महासभा अध्यक्ष महामहिम वुक जेरेमिक,
राजदूत नजरेठ,
पाकिस्तान एवं दक्षिण अफ्रीका के स्थाई प्रतिनिधि,
स्थाई प्रतिनिधि राजदूत हरदीप पुरी,
महामहिम, देवियो एवं सज्जनो,
आज संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस समारोह की अध्यक्षता करना मेरे लिए बड़े गर्व की बात है। मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि हमारे बीच महासभा के अध्यक्ष भी मौजूद हैं। हमारे लिए अपना बहुमूल्य समय देने के लिए मैं महामहिम का धन्यवाद करना चाहता
हूँ।
यहां बहुपक्षवाद के मंदिर संयुक्त राष्ट्र संघ में ऐसे व्यक्ति के आदर्शों को मनाने के लिए उपस्थित होना सम्मान की बात है, जो संभवत: ''वसुधैव कुटुम्बकम'' (पूरा विश्व एक परिवार है) के सर्वोत्तम संभव प्रस्तावकों में से एक थे।
दुनिया ऐसी असंख्य हस्तियों को जानती है जिन्होंने अपने सैन्य बल के आधार पर जीत हासिल की। परंतु यह विश्व में एक मात्र ऐसा व्यक्ति हैं जिन्होंने कोई लड़ाई लड़े बगैर मुक्ति एवं अधिकारिता के लिए विश्व की सबसे बड़ी लड़ाई जीती।
महात्मा गांधी जी के शस्त्रागार में कोई हथियार एवं गोला बारूद नहीं था बल्कि ''सत्य की ताकत'' या सत्याग्रह था जिसका वर्णन उन्होंने सच एवं अहिंसा के लिए प्रेम से जन्मी ताकत के रूप में किया जो युद्ध के लिए उनका नैतिक समकक्ष था।
जब 7 जून 1893 को दक्षिण अफ्रीका के एक रेलवे स्टेशन पर उन्हें चलती ट्रेन से उतार दिया गया, तो एक चिनगारी जली जो विश्व के इतिहास का पथ परिवर्तित करने के लिए थी।
महामहिमगण तथा देवियो एवं सज्जनो,
महात्मा गांधी जी में बहुत सारे विरोधी किन्तु प्रेरक गुणों का आदर्श मिश्रण है। उन्होंने परंपरा का सम्मान किया, और साथ ही वह रूढिभंजक भी थे।
वह ऐसे राजनीतिक रणनीतिकार थे जो परंपरागत राजनीति से दूर रहे तथा कोई पद नहीं लिया।
वह बहुत ही धार्मिक थे किन्तु उनका धर्म ऐसा था जो प्रत्येक धर्म को मानता था, एक ऐसा धर्म था जो सर्व समावेशी था।
वह अध्यात्म की मूर्ति थे परंतु उनके अध्यात्म की जड़ें गरीबों एवं वंचितों के लिए स्थाई सरोकार, लाभवंचितों एवं शोषितों की सेवा एवं अधिकारिता से जुड़ी थी।
वह महाप्रलयकारी परिवर्तन के लिए अधीर थे। फिर भी वह परिवर्तन की गति तेज करने के साधन के रूप में किसी रूप में हिंसा से दूर रहे।
उनके अपने शब्दों में, ''अहिंसा मानव की विदग्धता द्वारा तैयार किए गए विनाश के सबसे ताकतवर हथियार से भी ताकतवर है।''
यह सच है कि आज का विश्व उस विश्व से बहुत ही भिन्न है जिसमें महात्मा गांधी जी रहते थे। परंतु संघर्ष एवं असमानता इंसान की परिस्थिति का एक अपरिहार्य अंग बनी हुई है।
विश्व के लिए महात्मा गांधी जी का सबसे बड़ा सबक यह था कि इसे विनाशकारी होने की जरूरत नहीं है।
संघर्षों का समाधान हो सकता है तथा असमानताएं दूर हो सकती हैं। तथा उपयुक्त लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उपयुक्त साधन की जरूरत होती है।
गांधी का रास्ता वास्तविक, जीवंत रास्ता है, ऐसा विकल्प है जो सूचित करता है तथा देदीप्यमान करता है। उनके पदचिन्हों का अनुसरण करने के लिए हममें निश्चित रूप से साहस एवं मन की शक्ति होनी चाहिए।
मुझे पूरी उम्मीद है कि विश्व गांधी जी के सच के रास्ते को अपनाएगा तथा ऐसे कदम उठाएगा जिससे संयुक्त राष्ट्र जैसे अग्रणी वैश्विक बहुपक्षीय मंच इसके मशालची के रूप में बने रहेंगे।
अब मैं ''अहिंसक क्रांतिकारी'' पर राजदूत नजरेठ के विचार सुनने की उत्सुकता की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
धन्यवाद।