लेखक : मनीष चंद
दुनिया के इस हिस्से का अतीत काल्पनिक कथाओं जैसा लगता है, और यथार्थ किसी चमत्कार जैसा। जैसे ही हम लैटिन अमेरिका के बारे में सोचते हैं, घूमते हुए जीवनोत्सव की जीवंत तस्वीरें हमारे सामने नाचने लगती हैं: फुटबॉल, साम्बा और कहानी कहने की कला। जी हां, यह सब
कुछ, तथा और भी बहुत कुछ लैटिन अमेरिका में है। यह विश्व का उभरता हुआ प्रगति ध्रुव है।
और अच्छी खबर यह है कि भारतीय राजनयिक परिदृश्य में लैटिन अमेरिका का समय आ गया है। जब भारत के नव-निर्वाचित प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी 15-16 जुलाई को होने वाली छठी ब्रिक्स शिखर वार्ता के लिए ब्राजील जाएंगे, तो वे संभवत: ऐसे प्रथम भारतीय नेता होंगे जो एक ही स्थान पर एक दर्जन दक्षिण अमेरिकी नेताओं से मुलाकात करेंगे। दक्षिण अमेरिका तक ब्रिक्स को पहुँचाने के प्रयास के भाग
के रूप में आयोजित इस बैठक से एशिया की उस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक संसाधन-संपन्न जीवंत क्षेत्र बीच सहयोग तथा अवसरों के नए द्वार खुलने की आशा है जो एक आर्थिक शक्ति–स्रोत तथा विश्व के एक प्रगति ध्रुव के रूप में तेजी से उभर रहा है।
ब्राजील के राष्ट्रपति डिल्मा रौसेफ, जो ब्रिक्स शिखर वार्ता के मेजबान हैं, ने अर्जेंटीना, बोलीविया, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, गुयाना, पैराग्वे, पेरू, सूरीनाम, उरूग्वे और वेनेजुएला के नेताओं को आमंत्रित किया है। उनमें से अधिकांश के आमंत्रण स्वीकार कर लिए
जाने की रिपोर्ट है, और यदि सब कुछ ठीक रहा, तो प्रधान मंत्री मोदी फोर्टालिजा में शिखर वार्ता के प्रथम दौर की समाप्ति के अगले दिन ब्राजीलिया में उनसे मुलाकात करेंगे।
लैटिन अमेरिका महत्वपूर्ण क्यों है
श्री मोदी द्वारा दुनिया के सबसे अधिक कोलाहलपूर्ण और जीवंत प्रजातंत्र का प्रभार संभालने के महज दो माह के भीतर होनी वाली यह बैठक एक व्यवसाय-हितैषी प्रधान मंत्री की कल्पना को उड़ान देने के लिए तैयार है जो भारत की वैश्विक पहचान को बढ़ाने और कुल मिला कर 4.9 ट्रिलियन
सकल घरेलू उत्पाद वाले तथा 600 मिलियन आबादी वाले क्षेत्र में, जो जनसंख्या में तो भारत का लगभग आधा है परंतु क्षेत्रफल में भारत से पांच गुना बड़ा है, भारत के पद-चिह्नों को विस्तार देने की उम्मीद कर रहा है। इस क्षेत्र का आर्थिक पुनरूत्थान विकास की एक कहानी
जैसा है, जिसने इसे निकट और दूर के विदेशी निवेश के लिए एक शक्तिशाली आकर्षण का काम किया है। संयुक्त राष्ट्र के लैटिन अमेरिका एवं कैरीबिया संबंधी आर्थिक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 में लैटिन अमेरिका का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश निवल रूप में 179 बिलियन
डॉलर था, जो विश्व के किसी भी क्षेत्र के लिए उच्चतम रिकॉर्ड है।
लैटिन अमेरिका के साथ व्यापार
[चित्र में: उप राष्ट्रपति आईएनसीएचएएम के शुभारंभ के समय लीमा, पेरू में (28 अक्टूबर,
