मनीश चंद

विशेष रूप से संकट की घड़ी में उम्मीद शाश्वत रूप से बनी रहती है। आज भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंदी से ग्रस्त होने के कारण सभी लोग की निगाहें 4-5 सितंबर, 2013 को रूस के शहर सेंट पीटर्सबर्ग में विश्व की सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं की जी20 शिखर
बैठक पर टिकी है। जी20 समूह की 8वीं शिखर बैठक, जो 90 प्रतिशत वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं विश्व की दो तिहाई आबादी के लिए जिम्मेदार है, विश्व आर्थिक तंत्र में उम्मीद की कमी को दूर करने तथा संपोषणीय वैश्विक आर्थिक समुत्थान के लिए गहन स्थूल आर्थिक समन्वय
के लिए भावी रास्ता तैयार करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
2008 के वैश्विक आर्थिक संकट की सन्निकट पृष्ठभूमि में जन्मा जी20 समूह वाशिंगटन डीसी में अपनी पहली शिखर बैठक के बाद से इन वर्षों के दौरान वैश्विक आर्थिक समन्वय के लिए विश्व के प्रमुख मंच के रूप में उभरा है। विकसित देशों के जी8 समूह के अलावा जी20 समूह अधिक
प्रतिनिधिकारी समूह के रूप में उभरा है तथा भारत समेत उभरने वाली शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं को अपने दायरे में शामिल किया है। 2008 की मंदी के बाद पहले तीन वर्षों में जी20 समूह ने एक प्रभावी संकट प्रबंधक के रूप में काम किया तथा आज प्रमुख वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर
नेतृत्व प्रदान करने के लिए विकसित हो रहा है।

सेंट पीटर्सबर्ग शिखर बैठक के लिए मौजूद संदर्भ एवं चुनौतियां 2012 एवं 2011 की पिछली लॉस कैबोस एवं कॉन शिखर बैठक की तुलना में भिन्न हैं जब यूरो जोन के टर्मिनल ग्लूम एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर इसके क्षरणशील प्रभाव पर बल दिया गया था। तब से यूएस अर्थव्यवस्था
ने उछाल का प्रदर्शन किया है और यूरो जोन यह साबित कर रहा है कि सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। इसलिए, इस बार मुख्य बल मजबूत, संतुलित, संपोषणीय एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए प्रभावी समन्वय तंत्र एवं नीतिगत नवाचार विकसित करने पर होगा।
यहां प्रचालन का मंत्र संपोषणीय समुत्थान है क्योंकि वैश्विक आर्थिक परिचर्चा विकास बनाम संयम से आगे निकल कर विकास एवं समुत्थान को बनाए रखने के लिए विकास एवं अधिक अंतर्राष्ट्रीय समन्वय के पक्ष में निर्णायक रूप से शिफ्ट हो गई है। इस संदर्भ में, नेताओं से अपेक्षा
है कि वे वैश्विक आर्थिक समुत्थान प्रेरित करने एवं बनाए रखने के लिए अधिक तीक्ष्ण ढंग से केंद्रित सेंट पीटर्सबर्ग कार्य योजना तैयार करेंगे।
नौकरी सृजित करने पर बल देना एक अन्य महत्वपूर्ण विषय होगा जिस पर सेंट पीटर्सबर्ग शिखर बैठक में नेता ध्यान देंगे। यूएस समेत अनेक देशों में बेरोजगारी का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया है एवं असाध्य हो गया है जिससे बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा हो रहा है। पूर्वी यूरोप
के कुछ देशों में बेरोजगारी की दर लगभग 60 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। इसलिए, नेताओं से यह अपेक्षा होगी कि वे विकास एवं नौकरी सृजन के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम तैयार करें। इसमें वैश्विक मांग में पुन: संतुलन स्थापित करना, वित्तीय बाजार
के विखंडन को कम करना तथा मौद्रिक सहायता एवं राजकोषीय समन्वय के जरिए सुधारों को सुदृढ़ करना शामिल होगा।
भारत की प्राथमिकताएं

भारत के लिए जी20 शिखर बैठक के परिणामों पर बहुत कुछ निर्भर है क्योंकि नई दिल्ली ने जी20 प्रक्रिया के अंदर व्यापक एवं समावेशी वैश्विक आर्थिक विकास के लिए पथ का निर्माण करने में सक्रिय रूप से योगदान किया है। पिछले दो वर्षों में भारत की विकास दर में सुस्पष्ट
