विकास, ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा, अवसंरचना लिंकेज, व्यापार एवं निवेश सुविधा प्राथमिकता होनी चाहिए
लैटिन अमरीकी क्षेत्र विश्व के प्रमुख विकास इंजन में से एक के रूप में तेजी से उभर रहा है। भारत की तरह लैटिन अमरीका वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल से ज्यादातर अप्रभावित रहा है तथा विकास के पथ पर बना हुआ है और निवेश के लिए भारत का आकर्षक डेस्टिनेशन है, जो इस समय वैश्विक
स्तर पर शीर्ष तीन डेस्टिनेशन में शामिल है। आज इस क्षेत्र के 14 देशों के भारत में दूतावास एवं कांसुलेट हैं।
1997 में, लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन (एल ए सी) के साथ व्यापार में वृद्धि की संभावना को ध्यान में रखते हुए भारत के वाणिज्य विभाग ने ‘फोकस : एल ए सी’ नाम एक एकीकृत कार्यक्रम शुरू किया जो इस साल के अंत तक चलता रहा है। इसका उद्देश्य भारत के निजी क्षेत्र के साथ
ही सरकारी संस्थाओं को लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन के साथ मजबूत व्यापार एवं निवेश संबंध विकसित करना और साथ ही इस क्षेत्र को भारत के कपड़ों, इंजीनियरिंग उत्पादों, कंप्यूटर साफ्टवेयर, रसायनों एवं भेषज पदार्थों के निर्यात को बढ़ाने पर बल देना है।
2014 में, स्थानीय रक्षा उत्पादन पर बल देने की अपनी रणनीति के अंग के रूप में भारत लैटिन अमरीका के देशों को हाईटेक एवं अधिक मूल्य के रक्षा निर्यात के शेयर को बढ़ाना चाहता है। वाणिज्य मंत्रालय अधिक मूल्य वृद्धि के बगैर परंपरागत वस्तुओं के निर्यात से भारतीय
निर्यात को दूर रखने की अपनी मंशा पहले ही जता चुका है। इस संबंध में 2014-19 के लिए आगामी विदेश व्यापार नीति (एफ टी पी) में हाईटेक एवं अधिक मूल्य के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन स्कीम पर विचार किया जा रहा है।
पिछले वर्षों में, लैटिन अमरीका के साथ भारत के संबंध व्यापार एवं निवेश से आगे बढ़कर ऊर्जा, ज्ञान की हिस्सेदारी जैसे क्षेत्रों में सहयोग तथा बहुपक्षीय मंचों जैसे कि जी-20, ब्रिक्स और इब्सा (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका) तक पहुंचे हैं। भारत ने मरकोसुर के
साथ तरजीही व्यापार करार किया है तथा हाल ही में इसे उभरते समूह – नया प्रशांत गठबंधन में प्रेक्षक का दर्जा प्रदान किया गया है। ये व्यवस्थाएं भारत एवं एल ए सी क्षेत्र में व्यापार समुदायों के लिए विशाल अवसर प्रस्तुत करती हैं जिनको व्यापार, सेवा एवं निवेश
को शामिल करते हुए व्यापक संधियों में परिवर्तित करने की जरूरत है।
(सीआईआई भारत – लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन गोष्ठी 9-10 दिसंबर, 2013 को नई दिल्ली में
आयोजित की गई)मजबूत चुनौतियां
भारत और एल ए सी के बीच व्यापार संबंध मुख्यत: निवेश के रूप में हैं क्योंकि माल में परंपरागत व्यापार के लिए दूरी, टाइम जोन में अंतर एवं व्यवसाय की संस्कृति की वजह से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। माल व्यापार अपने थोक स्वरूप के कारण तथा बड़ी संस्थाओं
की भागीदारी के कारण जारी है परंतु विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र का विकास तत्वत: निवेश के माध्यम से हो सकता है, जो स्वत: ही व्यापार में और वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
