लेखक : विकास खन्ना
भारतीय पाक शैली विभिन्न समुदायों एवं संस्कृतियों के आपस में मिश्रण के 5000 साल पुराने इतिहास को दर्शाती है जिससे विविध फ्लेवर एवं क्षेत्रीय पाक शैलियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। मुगलों, ब्रिटिश और पुर्तगालियों के आने से भारतीय पाक शैली की विविधता में और वृद्धि
हुई।
पाक शैली में परिणामी फ्यूजन की वजह से उसका जन्म हुआ जिसे आज भारतीय पाक शैली के नाम से जानते हैं। भारतीय पाक शैली का मतलब खाना पकाने की विविध शैलियों से भी है। कभी - कभी इसका अभिप्राय यह होता है कि भारतीय पाक शैली अनुपयुक्त नाम है क्योंकि क्षेत्रीय व्यंजन
एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बहुत ही भिन्न हैं।
भारतीय पाक शैली ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इतिहास को भी आकार दिया है; भारत और यूरोप के बीच मसाले के व्यापार का अक्सर इतिहासवेत्ताओं द्वारा यूरोप के खोज के युग के लिए प्राथमिक प्रेरक के रूप में बताया जाता है। मसाले भारत से लाए जाते थे तथा यूरोप और एशिया
में उनका व्यापार किया जाता था। इसने पूरे विश्व की अन्य पाक शैलियों को भी प्रभावित किया है, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया, ब्रिटिश टापुओं एवं कैरेबियन की पाक शैलियों को प्रभावित किया है।
जिस तरह खाद्य के प्रभाव भारत से चलकर दूसरे देशों में पहुंचे, उसी तरह भारतीय पाक शैली भी विदेशों में पहुंची। खास - खास व्यंजनों ने लोकप्रियता हासिल की या मसालों के माध्यम से बारीक प्रभाव दुनियाभर की पाक शैलियों प्रवेश कर गए।
खाद्य का इतिहास
खाद्य का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता की खान-पान की आदतों का कोई ठोस रिकार्ड नहीं है। 1500 ईसा पूर्व आर्यों के आने के साथ साहित्यिक स्रोत खान-पान के भिन्न व्यवहार का खुलासा करते हैं। भोजन सरल था क्योंकि शुरू के आर्य अर्ध कृषक, अर्ध घुमक्कड़ थे। जैसा कि
वे 1000 ईसा पूर्व के आसपास गंगा के उर्वर मैदानी इलाकों में बसने लग गए थे, उनका भोजन अधिक जटिल एवं विस्तृत हो गया।
ऐसा प्रतीत होता है कि जौ और गेहूँ मुख्य रूप से पैदा होते थे और परिणामत: भोजन की प्रमुख वस्तु थे। इन अनाजों से विभिन्न प्रकार के केक बनाए जाते थे और भोजन के रूप में उनका प्रयोग होता था और देवताओं को अर्पित किया जाता था। पशुओं की बलि चढ़ाने और मांस पकाने,
रोस्ट करने और उबालने के बार-बार संकेतों का अभिप्राय यह था कि शुरू के आर्य लोग गैर शाकाहारी थे।
जैसे - जैसे कृषि अर्थव्यवस्था का विकास हुआ, मवेशी एवं अन्य पालतू जानवर खेती एवं संबंधित खाद्य उत्पादन की गतिविधियों के लिए अधिक उपयोगी बनते गए; मांस के लिए पशुओं को काटना उत्तरोत्तर महंगा होता गया। यह भारत में शाकाहार की शुरूआत थी। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी
में बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के उत्थान से अहिंसा के सिद्धांतों को धार्मिक आधार प्राप्त हुआ और आर्यों की संस्कृति में मांस खाना अभिशाप बन गया।
मध्य युग के शुरूआत तक शाकाहार आर्य लोगों की खान-पान की मुख्य आदत था; वे अनाज, फल और सब्जियां तथा दुग्ध उत्पाद का सेवन करते थे। गर्म जलवायु तथा बड़ी संख्या में जड़ी-बूटियों एवं मसालों की खेती से प्रिपरेशन अधिक जटिल हो गया। दो हजार वर्ष तक यह परंपरागत रूप