2013)] इस क्षेत्र की आर्थिक प्रगतिशीलता को अनेक कारकों से प्रोत्साहन प्राप्त हो रहा है जिनमें बढ़ता हुआ राजनीतिक स्थायित्व, बढ़ता हुआ प्रजातंत्रीकरण, एक उद्यमशील वर्ग का उदय तथा युवा वर्ग की संख्या में बढ़ोतरी, जिसमें 30 वर्ष से कम आयु के
युवाओं की संख्या दक्षिण अमेरिका की जनसंख्या की आधी से अधिक है, शामिल हैं। एक मूलभूत अर्थ में, भारत और लैटिन अमेरिका का आर्थिक पुनरूत्थान में मेलजोल बढ़ता जा रहा है, क्षेत्रों के परिदृश्य से परे व्यवसाय और सहयोग के नए अवसर खुल रहे हैं। आश्चर्य की बात
नहीं कि, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1990 में कुछ सौ मिलियन डॉलर था, जो 2013 में 42 बिलियन अमरीकी डॉलर का हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दोनों पक्षों के नेता सक्रिय राजनयिक मेलजोल करें, संपर्क बढ़ाने जैसे मुद्दों का समाधान करें और बहु-क्षेत्रों,
जिनमें ऊर्जा, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र, परिवहन और सूचना प्रौद्योगिकी शामिल हैं, में दोनों पक्षों के लिए बहुविध लाभ के अवसर पैदा करें तो यह आंकड़ा आसानी से 100 बिलियन डॉलर को छू सकता है।
सीआईआई और फिक्की द्वारा आयोजित वार्षिक भारत-लैटिन अमेरिका बिजनेस कॉन्क्लेव दोनों पक्षों के व्यावसायिक
नेताओं और उद्यमियों को जोड़ने के मंच के रूप में सामने आया है। इस संदर्भ में, अर्जेंटीना में भारत के पूर्व राजदूत और लैटिन अमेरिका के हिमायती आर. विश्वनाथन ने सुझाव दिया है कि भारत को मैक्सिको, कोलंबिया और पेरू -- जो लैटिन अमेरिका में भारत की ओर से होने वाले
निर्यात के दूसरे, तीसरे और चौथे सबसे बड़े देश हैं-- के साथ मुक्त व्यापार करार (एफटीए) करने चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया है, ‘‘भारत को चिली और मरकोसुर देशों, जिनमें ब्राजील शामिल है, के साथ विशेष व्यापार करारों (एफटीए) को अनिवार्यत: गहन और व्यापक बनाना चाहिए,
जो इस क्षेत्र में भारत के निर्यात के सबसे बड़े देश हैं।’’ ब्राजील में भारत के पूर्व राजदूत अमिताभ त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘यहां विशाल अवसर मौजूद हैं। व्यावहारिक रूप से ये असीम हैं।’’
खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा
खाद्य सुरक्षा दूसरा शक्तिशाली कारक है जो लैटिन अमेरिका क्षेत्र में भारत के संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित कर रहा है, जहां अत्यधिक विस्तृत उपजाऊ भूमि है। उदाहरणार्थ ब्राजील एक कृषि महाशक्ति है जहां न केवल रोलिंग एकड़ कृषि योग्य भूमि है, अपितु वहां
अधुनातन खाद्य भंडारण प्रौद्योगिकियां भी मौजूद हैं। अर्जेंटीना भी कृषि अनुसंधान में अग्रणी है। आने वाले दिनों में दोनों पक्ष इस क्षेत्र में और अधिक संयुक्त उपक्रम और अनुसंधान सहयोग करने वाले हैं।
लैटिन अमेरिका विगत कुछ वर्षों में भारत के लिए हाइड्रोकार्बन के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभरा है, जहां से भारत के ऊर्जा आयातों का लगभग 10 प्रतिशत आयात होता है। भारत ब्राजील के साथ पर्यावरण अनुकूल एथेनॉल के क्षेत्र में सहयोग करने जा रहा है। इस क्षेत्र