इसलिए, लैटिन अमरीका के साथ हमारी भागीदारी के लिए एक रोड मैप एवं एजेंडा की जरूरत है, विशेष रूप से ऐसी पहलों की जरूरत है जिनका उद्देश्य हमारे क्षेत्र की विकास, ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना हो, संयोजकता में वृद्धि तथा व्यापार एवं निवेश
में सुविधा के साथ नए अवसंरचनात्मक लिंकेज की जरूरत है जो हमारी आर्थिक मजबूतियों को संपूरित करे।
भारत एवं एल ए सी देशों के साथ व्यापारिक संबंधों के समक्ष कुछ मजबूत चुनौतियां हैं। ऐसा कहा जाता है कि कम व्यापार एवं निवेश का मुख्य कारण लंबी दूरी एवं जटिल समुद्री मार्ग हैं जिनकी वजह से परिवहन एवं संबद्ध लागतें जैसे कि बीमा में काफी वृद्धि हो जाती है। विभिन्न
बंदरगाहों से गुजरने के लिए कोई सीधा समुद्री व्यापार मार्ग एवं नौवहन नहीं है। इस बारे में सूचना का अभाव है कि कैसे एल ए सी और भारत में व्यवसाय किया जा सकता है जिसकी वजह से व्यवसाय का जोखिम और बढ़ जाता है और व्यापारी अवसरों का उपयोग करने से वंचित रह जाते
हैं।
अधिक आर्थिक संबंधों से जुड़ी चुनौतियों में एक दूसरे के बारे में पूरी जानकारी न होना भी शामिल है जिसमें भारत में स्पेनिश एवं पुर्तगाली भाषा के कौशलों का काफी अभाव तथा एल ए सी देशों के भागों में अंग्रेजी में प्रवीणता का अभाव भी शामिल है।इस क्षेत्र के साथ व्यापार
हालांकि पिछले दशक में एल ए सी क्षेत्र के साथ भारत के व्यापार में 25 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि हुई है और यह 2012-13 में 46 बिलियन डालर के आंकड़े पर पहुंच गया है, द्विपक्षीय निवेश अपेक्षाकृत निम्न स्तर पर है। यद्यपि इस क्षेत्र ने भारत के बाहरी एफ डी
आई का केवल 4 प्रतिशत प्राप्त किया, भारत में एल ए सी क्षेत्र से निवेश और भी कम है। अब इसे बदलने का समय आ गया है। समकक्ष आधार पर क्रय करने वाली 5.5 ट्रिलियन डालर जी डी पी वाली विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जो 12 ट्रिलियन डालर की एल ए सी अर्थव्यवस्था
के साथ व्यापार करके वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रभाव डाल सकती है। इसके लिए भारत और एल ए सी देशों को आर्थिक भागीदारी के लिए अपनी – अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा।
(भारत के उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी लीमा, पेरू में इंचैम का उद्घाटन करते हुए)
विशेषज्ञों का कहना है कि द्विपक्षीय व्यापार आसानी से 100 बिलियन डालर के आंकड़े को पार कर सकता है यदि दोनों पक्षों के नेता सक्रिय राजनय का सहारा लें और संयोजकता बढ़ाने तथा ऊर्जा, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, परिवहन एवं आई टी जैसे क्षेत्रों में अवसरों का
उपयोग करने पर ध्यान दें।
इस क्षेत्र में पूर्व भारतीय राजदूत आर विश्वनाथन का सुझाव है कि भारत को मैक्सिको, कोलंबिया और पेरू के साथ मुक्त व्यापार करार (एफ टी ए) पर हस्ताक्षर करना चाहिए – जो लैटिन अमरीका में भारत के निर्यात के दूसरे, तीसरे और चौथे सबसे बड़े डेस्टिनेशन हैं। भारत को
चिली एवं ब्राजील समेत मरकोसुर देशों के साथ तरजीही व्यापार करार (पी टी ए) को गहन एवं विस्तृत भी करना चाहिए – जो इस क्षेत्र में भारत के निर्यात का सबसे बड़ा डेस्टिनेशन है।
खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा
भारत सरकार का ऊर्जा सुरक्षा पर बल लैटिन अमरीका क्षेत्र के साथ भागीदारी गहन करने के पीछे एक अन्य कारण है जहां उर्वर भूमि का विशाल इलाके हैं। वास्तव में, भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में तथा कृषि एवं कृषि प्रसंस्करण के विकास से संबंधित क्षेत्रों में
भारत और एल ए सी क्षेत्र के व्यवसायों के बीच सहयोग की प्रचुर गुंजाइश है।
''भारत तथा लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन (एल ए सी) : सहयोग के लिए व्यवसाय परिवेश एवं अवसर’’ पर फिक्की – डिलाएट पेपर इस बात का संकेत देता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि उत्पाद में भारी गिरावट आ सकती है इसलिए भारत और एल ए सी को बढ़ते खाद्य संकट से निपटने
के लिए एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए।
लैटिन अमरीका पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिए हाइड्रो कार्बन के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में भी उभरा है तथा भारत के ऊर्जा आयात में इस क्षेत्र का हिस्सा 10 प्रतिशत के आसपास है। भारत पर्यावरण अनुकूल एथनोल के क्षेत्र में ब्राजील के साथ सहयोग करने के लिए भी
तैयार है। वेनेजुएला, कोलंबिया, मैक्सिको और क्यूबा इस क्षेत्र में भारत को तेल की आपूर्ति करने वाले कुछ प्रमुख देश हैं।
भौगोलिक दृष्टि से, भारत ब्राजील, वेनेजुएला, मैक्सिको, चिली, अर्जेंटीना और कोलंबिया का प्रमुख व्यापार साझेदार है, तथा यह पेरू, एक्वाडोर एवं पनामा के साथ भी महत्वपूर्ण योगदान करता है। यह भारत – एल ए सी व्यापार के 80 प्रतिशत से अधिक है। कैरीकॉम देशों में से
त्रिनिडाड और टोबैगो शीर्ष दस में शामिल हैं जिसका मुख्य कारण भारत को पेट्रोलियम का निर्यात है।
2011-12 में, भारत के निर्यात के लिए बहमास चौथे डेस्टिनेशन के रूप में उभरा परंतु आमतौर पर यह संदेह किया जाता है कि ऐसा वित्तीय लेनदेन को इस देश के अपतटीय बैंकिंग सिस्टम से गुजरने के कारण है, न कि असली व्यापार की वजह से।
एलएसी में भारत का निवेश प्राकृतिक संसाधन के क्षेत्रों, भेषज पदार्थ तथा आईटी / आई टी ई एस में केंद्रित है। अभी हाल ही में भारत ने इक्विटी आयल में काफी निवेश किया है। भारतीय फार्मा उद्योग विश्व को जेनरिक दवाओं की आपूर्ति में लीडर के रूप में उभरा है तथा एल ए
सी इसका अपवाद नहीं है। यह सेक्टर एल ए सी क्षेत्र को भारत के निर्यात के तकरीबन 15 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी वजह से इस क्षेत्र का यह दूसरा सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र बन गया है तथा इसका स्थान परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के बाद आता है। अनेक भारतीय
फार्मा कंपनियां एल ए सी में निवेशक एवं नियोक्ता हैं। रैनबैक्सी जो एक पूर्णत: भारतीय फर्म है, ने 2000 में ब्राजील में अपना कदम रखा, डा. रेड्डी लेबोरेटरी ने मैक्सिको में एक प्लांट का अधिग्रहण किया और ग्लेनमार्क ने अर्जेंटीना एवं ब्राजील में निवेश किया है।
जाइडस – कैडिला ने ब्राजील की दो फार्मा कंपनियों का अधिग्रहण किया है तथा अब यह बाजार की एक प्रमुख खिलाड़ी बन गई है। फार्मा क्षेत्र में भारतीय निवेश का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता ब्राजील है, जिसके बाद अर्जेंटीना, मैक्सिको, पेरू और कोलंबिया का स्थान है।