से शाकाहारी भारतीय परिवारों - विशेष रूप से उत्तर भारत में एक बड़े वर्ग की खान-पान की मुख्य आदत के रूप में बना रहा।
इस अवधि के दौरान, भारतीय पाक शैली ने विदेशियों के साथ अंत:क्रिया से भरपूर हासिल किया जो प्रवासी, व्यापारी और आक्रमणकारी के रूप में इस उपमहाद्वीप में आए थे - जिसकी वजह से यह विभिन्न पाक शैलियों का एक अनूठा मिश्रण बन गई।
विदेश फ्लेवर का पहला भारतीय स्वाद ग्रीक, रोमन एवं अरब आक्रमणकारियों के साथ आया जो अनेक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों एवं मसालों तथा सबसे महत्वपूर्ण रूप से केसर का प्रयोग करते थे।
विश्व की भिन्न - भिन्न रसोई से एक अन्य महत्वपूर्ण प्रभाव अरब आक्रमणकारियों से था जिन्होंने कॉफी की शुरूआत की। केरल की पाक शैली पर भी अमिट छाप छोड़ने वाले अरब के लोगों को अब केरला मुस्लिम (या मोप्लाह) पाक शैली के नाम से जाना जाता है। मुसलमानों के हाथों
से अभियोजन से बचकर निकलने वाले सीरिया के अरब ईसाइयों ने केरल के महाराजा के यहां शरण ली तथा केरल की पाक शैली पर भी काफी प्रभाव छोड़ा।
इसके बाद पारसी यहां आए और भारत को वह दिया जिसे पारसी पाक शैली के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों का विश्वास है कि मुगलों द्वारा इसे लोकप्रिय बनाने से पूर्व पारसी लोग सबसे पहले भारत में बिरयानी लाए थे।
मुगलों ने अपने भव्य खान-पान तथा ड्राइ फ्रूट्स एवं गिरी से युक्त अपने समृद्ध भोजन के माध्यम से भारतीय भोजन में क्रांति ला दी, जो एक ऐसी शैली है जो अंतत: मुगलाई पाक शैली के रूप में प्रसिद्ध हुई।
टमाटर, मिर्च और आलू जो आज की भारतीय पाक शैली के मुख्य खाद्य पदार्थ हैं, पुर्तगालियों द्वारा भारत लाए गए। पुर्तगालियों ने परिष्कृत चीनी भी प्रस्तुत की, जिसके पूर्व स्वीटनर के रूप में केवल फलों एवं शहद का प्रयोग होता था।
अफगानिस्तान से हिंदू शरणार्थी अपने साथ एक ओवन लाए जिसने व्यंजनों की पूरी तरह से एक नई श्रृंखला का मार्ग प्रशस्त किया - तंदूरी।
ब्रिटिश ने भारतीयों में चाय का स्वाद विकसित किया। चाय उगाने के लिए आदर्श जलवायु के साथ भारत तेजी से विश्व में चाय प्रेमियों की श्रेणी में शामिल हो गया। ब्रिटिश ने न केवल उसे प्रभावित किया जिसे भारतीय खाते थे, उन्होंने भारतीयों के खाने के ढंग को भी बदला।
पहली बार भारतीयों ने चाकू एवं कांटे का प्रयोग किया। रसोई में बैठकर खाने का स्थान डायनिंग टेबल ने ले लिया।
भारत में फ्लेवर
जड़ी बूटियां और मसाले भारतीय भोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मसाले का अभिप्राय अनेक मसालों के मिश्रण से
है जो व्यंजन के अनुसार अलग - अलग होता है। गरम मसाला सबसे महत्वपूर्ण मिश्रण है और भारतीय प्रिपरेशन का अत्यंत आवश्यक अंग है। भारत के प्रत्येक राज्य का गरम मसाले का अपना खास मिश्रण है।
वास्तव में मसालों एवं जड़ी-बूटियों की भूमिका केवल पकाने तक ही सीमित नहीं है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में रोगहर एवं निदान के इनके गुणों के लिए इनका वर्णन किया गया है। हालांकि आज की अधिकांश पीढ़ी को मसालों एवं जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों का ज्ञान नहीं है
