लेखक : श्याम सरन
आज का हमारा भूमंडलीकृत एवं आपस में जुड़ा हुआ विश्व व्यापक मायनों में संपर्क (कनेक्टिविटी) के इर्द-गिर्द घूम रहा है। इसमें सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों और समुद्री बंदरगाहों के रूप में भौतिक अवसंरचना शामिल है जो माल, सेवाओं, लोगों और विचारों को एक राष्ट्र
की सीमा के भीतर और उसके बाहर लाने-ले जाने में सक्षम बनाती है। हमारे इस डिजिटल युग में, वर्चुअल हाइवे भी मौजूद हैं जो भौतिक सामानों और सेवाओं के कुशल आवागमन में सक्षम बनाता है। ये हाइवे परंपरागत रूप से सेवाओं का प्रावधान करने तथा मूल्यवान विचारों का आदान-प्रदान
करने के लिए पारेषण चैनलों का काम करते हैं। परंतु भौतिक और डिजिटल अवसंरचना तैयार कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। हमें नीतिगत, विनियामक और प्रक्रियागत क्षेत्रों में इसके लिए सहायक सॉफ्टवेयर की भी जरूरत है ताकि देश के भीतर और राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर भी त्वरित
आवागमन सुसाध्य हो सके। संपर्क निकटता को बढ़ाता है और निकटता एक ऐसी परिसम्पत्ति है जो समृद्धि लाती है। राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर, संपर्क राष्ट्रीय बाजार के सृजन के लिए अपरिहार्य है। जो राष्ट्र इस व्यापक अर्थ में एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, वे आधुनिक
वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रामाणिक क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भागीदार बनने में सक्षम हैं। यदि संपर्क न हो अथवा अपर्याप्त हो तो एक देश कतिपय माल और सेवाओं के उत्पादन में तुलनात्मक रूप से जितना लाभ की स्थिति में रह सकता था, वह अपेक्षाकृत
अधिक लेन-देन लागतों के कारण उतना नहीं रह सकेगा अथवा वह लाभ समाप्त हो जाएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत ने अपने विशाल क्षेत्र के अलग-अलग भागों को अधिक विस्तृत और प्रभावशाली परिवहन अवसंरचना के माध्यम
से जोड़ने में हाल ही के वर्षों में पर्याप्त रूप से प्रगति की है। उदाहरणार्थ, देश के सड़क मार्गों की कुल लंबाई वर्ष 1951 में 4 लाख किलो मीटर थी जो बढ़कर वर्ष 2013 में 4.6 मिलियन किलो मीटर हो गई है। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है। तथापि, सड़कों
की गुणवत्ता में विविधता है जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़कों के एक तिहाई से भी कम है। इसके अलावा, राजमार्गों पर कारगो यातायात अंतर-राज्य क्रॉसिंग पॉइंटों पर चुंगी नाकों पर रोक दिया जाता है। मुंबई से कोलकाता जाने वाले एक कारगो ट्रक को रास्ते में 36 चेक
पॉइंटों पर बात करनी पड़ती है। अमेरिका में, सेनफ्रांसिस्को से न्यूयॉर्क तक की यात्रा में केवल एक बेरियर पार करना पड़ता है। जबकि हमारे देश में रेल भाड़े में अपेक्षाकृत कम बाधाएं हैं और आकार के मामले में यह सस्ता पड़ता है, फिर भी रेल नेटवर्क में सड़क नेटवर्क
की तुलना में कम वृद्धि हुई है और फीडर सेवाओं ने गति नहीं पकड़ी है। प्रस्तावित हाई स्पीड फ्रेट कॉरीडोर से देश में रेल परिवहन में बड़ा और महत्वपूर्ण सुधार होने की संभावना है जो मुम्बई से दिल्ली तक और फिर पूर्व में कालकाता तक जाएगा। जल आधारित परिवहन हमारे
