भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी का एक लंबा इतिहास है। अफ्रीका के साथ भारत के विकास सहयोग में प्रौद्योगिकी सहयोग उसी समय से एक अनिवार्य घटक रहा है जब से 1990 के दशक के मध्य से भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (आई टी ई सी) कार्यक्रम शुरू किए गए। जशक्ति विकास
पर ध्यान केंद्रित करते हुए साझेदार देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के इरादे से आई टी ई सी कार्यक्रम तैयार किया गया। अफ्रीका के देश आई टी ई सी कार्यक्रम के तहत सबसे बड़े प्राप्तकर्ता रहे हैं।
दक्षिण के देशों के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग की आवश्यकता जल्दी ही महसूस हो गई क्योंकि पश्चिम में विकसित प्रौद्योगिकी का सीधा प्रयोग विकासशील देशों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता क्योंकि उनको जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर, दक्षिण देशों के बीच
प्रौद्योगिकी अंतराल छोटा है। इस संबंध में, भारतीय प्रौद्योगिकी विशेष रूप से कृषि तथा नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी अफ्रीकी देशों की आवश्यकताओं के लिए अधिक उपयुक्त हो सकती है। तथापि, इस तथ्य को देखते हुए कि स्वयं भारत 1990 के दशक के
पूर्वाध तक सहायता प्राप्त करने वाला एक बड़ देश था, अफ्रीका के देशों के साथ भारत के सहयोग का दायरा सीमित था। पिछले दो दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के कारण भरत की विकास गाथा में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका में वृद्धि हुई तथा यह देखते हुए
कि आज अफ्रीका विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाला क्षेत्र है और अपने यहां तेजी से नवाचार को बढ़ावा दे रहा है, भारत और अफ्रीका के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग का दायरा अब विस्तृत हो गया है।

2008 में भारत – अफ्रीका मंच शिखर बैठक के दौरान, भारत ने अफ्रीका में अफ्रीका के विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता की। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत – अफ्रीका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पहल के तहत अनेक कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का कार्यन्वयन कर रहा है। भारत के प्रख्यात वैज्ञानिकों के अधीन भारतीय
विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग एवं अनुसंधान में शामिल होने के लिए अफ्रीका शोधकर्ताओं को अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से 2010 में अफ्रीका शोधकर्ताओं के लिए सी वी रमन फेलोशिप शुरू की गई। इस कार्यक्रम के तहत अब तक अफ्रीकी
देशों के 164 उम्मीदवारों को फेलोशिप प्रदान की गई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग अफ्रीकी शोधकर्ताओं को प्रशिक्षण देकर तकनीकी ज्ञान को साझा करके और अफ्रीकी संस्थाओं के साथ शैक्षिक संबंध विकसित करके अनुसंधान एवं विज्ञान में लगी अफ्रीकी संस्थाओं को तकनीकी
सहायता भी प्रदान करता है।
इसके अलावा, भारत ने अफ्रीका के चार देशों अर्थात दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनीशिया, मिस्र और मॉरीशस के साथ प्रौद्योगिकी सहयोग करारों पर हस्ताक्षर भी किए हैं। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत का सहयोग 1995 में आरंभ हुआ। इस करार को 2015 में नवीकृत
किया गया है। जैव प्रौद्योगिकी, सूचना विज्ञान, खगोलशास्त्र, ग्रामीण अनुप्रयोग के लिए खाद्य विज्ञान प्रौद्योगिकी, देशज ज्ञान प्रणाली, नैनो प्रौद्योगिकी तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अब तक 74 शोध परियोजनाएं शुरू की गई हैं। तथा दक्षिण अफ्रीका के 220 से
अधिक शोधकर्ताओं ने भारत सरकार से वित्त पोषण प्राप्त किया गया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विज्ञान की वेबसाइट पर उपलबध डाटा के आधार पर लेखक के अनुसार अब तक भारत द्वारा दक्षिण अफ्रीका के लिए 122.7 मिलियन रूपए मूल्य की शोध परियोजनाएं संस्वीकृत की गई हैं।
ट्यूनीशिया को संस्वीकृत परियोजनाओं का कुल मूलय 21.5 मिलियन रूपए होने का अनुमान है।
कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत – अफ्रीका प्रौद्योगिकी सहयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत – अफ्रीका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग अफ्रीका में कृषि के विकास के लिए एक अनोखा अवसर प्रदान करता है। भारत और अफ्रीका
के बीच कृषि क्षेत्र में अधिक सहयोग का मामला अधिक मजबूत है क्योंकि भारत और अफ्रीका की कृषि जलवायु संबंधी स्थितियां एक जैसी हैं। अफ्रीकी कृषि कम उत्पादकता की समस्या से जूझ रहा है तथा वहां प्रौद्योगिकी का प्रयोग सीमित है। दूसरी ओर, भारत ने कृषि अनुसंधान के
क्षेत्र में काफी क्षमता का निर्माण किया। दो भारतीय संस्थाएं अर्थात अर्ध शुष्क उष्ण कटिबंधों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई सी आर आई एस ए टी) और अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आई एल आर आई) कृषि में भारत – अफ्रीका सहयोग का नेतृत्व
कर रही हैं।