तथा फ्लेवर एवं स्वाद हावी हो गया है परंतु परंपरागत ज्ञान में जो तथ्य बंद हो गए हैं वे मसालों एवं जड़ी-बूटियों के लाभों के सदियों पुराने रहस्य हैं।
भारतीय मसालों की कहानी 7000 साल से भी पुरानी है। ग्रीक और रोम की खोज होने से सदियों पहले समुद्री नौकाएं भारतीय मसाला, परफ्यूम एवं कपड़ा मेसोपोटामिया, अरब और मिस्र ले जाया करती थीं। इनके प्रलोभन में अनेक नाविक भारत के तटों पर आए।
ईसाई काल से काफी पहले ग्रीक सौदागर दक्षिण भारत के बाजारों में जमा होते थे, अनेक महंगी वस्तुएं खरीदते थे जिसमें मसाले भी शामिल होते थे। ऐसा माना जाता है कि भारत के लिए व्यापार मार्ग को खुला रखने के लिए रोम द्वारा पार्थियन युद्ध लड़ा गया था। यह भी कहा जाता
है कि भारतीय मसाले तथा यहां के प्रसिद्ध उत्पाद पूर्व के लिए जेहाद एवं अन्वेषण के प्रमुख आकर्षण थे।
1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने नई दुनिया की खोज की। पांच साल बाद, कैप्टन वास्कोडिगामा के मार्गदर्शन में एशिया के मसालों वाली धरती के लिए एक नए मार्ग की तलाश की जा रही थी। यद्यपि कोलंबस इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया, वास्कोडिगामा सफल हो
गया। जहाज अपने साथ मसालों एवं अन्य उत्पादों को ले जाते थे जिनका मूल्य उक्त समुद्री यात्रा की लागत से 60 गुना होता था। वास्कोडिगामा की सफल यात्रा से मसाले के व्यापार पर नियंत्रण के लिए अतंरराष्ट्रीय महाशक्तियों के बीच संघर्ष तेज हो गया। तीन शताब्दी
तक पश्चिम यूरोप के राष्ट्र - पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, हालैंड और ग्रेट ब्रिटेन - मसालों का उत्पादन करने वाले उपनिवेशों को लेकर खूनी समुद्री लड़ाई लड़ते रहे।
सन 1000 तक, अरबों का सिंधु घाटी पर साम्राज्य रहा। वे जीरा और धनिया लाए जिसे भारतीय मिर्च, अदरक और हल्दी में मिलाया गया, जिसे सदियों पश्चात ब्रिटिश नाविकों ने पूरी दुनिया में करी पाउडर के रूप में फैलाया। भारत में, अरबी सौदागरों को मसाले के स्थानीय व्यापारियों
से सुदूर पूर्व के दुर्लभ एवं आकर्षक मसाले प्राप्त होते थे। भारत ने पूर्व के मसाला द्वीपों में अपनी संस्कृति का विस्तार करने के लिए पिछली दो सहस्राब्दियों को व्यतीत किया था।
रसोई की शैलियां
स्थानीय स्ंस्कृति, भौगोलिक स्थान और आर्थिक स्थिति में अंतर के कारण भारत के भिन्न - भिन्न क्षेत्रों में पाक
शैली में अंतर पाया जाता है। मौसम के अनुसार भी इसमें अंतर होता है।
उत्तर भारत
यह पाक शैली संभवत: सबसे लोकप्रिय है तथा पूरी दुनिया में रेस्त्रां में इसका बड़े पैमाने पर इसका प्रयोग होता है। मोटेतौर पर इसकी विशेषता यह है कि मांस और सब्जियों को तंदूर में पकाया जाता है, दाल में क्रीम का प्रयोग किया जाता है तथा दही का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर में गेहूँ पैदा होता है और इसलिए परंपरागत तौर पर इस क्षेत्र के भोजन के साथ कई तरह की रोटियों - नान, तंदूरी रोटी, चपाती या परांठे का सेवन किया जाता है।
उत्तर भारत का सबसे मशहूर भोजन मुगलाई पाक शैली है। मुगलई पाक शैली मुगल सम्राट के शाही रसोई द्वारा विकसित पाक शैली है तथा मोटे तौर पर इसमें प्रयुक्त सामग्री गैर शाकाहारी होती है। इस पाक शैली की विशेषता यह है कि इसमें दही, तली हुई प्याज, गिरी एवं केशर का प्रयोग
होता है। नाजुक कबाब, क्रीमी कोरमा, रिच पसंदा...