में वेनेजुएला, कोलंबिया, मैक्सिको और क्यूबा भारत को तेल आपूर्ति करने वाले कुछ महत्वपूर्ण देशों में से हैं।
सांस्कृतिक संबंधों का स्वरूप
केवल ऊर्जा और अर्थव्यवस्था ही वे क्षेत्र नहीं हैं जो भारत और लैटिन अमेरिका को जोड़ रहे हैं। हजारों मील दूर,
परंतु भावनात्मक रूप से जुड़े हुए इस क्षेत्र के लोग भारतीय संस्कृति, कलाओं, नृत्य और दर्शन से गहरा अनुराग रखते हैं। ब्राजील में पूर्व भारतीय राजदूत हरदीप सिंह पुरी कहते हैं, ‘‘वे भारतीय संस्कृति से सहज रूप से प्रेम करते हैं। भारत के योग केंद्रों से अधिक
योग केंद्र ब्राजील में हैं।’’
कूटनीतिक अभिविन्यास
भारत-लैटिन अमेरिका संबंध धीरे-धीरे कूटनीतिक स्वरूप लेते जा रहे हैं। जुलाई 2012 में लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई स्टेट्स (सीईएलएसी) समुदाय के नेताओं के रूप में तीन विदेश मंत्रियों के समूह के नई दिल्ली में हुए प्रथम संवाद को आगे बढ़ाते हुए, दोनों पक्ष वर्ष 2008
में शुरू हुए भारत-अफ्रीका मंच शिखर वार्ता की तरह एक भारत-लैटिन अमेरिका एवं कैरीबियाई संवाद को मूर्त रूप देने की संभावनाएं तलाश कर रहे हैं। यह क्षेत्र बहुपक्षीय राजनय तथा वैश्विक अभिशासन संरचना में सुधार, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सुधार और
विस्तार शामिल है, की आवश्यकता के मद्देनजर भी महत्वपूर्ण है।
लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करना
वैश्विक रूप से लगातार जुड़ते जा रहे विश्व में कोई जगह बहुत दूर नहीं रही। जब प्रेम, राजनय अथवा व्यवसाय की बात आती है तो दूरियां मायने नहीं रखती। रूपक अलंकरण अपनी जगह ठीक हैं, परंतु यदि दोनों पक्ष भारत और लैटिन अमेरिका के अग्रणी शहरों के बीच वायु मार्ग संपर्कों
का विस्तार करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करें तो इससे इसमें अवश्य सहायता मिलेगी। कुछ मूर्त कदमों तथा अभिप्रेरित राजनय के साथ ब्यूनस आयर्स बंगलौर के साथ अधिक प्रभावी ढंग से जुड़ सकता है, कराकस चेन्नई के साथ जुड़ सकता है, मुंबई का मांटवीडियो के साथ संपर्क
हो सकता है और गोवा से जॉर्जटाउन का तादात्म्य स्थापित हो सकता है। लैटिन अमेरिका, जिसे प्राय: भारतीय राजनय के अंतिम मोर्चे के रूप में वर्णित किया जाता है, भारत के साथ बेहतर व्यवसाय के लिए खुला है, और भारत को इस अवसर को दोनों हाथों से बटोरना चाहिए। अब टैंगो
की, और कुछ कर गुजरने की बारी है।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय मामलों, उभरती ताकतों पर केंद्रित एक वेब पोर्टल और ई-पत्रिका इंडिया राइट्स नेटवर्क, www.indiawrites.org तथा इंडिया स्टोरी के मुख्य संपादक हैं।)
संदर्भ
सीआईआई इंडिया-लैटिन अमेरिका कैरीबियन कॉन्क्लेव विदाई सत्र में ‘‘भारत-लैटिन
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