लेखक : राजीव भाटिया
अफ्रीका और भारत के लोग एक तिहाई मानव जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सदियों से एक – दूसरे को जानते हैं। उपनिवेश काल में शोषण एवं अन्याय के पीडि़त के रूप में वे एक – दूसरे के लिए सहानुभूति और एक साझे उद्देश्य अर्थात प्रभुत्व एवं भेदभाव से आजादी के माध्यम से जुड़े थे। हाल के समय में उन्होंने सामाजिक – आर्थिक विकास हासिल करने एवं न्यायोचित वैश्विक व्यवस्था के लिए साथ मिलकर संघर्ष किया है। तथापि, ऐसा माना जाता है कि उनके संबंध में जागरूकता का अभाव एवं अंतराल है जिसे दूर करने की जरूरत है।
भारत – अफ्रीका भागीदारी के तीन स्तंभों अर्थात सरकार दर सरकार (जी टू जी), व्यवसाय दर व्यवसाय (बी टू बी) और जन दर जन (पी टू पी) संबंधों में से तीसरा स्तंभ कई तरीकों से अनोखा है। यह संबंध बाबा आदम के जमाने से चला आ रहा है तथा भविष्य में इसमें विस्तार की प्रचुर संभावनाएं हैं।
डायसपोरा
इतिहासकार हमें बताते हैं कि अफ्रीका के साथ मूल संबंध स्थापित करने की पहल भारतीय उप महाद्वीप के लोगों की ओर से शुरू हुई। जिज्ञासा, जोखिम उठाने की भावना तथा व्यापार करने एवं सांस्कृतिक विनिमय को व्यवस्थित करने की इच्छा साहसी भारतीयों को हिंद महासागर के रास्ते अफ्रीका के पूर्वी एवं दक्षिणी तटों पर तथा पूरे पश्चिम एशिया में और भूमध्यसागर से उत्तरी अफ्रीका तक ले गई। उपनिवेश काल में करारबद्ध मजदूरों एवं ‘आजाद’ भारतीयों का काफी पलायन हुआ। उपनिवेशोत्तर काल में भारतीयों ने इस महाद्वीप के अन्य भागों को भी खोजा।
महात्मा गांधी, जिन्होंने अफ्रीका की धरती पर सत्याग्रह आंदोलन की तकनीक खोजी, सत्य एवं अहिंसा के अपने नए हथियारों का लाए तथा भारत को आजाद कराने में मदद की। उन्होंने अफ्रीका के नेताओं की आगामी पीढि़यों पर अपनी एक छाप छोड़ी। वह दोनों पक्षों के बीच सबसे प्रभावशाली कड़ी बने हुए हैं।
अनुमान है कि अफ्रीका में भारतीय डायसपोरा की संख्या 2.6 मिलियन के आसपास है तथा यह अफ्रीका के 46 देशों में फैला है। यह विश्व में कुल भारतीय डायसपोरा का लगभग 12 प्रतिशत है। भारतीय मूल के व्यक्तियों (पी आई ओ) का सबसे अधिक संकेंद्रण दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, रियूनियन द्वीपसमूह, कीनिया, तंजानिया और मोजांबिक में है, परंतु पश्चिम एवं उत्तरी अफ्रीका के भागों में भी भारतीय मूल के व्यक्तियों एवं प्रवासी भारतीयों (एन आर आई) की उपस्थिति उल्लेखनीय हो रही है।
पलायन एक तरफा गली नहीं रही है। अफ्रीका के लोग भी भारत आए तथा उनमें से कई यहां बस गए। अक्सर सिद्दियों का हवाला दिया जाता है जो दक्षिणी अफ्रीका की बांटु जनजातियों के वंशज हैं। वे पुर्तगाली उपनिवेशवादियों एवं अरब सौदागरों द्वारा इस उप महाद्वीप में लाए गए। सिद्दियों ने गुलामों, भाड़े के सैनिकों, नाविकों, सैनिकों तथा शाही गार्ड के रूप में काम किया। उनमें से एक अर्थात मलिक अंबर मराठों को सैन्य गुरु बना था।
अक्टूबर – नवंबर 2014 में भारतीयों को ‘भारत में अफ्रीकी : एक पुनर्खोज’ नामक एक विशेष प्रदर्शनी का लुत्फ उठाने का दुर्लभ विशेषाधिकार प्राप्त हुआ था। इसे स्कूमबर्ग सेंटर ऑफ न्यू यार्क और आई जी एन सी ए के बीच सहयोग के माध्यम से लाया गया था। इसमें दिखाया गया था कि कैसे अति प्राचीन काल से भारतीय और अफ्रीकी एक साथ रह रहे हैं। इस समय भारी संख्या में अफ्रीकी विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं में छात्र के रूप में और प्रशिक्षणार्थी के रूप में भारत में रह रहे हैं तथा असंख्य क्षेत्रों में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। राजनयिकों की तरह डायसपोरा समुदाय भारत तथा अफ्रीकी देशों के बीच संचार की बहुमूल्य कड़ी एवं सेतु हैं। उनका स्वागत करने तथा पोषण करने की जरूरत है। हम भारतवासियों को इस संबंध में गंभीरता से कुछ गृह कार्य करना होगा।