कश्मीरी पाक शैली में प्रयुक्त होने वाली सबसे महत्वपूर्ण सामग्री मटन है जिसकी 30 से अधिक किस्में हैं। परंपरागत कश्मीरी पाक शैली कमोवेश कला जैसी है जिसे वजवान कहा जाता है जो मजबूत मध्य एशियाई प्रभावों को दर्शाती है। वजवान अनुभव का मतलब मुख्य रूप से गैर
शाकाहारी व्यंजन है, तथा प्रत्येक में जड़ी-बूटियों की खुशबू होती है और इस क्षेत्र के ताजे उत्पाद से बने होते हैं। कश्मीरी पाक शैली की अनोखी विशेषता यह है कि जिन मसालों का प्रयोग किया जाता है उन्हें तलने की बजाय उबाला जाता है जिससे अनोखा एवं भिन्न फ्लेवर
एवं खुशबू प्राप्त होती है।
पंजाबी पाक शैली अन्य पाक शैलियों से इस मायने में अलग नहीं है कि अधिकांश पाक शैलियां मध्य एशियाई एवं मुगलई पाक शैलियों से प्रभावित हैं क्योंकि यह मुगल हमलावरों के लिए प्रवेश बिंदु था। पंजाब में ढाबा की एक समृद्ध परंपरा रही है, जो मार्गों के किनारे, विशेष
रूप से हाईवे पर ईटिंग ज्वाइंट हैं। मा की दाल, सरसों दा साग और मक्की दी रोटी, मीट करी जैसे कि रोगन जोश और भरे हुए परांठे इस पाक शैली के कुछ लोकप्रिय व्यंजन हैं।
अवधी पाक शैली में पारसी, कश्मीरी, पंजाबी और हैदराबादी पाक शैलियों की समानताएं हैं। अवध के बावर्चियों एवं रकाबदारों ने खाना पकाने की दम शैली को जन्म दिया। दम अर्थात धीमी आंच पर एक बड़े हांडी एवं कुकिंग में खाद्य पदार्थों को बंद करने की कला जो इस क्षेत्र के
लोगों के आराम परस्त दृष्टिकोण एवं नजरिए से बहुत अच्छी तरह संबंधित है। अवध पाक शैली की समृद्धि न केवल पाक शैली की विविधता में है अपितु प्रयोग की गई सामग्रियों में भी है जैसे कि मटन, पनीर और समृद्ध मसाले जिसमें इलायची और केशर शामिल हैं।
दक्षिण भारत
दक्षिण भारत में भोजन की विशेषता यह है कि ग्रीडल पर व्यंजन तैयार किए जाते हैं जैसे कि डोसा, पतले ब्राथ जैसे कि दाल जिसे सांबर कहा जाता है और समुद्री भोजन की एक श्रृंखला। यह क्षेत्र करी पत्ती, इमली और नारियल के खूब प्रयोग के लिए भी जाना जाता है।
आंध्र प्रदेश अपनी हैदराबादी पाक शैली के लिए विख्यात है जो मुगलई पाक शैली से काफी प्रभावित है। तत्कालीन निजाम साम्राज्य का समृद्ध एवं आराम परस्त कुलीन वर्ग और साथ ही काफी समय तक उनके शांतिपूर्ण वर्चस्व ने इस पाक शैली के विकास में ज्यादातर योगदान दिया।
परंपरागत हैदराबादी व्यंजनों में जो सबसे महत्वपूर्ण हैं उनमें से कुछ बिरयानी, चिकन कोरमा और शीर खुरमा हैं।
कर्नाटक की पाक शैली की किस्में इसके तीन पड़ोसी दक्षिण भारतीय राज्यों के समान हैं तथा यह उत्तर में स्थित महाराष्ट्र एवं गोवा की पाक शैली से भी मिलती - जुलती है। कर्नाटक में खाना पकाने की दो मुख्य शैलियां हैं - ब्राह्मण पाक शैली जो पूरी तरह शाकाहारी है और
कुर्ग की पाक शैली जो पोर्क के अपने व्यंजनों के लिए मशहूर है।
