इस क्षेत्र के शीर्ष व्यवसाई राज्य में विकास
के स्तर और व्यवसाय करने में सुविधा के कारण प्रभावित हुए थे। अत: पूर्वी एशियाई क्षेत्र ने मोदी सरकार होने का स्वागत किया और आर्थिक विकास के उनके एजेंडा को हृदय से स्वीकार किया।
उनके जापान भ्रमण के दौरान जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अगले पांच वर्षों में भारत में लगभग 35 विलियन डालर की सहायता देने और निवेश करने का वायदा किया। भारत के अपने दौरे के दौरान चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग ने आगामी वर्षों में भारत में लगभग 20 बिलियन
डालर का निवेश करने का लक्ष्य निर्धारित किया। चूंकि श्री मोदी के नेतृत्व में भारत के व्यावसायिक और आर्थिक वातावरण में सुधार हुआ इसलिए कोरिया, आस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों सहित पूरे पूर्वी एशिया क्षेत्र से और निवेश किए जाने की संभावना है। इन
निवेशों, जैसा कि दिल्ली को उम्मीद है, का महत्वपूर्ण हिस्सा भारत की भौतिक अवसंरचना का आधुनिकीकरण करने में प्रयुक्त होगा।
श्री मोदी ने भारत में हाई स्पीड रेल का विकास करने में जापान और चीन दोनों ही देशों में रूचि व्यक्त की है।
टोक्यो और बीजिंग दोनों के पास भारत और पूर्वी एशिया के बीच सीमापार परिवहन गलियारा निर्मित करने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। चीन तथा कथित बी सी आई एम कोरिडोर जो चीन के दक्षिण - पश्चिमी प्रांत यूनान को म्यांमार, बांग्लादेश और भारत से जोड़ेगा, का विकास
करने में भारतीय भागीदारी के लिए दबाव डाल रहा है।
टोकियो ने पूर्वोत्तर राज्यों में सड़क नेटवर्क का आधुनिकीकरण करने तथा समुद्रतटीय भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच मरीन गलियारा
विकसित करने का वायदा किया है। भूमि और समुद्र के बीच कनेक्टिविटी भी नई सरकार की आशियान में अपनी रूचि ययुक्त करने की प्रमुख प्राथमिकता है।
श्री मोदी जी ने भारत की पूर्व की ओर चलो नीति के भौगोलिक परिदृश्य का भी महत्वपूर्ण ढंग से विस्तार किया है। पिछले 28 वर्षों
में वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने आस्ट्रेलिया का दौरा किया है। मोदी जी पिछले 33 वर्षों में फीजी जहां पर भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या बहुत अधिक है, का दौरा करनेवाले पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। मोदी जी ने फीजी में प्रशांत द्विपसमूह फोरम के
सभी नेताओं की बैठक का संचालन भी किया।
श्री मोदी और श्रीमती सुषमा स्वराज ने फोरमों में प्रभावशाली ढंग से शामिल होकर और साइंस सभ्यता संबंधों पर निर्मित सुदृढ़ प्रतिबद्धता के माध्यम से इस क्षेत्र में अपनी सहजशक्ति को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया है। नई सरकार के लिए एशिया के साथ सांस्कृतिक और
आध्यात्मिक संबंधों को नवीकृत करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि भौतिक संबंधों को नवीकृत करना।
मोदी सरकार पूर्वी एशिया में उभरती हुई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए भी पूर्णत: तैयार है। मोदी ने पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में एक स्थिर और समृद्ध व्यवस्था निर्मित करने में आशियान की केंद्रीय स्थिति को पुष्ट किया है। उन्होंने प्रादेशिक
विवाद शक्ति के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं, को 19वीं शताब्दी के विस्तारवादी अवधारणा के प्रति सचेत किया है और विकास पर ध्यान केन्द्रीत करने पर बल दिया है। दक्षिण चीन सागर में प्रादेशिक विवाद पर श्री मोदी समुद्र और वायु में नेविगेशन स्वतंत्रता में अपनी
गहरी रूचि व्यक्त करने में दृढ़ता दिखाई है। उन्होंने समुद्री कानून के संबंध में संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के सिद्धांतों का पालन करने के लिए सभी पक्षों के महत्व को रेखांकित किया है।
पिछली सरकारों के अंतर्गत दिल्ली की लुक ईस्ट पालिसी में मरीन सुरक्षा और एशिया के साथ भारत की रक्षा भागीदारी विस्तार करने की आवश्यकता को केंद्रीय महत्व के विषय के रूप में माना गया था। मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट पालिसी इन उद्देश्यों को तात्कालिकता के नए
भाव से देश रही है। इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण शक्ति परिवर्तन और संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और जापान सहित प्रमुख शक्तियों के बीच संबंधों की बदली अनिश्चितता के बीच इस क्षेत्र में व्यापक भारतीय भारतीय सुरक्षा की मांग बढ़ी है।
पिछले कुछ महीने में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया और वियतनाम के साथ रक्षा समणैतों को गहराई प्रदान की है। तथापि, दिल्ली इस क्षेत्र में अपनी रक्षा कूटनीति को एक बड़ी शक्ति के प्रति दूसरी शक्ति के साथ टकराव के रूप में नहीं देखता है। भारत का
उद्देश्य सभी शक्तियों को क्षेत्रीय संस्थाओं को सुदृढ़ करने और एशिया और इसके समूह में स्थिर शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए प्रभावी योगदान देने हेतु लगाना है।
(सी. राजामोहन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रतिष्ठित
शोधार्थी हैं तथा इंडियन एक्सप्रेस के लिए संपादक का कार्य भी करते हैं)