पर्यटन
भूमंडलीकरण के इस युग में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक काफी आय का स्रोत होने के अलावा, किसी देश के अस्थाई राजदूत होते हैं। दोनों ओर से पर्यटन को बढ़ावा देना उद्योग एवं सरकारों दोनों के लिए उच्च प्राथमिकता का कार्य होना चाहिए। चुनिंदा अफ्रीकी देशों – मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका के देश – में भारतीय पर्यटकों की संख्या नियमित रूप से – हालांकि धीमी गति से बढ़ रही है। भारत भी काफी अधिक संख्या में अफ्रीकी पर्यटकों का स्वागत करने की स्थिति में है।
जिस चीज की जरूरत है वह एक अनुकूल रणनीति है जो नागर विमानन के नए लिंक के सृजन, पर्यटन के नवाचारी पैकेज एवं सोच में परिवर्तन पर अपना ध्यान केंद्रित करे। दोनों पक्षों को यह महसूस करना चाहिए कि पर्यटकों के लिए आकर्षक गंतव्य प्रदान करने के लिए दोनों देशों के पास बहुत कुछ है।
संस्कृति
दोनों लोगों को करीब लाने के साधन के रूप में कला एवं संस्कृति की भूमिका के क्षेत्र एवं प्रभाव का तेजी से विस्तार हो रहा है। भारतीय फिल्में, कलाएं, नृत्य, संगीत, साहित्य और शिल्प अफ्रीका के लगभग सभी भागों में पहुंच गए हैं। उनकी लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है। "कैनोइस्ट इन कैरो”, प्रतिष्ठित नीति सेठी बोस और फकीर हसन भारतीय फिल्मी गीतों को जोर से गाते हैं। या कहें कि सूडान में ‘भारत’ तथा सूडान के लोग अपना मनपसंद बालीवुड गीत गुनगुनाते रहते हैं।
दक्षिण अफ्रीका में मेरे कार्यकाल के दौरान हम मेजबान देश में 2007 से संजय रॉय द्वारा सृजित एक नवाचारी सांस्कृतिक महोत्सव प्रदर्शित करने में सफल हुए। ‘साझा इतिहास : एक नवाचारी अनुभव’ ने हर साल दक्षिण अफ्रीका लौटना जारी रखा है जो शास्त्रीय एवं लोकप्रिय संस्कृति में ‘इंद्रधनुषी राष्ट्र’ से लेकर भारत की कुछ सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों के माध्यम से विविध प्रकार के लोगों को आकर्षित करता है। कीनिया में रहते हुए हमने पता लगाया कि कीनिया के लोग पंडित जसराज के शास्त्रीय संगीत औरा मुंबई से मसाला फिल्मों का मजा लेते हैं।
भारत के शिल्प, परिधान और व्यंजन अफ्रीका के अनेक देशों में गहरा प्रभाव छोड़ा है। अफ्रीकी प्रभावों के उल्टे अंत:प्रवाह की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। जब भी अफ्रीका से उत्तम कोटि की नृत्य या संगीत मंडली भारत के शहरों में आती है, तो वह दर्शकों को बहुत प्रभावित करती है। जिसकी तरूरत है वह यह है कि भारत के दर्शकों एवं श्रोताओं को अफ्रीकी संस्कृति की समृद्ध विरासत से और अधिक परिचित कराया जाए। दोनों पक्षों के बीच सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
खेल एक अन्य सक्षम कनेक्टर है। क्रिकेट लोकप्रिय बंधन है और फुटबाल भी कुछ हद तक ऐसा ही है। दौड़, विशेष रूप से मैराथन जैसी प्रतियोगिताओं के मामले में भारत के खिलाड़ी अपने अफ्रीकी समकक्षों से काफी कुछ सीख सकते हैं।
मीडिया