गिरावट की पृष्ठभूमि में नई दिल्ली की शीर्ष प्राथमिकता उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा मात्रात्मक सुगमता के स्पिलओवर प्रभावों से अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा करने के लिए विकास एवं वित्तीय निवेश के मुद्दों पर बल देना होगी। चूंकि भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था
में उत्पन्न असंतुलनों में योगदान नहीं दिया है तथा संकट के बाद पहले तीन वर्षों में इसकी अर्थव्यवस्था तर्कसंगत ढंग से ठीक नहीं थी इसलिए उम्मीद है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के व्यापक हितों को ध्यान में रखने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव डाला जाएगा,
जिनकी विकास दर भयावह वैश्विक संकट से प्रभावित हुई है। अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत से उम्मीद है कि वे इस बात को स्पष्ट करेंगे कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मात्रात्मक सुगमता से उत्पन्न अस्थिर पूंजी प्रवाह से विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं
प्रभावित हो रही हैं तथा इसलिए बोझ को साझा किया जाना चाहिए। भारतीय वार्ताकारों को अव्यवहार्य पूंजी प्रवाह के विरूद्ध वैध एवं स्वीकार्य प्रतिरक्षा के रूप में पूंजी नियंत्रण की भी रक्षा करनी चाहिए तथा समायोजन प्रक्रिया के लिए एक प्रभावी रूपरेखा का सृजन करने
पर दबाव देना चाहिए।
संभावित दृष्टिगोचर परिणामों की दृष्टि से, जी20 अर्थव्यवस्थाओं से उम्मीद है कि वे कर अपवंचन, धन शोधन एवं भ्रष्टाचार की खिलाफत जैसे आपस में जुड़े मुद्दों पर एकजुट होंगे। यह मुद्दा 2013 में जी20 की रूस की अध्यक्षता के दौरान प्रमुख विषयों में से भी एक है।
यदि सब कुछ ठीक रहा, तो इस शिखर बैठक में कर अपवंचन का सामना करने के लिए समन्वित उपायों पर कुछ सफलता हासिल हो सकती है तथा कर अपवंचन से संबंधित सूचना के बहुपक्षीय एवं आटोमेटिक आदान - प्रदान के लिए एक वैश्विक माडल के लिए ओ ई सी डी के प्रस्ताव का सामूहिक रूप से
समर्थन किया जा सकता है। इस शिखर बैठक से उम्मीद है कि भौगोलिक सीमाओं से परे भ्रष्टाचाररोधी एजेंसियों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए समन्वित कार्रवाई की योजना तैयार होगी तथा धन शोधन से निपटने के लिए कदम उठाए जाएंगे। भारत से इन पहलों का समर्थन करने की
उम्मीद है जिनका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय तंत्र में अधिक पारदर्शिता लाना और भौगोलिक सीमाओं पर ध्यान दिए बगैर आम आदमी के हितों की रक्षा करना है।
जी20 शिखर बैठक के लिए भारत की एक अन्य प्रमुख प्राथमिकता यह होगी कि इस समूह का ध्यान अवसंरचना एवं एस एम ई में निवेश के लिए दीर्घ अवधि के वित्त पोषण पर केंद्रित किया जाए। पिछली शिखर बैठकों में, भारत के प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने विशेष रूप से अवसंरचना
के क्षेत्र में व्यापक अंतराल वाले देशों एवं क्षेत्रों में व्यापक श्रेणी की विकासात्मक गतिविधियों के लिए पूंजी के स्थिर एवं अबाध प्रभाव का सुनिश्चय करने के लिए संस्थानिक रूपरेखाओं का निर्माण करने की अत्यावश्यकता पर विश्व के नेताओं का ध्यान आकृष्ट
किया था। इस संदर्भ में, जी20 देशों के नेताओं से अपेक्षा है कि वे सार्वजनिक – निजी साझेदारी में अवसंरचना संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निजी पूंजी जुटाने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों (एम डी बी) के बीच घनिष्ट समन्वय पर बल देंगे।