तमिलनाडु की चेट्टीनाड पाक शैली विश्व व्यापी अनुयायियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य की सीमाओं से बाहर जाती है। आमतौर पर व्यंजन गर्म एवं ताजे ग्राउंड मसालों से भरपूर होते हैं और एक विशिष्ट मेन्यू चेट्टीनाड के लोगों की कुलीन जीवनशैली को दर्शाता
है।
केरल में संस्कृतियों के आपस में समृद्ध मिश्रण ने माउथ वाटरिंग डेलिकेसी के विशाल मेल्टिंग पाट में योगदान दिया जिन्हें मथा जाता है। अप्पम और स्टीव, उली थीयाल और निश्चित रूप से सर्वव्यापी बनाना चिप्स कुछ सबसे मशहूर व्यंजन हैं, तथापि केरल के उत्तरी भाग
में या मालावार तट के मुस्लिम मोप्लाह पाक शैली का वर्चस्व है। यहां के अनेक व्यंजनों में अरब प्रभाव अच्छी तरह दिखाई देता है जैसे कि अलीसा जो एक स्वस्थ गेहूँ एवं मांस का दलिया है। मध्य केरल का दक्षिण भाग वह क्षेत्र है जहां सीरियाई ईसाई पाक कला के अवशेष
अनेक होममेकर के लिए गर्व का विषय हैं। केरल की पाक शैली में उनका योगदान कई गुना है तथा सबसे उल्लेखनीय होपर, डक रोस्ट, मीन वेविचथू (रेड फिश करी) और इस्थेयू (स्टेव) हैं।
पूर्वी भारत
बंगाली पाक शैली भारतीय उप महाद्वीप से विकसित एकमात्र परंपरागत मल्टी कोर्स पाक शैली है जो फ्रांसीसी पाक शैली की दृष्टि से संरचना में देषज है जहां भोजन एक बार की बजाय टुकड़ों में परोसा जाता है। बंगाली पाक शैली में सरसों के तेल के साथ काली मिर्च पर बहुत अधिक
बल दिया जाता है तथा इसमें अधिक मात्रा में मसालों का प्रयोग होता है। यह पाक शैली मछली, सब्जी, मसूर की दाल और चावल पर बल के साथ अपने तीखे फ्लेवर के लिए विख्यात है। ताजे मीठे पानी की मछली इसकी सबसे अनोखी विशेषताओं में से एक है; बंगाली मछली कई तरह से बनाते हैं
जैसे कि उबालकर, दम देकर पकाना, या नारियल के दूध या सरसों के बेस पर सब्जियों एवं सॉस के साथ उबालना।
उड़ीसा की पाक शैली का फ्लेवर आमतौर पर तीखा एवं हल्का मसालायुक्त होता है तथा फिश एवं अन्य सीफूड जैसे कि केकड़ा और झींगा बहुत लोकप्रिय हैं।
भारत के पूर्वी राज्यों जैसे कि सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, असम, नागालैंड, मणिपुर के भोजन में उनके भौगोलिक लोकेशन के कारण नाटकीय रूप से काफी अंतर है। ये क्षेत्र तिब्बत, चीन तथा पश्चिमी पाक शैली से भी काफी प्रभावित हैं।
पश्चिम भारत
राजस्थानी पाक शैली काफी विविधतापूर्ण है। स्पेक्ट्रम के एक ओर तत्कालीन राजशाही युग में शिकार के प्रेम ने पाक कला के एक रूप का सृजन किया जो कल्पना से परे है। और स्पेक्ट्रम के दूसरी ओर समान रूप से भव्य मारवाड़ या जोधपुर के सभी शाकाहारी भोजन हैं जिनके लोकप्रिय
व्यंजन चूरमा लड्डू एवं दाल बाटी हैं।
गुजरात की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो मुख्य रूप से धार्मिक कारणों से मुख्य रूप से शाकाहारी है और इसलिए गुजराती पाक शैली पूरी तरह से शाकाहारी है। इस पाक शैली के लोकप्रिय व्यंजन ओंधिया, पात्र, खांडवी और थहेपला हैं। गुजराती भोजन मीठे होते हैं।