देश में कम उपयोग होने लगा है फिर भी इसे पुन: बहाल किया जा रहा है। ब्रह्मपुत्र बेसिन में आधुनिक नदी परिवहन के लिए विश्व बैंक की सहायता से एक परियोजना बनाई गई है और यह भी बांग्लादेश और भारत को पुन: जोड़ेगा।
इस संदर्भ में, हमें भारत में मोबाइल टेलीफोन के साथ आई संचार क्रांति को ध्यान रखना चाहिए। अब देश में 900 मिलियन से अधिक मोबाइल
उपभोक्ता हैं और यह संख्या प्रतिवर्ष बढ़ रही है। वे संपर्क, नए बाजारों के सृजन, उत्पादकों को उपभोक्ताओं से अधिक प्रभावशाली ढंग से जोड़ने और समुदायों के बीच विशाल मात्रा में डाटा के निर्बाध प्रवाह में सक्षम बनाने के लिए मंच भी तैयार करते हैं। यह जो निकटता
सृजित करता है, वह आर्थिक गतिविधि पर बहुगुणक प्रभाव डाल सकती है और डालती भी है।
अपने उप-महाद्वीपीय पड़ौस की बात करें, तो यह बात सही है कि हमारे देश 1947 में आपस में जितने एक दूसरे से जुड़े हुए थे, अब उससे कम
जुड़े हुए हैं। अनेक बड़े मुख्य परिवहन मार्ग, जिनमें रेल, सड़क और जल परिवहन शामिल हैं, सभी 1947 में विभाजन के बाद बाधित हो गए थे। यहां तक कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ कुछ सीमा-पार परिवहन संपर्कों को पुन: स्थापित किया जा रहा है, फिर भी वे सीमा पार स्थानों
पर भारी सीमा शुल्कों, आव्रजन और सुरक्षा प्रक्रियाओं के कारण उतने लाभकारी नहीं हो रहे हैं जितने होने चाहिए। सहायक बैंकिंग, परीक्षण और निरीक्षण सुविधाओं के अभाव के चलते कारगो आवागमन को भी रोक दिया जाता है। अब पड़ौसी देशों के साथ सीमाओं पर इंटीग्रेटेड चेकपॉइंटों
(आईसीपी) का एक नेटवर्क स्थापित करने की एक महत्वाकांक्षी भारतीय योजना के माध्यम से इन मुद्दों का समाधान किया जा रहा है। नव गठित भारतीय भू-बंदरगाह प्राधिकरण (एलपीएआई) द्वारा स्थापित किए जा रहे ये इंटीग्रेटेड चेकपॉइंट (आईसीपी) प्रवास, सीमा शुल्क, सुरक्षा,
भंडारण, फाइटो-सेनीटरी परीक्षण सुविधाओं के साथ-साथ बैंकिंग एवं विनिमय सुविधाओं को एक ही स्थान पर संगठित करेंगे। व्यापारियों, ट्रकरों और अन्य प्रकार के यात्रियों के कल्याण के लिए पर्याप्त पार्किंग, बॉर्डिंग एवं लॉजिंग और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध
होंगी। ऐसा एक इंटीग्रेटेड चेकपॉइंट (आईसीपी) भारत-पाकिस्तान सीमा पर अटारी में स्थापित किया जा चुका है। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यामां से लगती भारतीय सीमाओं पर कई अन्य ऐसे इंटीग्रेटेड चेकपॉइंटों (आईसीपी) का कार्यान्वयन विभिन्न चरणों में है। भारत-म्यामां
सीमा पर तमू-मोरेह बॉर्डर पॉइंट पर इंटीग्रेटेड चेकपॉइंट (आईसीपी) पहले से ही निर्माणाधीन है। आधुनिक राजमार्गों, और जहां कहीं आवश्यक हो, वहां रेलमार्ग संयोजन के मामले में इन देशों के साथ बैक-एंड संपर्क भी मुख्यत: भारतीय निधियों से स्थापित किए जा रहे हैं। इस
संबंध में भारत, म्यामां और थाईलैण्ड को जोड़ने वाला प्रस्तावित त्रिपक्षीय राजमार्ग और हमारे पूर्वोत्तर में मिजोरम और बंगाल की खाड़ी के पार कोलकाता के साथ म्यामां सितवे बंदरगाह को जोड़ने वाले कलाडन मल्टी-मॉडल राजमार्ग विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारत-नेपाल