वित्तीय समावेशन तथा देश विशिष्ट लक्ष्यों एवं प्रतिबद्धताओं के लिए विस्तृत कसौटियों को अंतिम रूप देना भी आगामी सेंट पीटर्सबर्ग सम्मेलन के प्रमुख मुद्दों में शामिल होंगे। इस संदर्भ में, उम्मीद है कि वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक साझेदारी समूह तथा अनेक
पक्ष समर्थन समूहों की सिफारिशों का नेताओं द्वारा इस बैठक में समर्थन किया जाएगा।
वैश्विक वित्तीय वास्तुशिल्प का फिर से निर्माण करना
सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि एक प्रतिनिधिमूलक, समावेशी वैश्विक वित्तीय वास्तुशिल्प की शाश्वत रूप से भ्रामक तलाश पर सेंट पीटर्सबर्ग शिखर बैठक में नए सिरे से बल दिया जाए। संशोधित वित्तीय तंत्र ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं को समायोजित करने पर विकसित अर्थव्यवस्थाओं
द्वारा निरंतर छल कपट किए जाने के कारण उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से अपेक्षा है कि वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ) में कोटा एवं अभिशासन सुधार को तेजी से लागू करने के लिए पूरी ताकत से बल देंगे। भारत के दृष्टिकोण से, यह शीर्ष प्राथमिकताओं में
से एक होगा। वैश्विक वित्तीय वास्तुशिल्प में सुधार करने पर भारत के प्रधान मंत्री से जोरदार वक्तव्य की अपेक्षा की जा सकती है तथा वह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से 2010 आई एम एफ कोटा एवं अभिशासन सुधार लागू करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा का सम्मान करने के लिए निवेदन
कर सकते हैं। यदि 2013-14 तक आई एम एफ कोटा सुधार को पूरा करने की योजना को पूरा करना है, तो यह प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़नी चाहिए। इस मुद्दे पर द्वैधवृत्ति शीघ्रता से समाप्त होनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की विश्वसनीयता, वैधता एवं कारगरता बढ़ाने
के लिए समयबद्ध आई एम एफ कोटा का कार्यान्वयन नितांत आवश्यक है। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक निर्णय लेने एवं सहयोग करने के लिए विश्व के समावेशी मंच के रूप में जी20 प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने के लिए भी आवश्यक है।
ध्यान न हटने दें
पांच वर्ष एवं सात शिखर बैठक के बावजूद जी20 एक ऐसा समूह है जो बहुपक्षीय भू-राजनीति के अस्पष्ट अल्फाबेट में सही स्क्रिप्ट की तलाश में है। हालांकि इसने प्रगति की है, यह भावना अतिव्याप्त है कि जी20 एजेंडा अगढ़ एवं रेंगने वाला बन गया है। बहुत सारे कार्य करने
एवं बहुत सारे मुद्दों को उठाने की लालसा रहती है जिससे समूह का फोकस कम हुआ है जिसकी वजह से संपोषणीय वैश्विक आर्थिक विकास एवं स्थिरता का एक मजबूत तंत्र निर्मित करने एवं बनाए रखने का मुख्य अधिदेश पिछड़ गया है। खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन
जैसे मुद्दे वैश्विक मुद्दे हैं जिन पर विश्व की शीर्ष 20 सशक्त अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं को ध्यान देना चाहिए, परंतु जी20 एजेंडा में इस पर बहुत बल देने का कोई मायने नहीं है। अधिकता के इस महापाप को दूर किया जाना चाहिए ताकि जी20 उस काम को करने में पुन: जुट
सके जिसे करने के लिए इसका सृजन किया गया है: वैश्विक अर्थव्यवस्था के पहियों को चलायमान रखना तथा असंतुलनों एवं अतिरेकों से इसकी रक्षा करना।
(मनीश चंद एक ऑनलाइन पत्रिका इंडिया राइट्स(www.indiawrites.org)
के मुख्य संपादक हैं। यह एक बाह्य वेबसाइट है जो एक नए विंडो
में खुलती है तथा इस पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, भारत की कहानी तथा उभरती महाशक्तियों पर केंद्रित जर्नल उपलब्ध हैं। वह ''टू बिलियन्स ड्रीम्स : सेलिब्रेटिंग इंडिया – अफ्रीका फ्रेंडशिप’’ के भी संपादक हैं।)
(ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)