आई सी आर आई एस ए टी ने स्थानीय संस्थाओं के साथ मिलकर अफ्रीका के पांच देशों अर्थात मंगोला,
कैमरून, घाना, माले और यूगांडा में कृषि व्यवसाय इंक्यूवेटर तथा मूल्य श्रृंखला इंक्यूबेटर की स्थापना की है। अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान पशुधन के अधिक संपोषणीय प्रयोग के माध्यम से अफ्रीकी देशों में गरीबी घटाने तथा खाद्य सुरक्षा बढा़ने परअपना
ध्यान केंद्रित कर रहा है। मोंजाबि, तंजानिया, इथोपिया और कीनिया में इसके सतत भारत – अफ्रीका कार्यक्रम हैं। यह देखते हुए कि अफ्रीका के 10 प्रतिशत से कम किसान अधिक फसल देने वाली किस्मों का प्रयोग करते हैं, अफ्रीका के अधिकांश देशों के लिए उत्तम कोटि के बीजों
का उत्पादन एक प्रमुख चुनौती है। भारतीय राष्ट्रीय बीज संघ ''भारत – अफ्रीका बीज सेतु’’ परियोजना में सिनगेंटा फाउंडेशन इंडिया के साथ साझेदारी कर रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य अफ्रीका के किसानों को बेहतर बीज प्रदान करके तथा भारतीय बीज कंपनियों के लिए बाजार
का सृजन करके अफ्रीका में बीज प्रणाली का विकास करना है। इन पहलों का सृजन करके अफ्रीका में बीज प्रणाली का विकास करना है। इन पहलों के अलावा, भारत ने अफ्रीका के छात्रों को हर साल 25 पी एच डी और 50 निष्णात छात्रवृत्तियां प्रदान करने की भी प्रतिबद्धता की है।
भारत अफ्रीका में नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी की तैनाती में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसने कीनिया एवं माले में विद्युत वितरण लाइनों के निर्माण, बुरूंडी, मध्य अफ्रीकी गणराज्य तथा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में जल विद्युत संयंत्रों के निर्माण तथा नाइजेर
में सौर विद्युत संयंत्रों के निर्माण को सुगम बनाने के लिए ऋण सहायता प्रदान की है। ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) जैसी भारतीय संस्थाएं अफ्रीका के कई देशों में सोलर लालटेन तथा खाना पकाने के स्वच्छ विकल्पों के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है। विकेंद्रीकृत सौर
ऊर्जा के विकल्पों का संवर्धन तथा कुक स्टोव में सुधार अफ्रीका में न केवल निर्धन ग्रामीण परिवारों को ऊर्जा तक पहुंच प्रदान कर रहा है अपितु उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार कर रहा है।

भारत डिजीटल अंतराल को पाटने में भी अफ्रीकी देशों की मदद कर रहा है। अफ्रीका में डिजिटल
अंतराल को कम करने तथा आई सी टी के सामाजिक – आर्थिक लाभों का उपयोग करने के उद्देश्य से 2009 में अखिल अफ्रीका ई-नेटवर्क परियोजना शुरू की गई। इस परियोजना के तहत भारत ने अफ्रीका के देशों को सेटेलाइट कनेक्टिविटी, टेली मेडिसीन और टेली एजुकेशन की सुविधा प्रदान करने
के लिए एक फाइबर आप्टिक नेटवर्क स्थापित किया है। इस परियोजना का कुल मूल्य 452 करोड़ रूपए है। 48 अफ्रीकी देश इस परियोजना के हिस्सा हैं तथा इस नेटवर्क से 169 केंद्र अधिष्ठापित एवं एकीकृत किए गए है। इसके अलावा, अफ्रीका के विभिन्न देशों के 80 उम्मीदवारों
ने सी-डैक नोएडा और सी-डैक पुणे में आईटी क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया है। मोजांबिक में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पार्क में प्रौद्योगिकी विकास एवं नवाचार केंद्र, केपवर्डें में प्रौद्यागिकी और कोट डी आइवरी में महात्मा गांधी द्वारा प्रदान की गई
ऋण सहायता का उपयोग किया गया।
(समीर सरन प्रेक्षक अनुसंधान प्रतिष्ठान में उपाध्यक्ष तथा मालंचा चक्रवर्ती एसोसिएट फेलो हैं। यह लेख अनन्य रूप से विदेश मंत्रालय की वेबसाइट
www.mea.gov.in के ''केंद्र बिंदु में’’ खंड के लिए लिखा गया है।)