आईटी / आई टी ई एस सेक्टर में भारत का वैश्विक नेतृत्व सर्वविदित है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस के नेतृत्व में, जिसने 2001 में विस्तार की अपनी रणनीति के अंग के रूप में एल ए सी क्षेत्र में कदम रखा था, एल ए सी में सीधी उपस्थिति वाली भारतीय कंपनियों की सूची में
विप्रो, इंफोसिस, महिंद्रा सत्यम, जेनपैक्ट और इवैलूसर्व शामिल हैं। इस समय 25 भारतीय आईटी / आई टी ई एस फर्में एल ए सी में काम कर रही हैं तथा उन्होंने 20,000 से अधिक लैटिन अमरीकियों को रोजगार दिया है।
रक्षा एवं सैन्य सहयोग
इस क्षेत्र में आटोमोबाइल एवं ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के बाद सरकार स्वामित्व वाली एयरोस्पेस की प्रमुख कंपनी हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एच ए एल) अब अपने देशज हेलिकाप्टर ध्रुव के माध्यम से इस आकर्षक बाजार में उतरने की फिराक में है। एचएएल इस क्षेत्र
के अन्य संभावित ग्राहकों के संपर्क में है तथा बोल्विया, पेरू, कोलंबिया, ब्राजील आदि जैसे देशों में व्यवसाय की संभावनाओं की तलाश की जा रही है। इस क्षेत्र के अनेक देशों ने भी भारतीय कंपनियों, विशेष रूप से एम एस एम ई से रक्षा एवं एयरोस्पेस क्षेत्र में अपने
– अपने देशों में विनिर्माण के बेस स्थापित करने के लिए संपर्क किया है तथा कर प्रोत्साहन की पेशकश कर रहे हैं।
(एचएएल ‘ध्रुव’ हेलिकाप्टर) भारतीय रक्षा फर्म एम के यू प्राइवेट लिमिटेड
जो कार्मिकों एवं प्लेटफार्म के लिए बैलिस्टिक रक्षा उपकरण का निर्माण करती है, ब्राजील, पेरू, चिली, मैक्सिको, कोलंबिया, एक्वाडोर एवं पराग्वे जैसे देशों के साथ काम कर रही है। वास्तव में, पिछले 7 वर्षों से यह कंपनी ब्राजील को बाडी आर्मर का एकमात्र आपूर्तिकर्ता
रही है। इसके पास मैक्सिकन नेवी एवं पुलिस के लिए आर्मर एम-17 हेलिकाप्टर के लिए भी ठेका है। हाल ही में, इसे एक्वाडोर से 40,000 बाडी आर्मर की आपूर्ति करने का सौदा प्राप्त हुआ है ताकि वे अपने पुलिस बल की सुरक्षा बढ़ा सकें। एमकेयू ने इस ठेके के लिए एक्वाडोर
में वैश्विक निविदा में जीत दर्ज की थी तथा चयन से पूर्व गहन परीक्षण एवं फील्ड ट्रायल के बाद एक्वाडोर के आंतरिक मंत्रालय द्वारा इसके बाडी आर्मर का चयन किया गया।
एक्वाडोर भारत में हथियार बनाने का एक कारखाना स्थापित करने का भी उत्सुक है। स्मरणीय है कि एक्वाडोर ऐसे पहले देशों में से एक है जिसने भारत के देशज सात ‘ध्रुव’ एडवांस लाइट हेलिकाप्टर (ए एल एच) का आयात किया।
समटेल एवियोनिक्स लिमिटेड ने मल्टीपल हेलीकाप्टर कार्यक्रम के साथ-साथ फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट के लिए एम एफ डी की आपूर्ति हेतु एवियानिक सर्विसेज, ब्राजील के साथ एम ओ यू पर हस्ताक्षर किया है। कंपनी को दक्षिण अमरीका में एक प्रशिक्षक कार्यक्रम भी हासिल हुआ
है तथा डिस्प्ले पर प्रौद्योगिकी के अंतरण के लिए भी बातचीत चल रही है।
उपसंहार
व्यापार एवं निवेश वर्तमान भारत – एल ए सी संबंध का परकोटा है क्योंकि दोनों पक्ष ऊर्जा एवं प्राकृतिक संसाधन, भेषज पदार्थ तथा व्यवसाय सेवा क्षेत्रों में बहुत ही संपूरक हैं। व्यापार साझेदारों में विविधता तथा नए बाजारों तक पहुंच भी दोनों पक्षों के लिए प्राथमिकता
है, विशेष रूप से इसलिए कि पश्चिमी मांग वैश्विक मंदी की छाया के तहत अवरूद्ध हो गई है।