और भारत-भूटान सीमाओं के पार कई राजमार्गों का स्तरोन्नयन किया जा रहा है और नए रेल संपर्कों की योजना बनाई जा रही है। ये परिवहन संपर्क एक ऐसे दक्षिण एशिया के स्वप्न को साकार करेंगे जहां माल, लोगों और विचारों का राजनैतिक सीमाओं से परे मुक्त आवागमन होता हो।
दक्षिण एशिया के नेताओं ने 2010-2020 के दशक को इस क्षेत्र में ‘संपर्क के दशक’ के रूप में घोषित किया है। यह अपने आप में एक बड़ा कदम है क्योंकि इसमें साझा समृद्धि के लिए संपर्क के महत्व को दी गई राजनैतिक सहमति परिलक्षित होती है। दो महत्वपूर्ण करारों पर चर्चा
की गई है और ये अंगीकृत किए जाने के लिए तैयार हैं। इनमें से एक है मोटरवाहन करार और दूसरा है रेलमार्ग करार। जब ये करार कार्यान्वित होंगे, तब ये राष्ट्रीय सीमाओं के पार सामान और लोगों के सहज आवागमन को सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
भारत ने आसियान देशों के साथ अपने संपर्क को भी प्राथमिकता दी है। भारत-म्यामां परिवहन परियोजनाएं महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि म्यामां
दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भारत का प्रवेश द्वार है। आसियान की अपनी संपर्क योजना है और भारत अपनी स्वयं की परिवहन अवसंरचना विकास योजनाओं को आसियान के साथ जोड़ने के लिए काम कर रहा है। इनमें सीमा-पार रेल एवं सड़क संपर्क, सामुद्रिक, वायुमार्गीय एवं डिजिटल संपर्क
शामिल हैं। इन्हें बेहतर संभारतंत्रीय एवं प्रभावी सीमा-स्वीकृतियों के साथ अनिवार्यत: जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा होने पर ही भारत के लिए उन क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भाग लेना संभव होगा जो आम तौर पर आसियान एवं एशिया प्रशांत में पहले से ही उच्च
विकसित हैं।
अंततोगत्वा भारत को मन:स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत है। हमें राष्ट्रीय सीमाओं को ऐसी अभेद्य दीवारों के रूप में देखना बंद करना होगा जिनके पीछे हम खुद को उस पार के शत्रुतापूर्ण प्रभावों से बचाते हैं, अपितु उन्हें ऐसे "संयोजकों" के रूप में देखना होगा जो भारत
को अपने पड़ौस के और उनके पार के क्षेत्र और दुनिया के निकट लाते हैं। फिर सीमा-पार संपर्क विकास की इच्छाओं के निर्बाध प्रवाह के लिए पारेषण बेल्ट बन जाते हैं। इस प्रकार परिवहन कॉरीडोर आर्थिक कॉरीडोर बन जाते हैं। अतीत के झरोखे से देखें तो भारत मध्य एशिया से
जुड़े हुए प्राचीन व्यापारिक मार्गों के सीमा-पार सड़क मार्गों पर अपनी भौगोलिक स्थिति से लवरेज एक फल-फूल रही सभ्यता थी। हिंद महासागर के आर-पार भारत अपने प्रायद्वीपीय स्वरूप के कारण पूर्व और पश्चिम दोनों के लिए मॉनसून आधारित सामुद्रिक मार्ग का केंद्र भी
था। भारत फला-फूला क्योंकि यह सभी ओर से जुड़ा हुआ राष्ट्र था। भारत का भविष्य अपने ही विश्वव्यापी अतीत से सीख लेने में निहित है।
(श्याम सरन भारतीय विदेश सेवा के 1970 बैच के अधिकारी है जिहोने विदेश सचिव के रूप मे भी कार्य किया
)