घनिष्ठ संबंधों का विकास करने में एक प्रमुख रूकावट एक – दूसरे के बारे में सूचना के प्रत्यक्ष स्रोतों का अभाव तथा अपर्याप्त मीडिया कवरेज है। भारत और अफ्रीका दोनों में मीडिया अपनी समुचित भूमिका नहीं निभा पा रही है जिसके कारण भारतीय और अफ्रीकी ज्यादातर पश्चिमी स्रोतों से एक – दूसरे के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। यह स्थिति जरूर बदलनी चाहिए। हमें एक – दसरे को सीधे, न कि किसी तीसरे पक्ष के चश्मे के माध्यम से जानने की जरूरत है।
यह दावा किया जाता है कि मीडिया आउटलेट अफ्रीकी देशों की राजधानियों और नई दिल्ली में अपने प्रतिनिधि तैनात नहीं करते हैं क्योंकि ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य नहीं है। इसका फिर से अध्ययन किया जाना चाहिए। अफ्रीका में निहित अधिक दांव को जानते हुए, भारतीय पक्ष को इस विसंगति को ठीक करने के लिए कारगर उपाय करने चाहिए। प्रौद्योगिकी का अभीष्ठ ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए। हमारे प्रतिष्ठित मीडिया संगठनों को स्थानीय स्वतंत्र पत्रकारों एवं अंशकालिक संवाददाताओं, जो अपने भारतीय दर्शकों के लिए नियमित रूप से कहानियां फाइल करेंगे, का नेटवर्क स्थापित करने से कुछ भी नहीं रोकता है।
अफ्रीकी पक्ष भी ऐसा कर सकता है।
अन्य लिंक
जनता के स्तर पर मैत्री एवं सूझबूझ को बढ़ावा देने में सभ्य समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होती है। शिक्षा, स्वास्थ्य देखरेख, श्रम कल्याण, महिला सशक्तीकरण, युवाओं से जुड़े मुद्दों तथा पर्यावरण के लिए समर्पित संस्थाओं को वार्ता एवं सहयोग के अवसरों का पता लगाने की जरूरत है। ऐसे आदान – प्रदान की मात्रा एवं पहुंच में पर्याप्त वृद्धि वांछनीय है। इससे सरकारें भारत – अफ्रीका भागीदारी को विविध बनाने पर अधिक ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित होंगी।
दो सुझाव
उपर्युक्त विश्लेषण से प्राप्त जानकारी तथा अपने खुद के अनुभव के आधार पर विचार करने के लिए दो सुझाव प्रस्तुत हैं :
- दिल्ली में अफ्रीकी राजनयिक मिशन एक अखिल अफ्रीका – भारत मैत्री प्रतिष्ठान स्थापित करने और जन दर जन संबंधों को सुदृढ़ करने के कार्य में सहयोग करने के लिए अफ्रीका के इच्छुक दोस्तों को एक साथ एकत्र कर सकते हैं।
- विचारशील नेता के रूप में, नए विचारों का सृजन करके और उनके कार्यान्वयन के लिए दबाव डालकर थिंक टैंक की नेतृत्व करने की एक विशेष जिम्मेदारी है। एक अफ्रीका – भारत थिंक टैंक नेटवर्क (आई ए टी टी एन) स्थापित करके पर्याप्त मात्रा में सिनर्जी सृजित करने की जरूरत है। साथ मिलकर काम करके आई सी डब्ल्यू ए तथा आर आई एस जैसी संस्थाएं इसकी शुरूआत कर सकती हैं।
इस प्रकार जन दर जन संबंधों का स्तंभ लघे से मध्यम अवधि में काफी सुदृढ़ हो सकता है, बशर्ते कल्पना, सिनर्जी और निरंतर ध्यान के मिश्रण का सुनिश्चय हो। कार्रवाई का समय है अभी!
राजीव भाटिया ने पहले कीनिया में भारत के उच्चायुक्त के रूप में और फिर दक्षिण अफ्रीका एवं लेसोथो में भारत के उच्चायुक्त के रूप में सेवा करते हुए अफ्रीका में सात साल से अधिक समय बिताए। अभी हाल तक आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक के रूप में आपने अफ्रीका एवं हिंद महासागर को शामिल करते हुए एक वृहद अनुसंधान एवं आउटरिच कार्यक्रम का निरीक्षण किया। यह लेख उनके अपने विचारों को दर्शाता है।
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