पारसी भोजन भारत के पारसी समुदाय - प्राचीन पारसियों का हालमार्क है। पारसियों का मुख्य व्यंजन धनसख (तली हुई प्याज तथा ब्राउन राइस जिसे दाल, सब्जियों एवं मांस के साथ परोसा जाता है) है जो रविवार को तथा सभी शादी व्याह में एवं त्यौहारों पर खाया जाता है। गोवा
की पाक शैली पर पुर्तगाल का मजबूत प्रभाव है क्योंकि पहले यह पुर्तगालियों का उपनिवेश हुआ करता था। ग्रेवी चिली हॉट होती है, मसाले वेनिगर और नारिल से युक्त होते हैं। इस पाक शैली के कुछ उदाहरण बालकायो, जकाती, विंदालूस, सोरपोटेल एवं मोएलोस हैं।
मालवानी / कोंकणी पाक शैली महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र, गोवा तथा पश्चिम कर्नाटक के उत्तरी भाग के हिंदुओं की मानक पाक शैली है। हालांकि मालवानी पाक शैली अधिकतर गैर शाकाहारी होती है, इसमें मुख्य रूप से शाकाहारी डेलीकेसी शामिल होती हैं। मालवानी पाक शैली में नारियल
का भरपूर उपयोग होता है तथा यह आमतौर पर बहुत मसालेदार होती है; तथापि, इस क्षेत्र की 'कोंकणास्था ब्राह्मण' खाद्य शैली बहुत बेस्वाद एवं शाकाहारी भी है।
पकवानों के साथ जश्न मनाना
भौगोलिक विशेषताओं एवं क्षेत्रों की विविधता के कारण छोटे या बड़े त्यौहार भारत में पूरे साल मनाए जाते हैं। ये त्यौहार
परंपरागत व्यंजनों का लुत्फ उठाने के लिए लोगों को बढि़या अवसर प्रदान करते हैं जो प्रत्येक त्यौहार से जुड़े होते हैं। विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं तथा संबंधित देवी-देवताओं को अर्पित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, दूध का हलवा, बटर और दही से बने व्यंजन
गाय चराने वाले कृष्ण के जन्मदिन अर्थात जन्माष्टमी का द्योतक होते हैं, जबकि ताजे नारियल के मोदक, मुरूक्कू की क्षेत्रीय वैरायटी, लड्डू और कज्जाया को गणेश का मनपसंद व्यंजन माना जाता है और गणेश चतुर्थी को यह भेंट में चढ़ाया जाता है।
मिठाइयों की इतनी अधिक वैरायटी है कि जब कोई उत्तर से दक्षिण या पूरब से पश्चिम और भिन्न - भिन्न जातीय समुदायों के बीच जाता है, तो वह अचंभित रह जाता है। पश्चिम बंगाल और उत्तर भारत में क्रमश: रसगुल्ला, चमचम, संदेश और लड्डू, गुलाब जामुन, काजू कतली लोकप्रिय
हैं जबकि गुजरात और राजस्थान में मेस्सू, मोंथार और घेवर लोकप्रिय हैं।
पूरी दुनिया में भारतीय भोजन
भारतीय प्रवासियों ने पूरी दुनिया में इस उपमहाद्वीप की रसोई की परंपराओं का विस्तार किया है। इन पाक शैलियों को स्थानीय स्वाद के अनुसार अनुकूलित किया गया है तथा स्थानीय पाक शैलियों को इन्होंने प्रभावित भी किया है। उदाहरण के लिए, करी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
आकर्षण का केंद्र है। भारत के तंदूरी व्यंजन जैसे कि चिकन टिक्का को बड़े पैमाने पर लोकप्रियता प्राप्त है।
मध्य पूर्व में भारतीय पाक शैली विशाल भारतीय समुदाय द्वारा काफी प्रभावित है। सदियों तक चलने वाले व्यापारिक संबंधों एवं सांस्कृतिक आदान - प्रदान की वजह से प्रत्येक क्षेत्र की पाक शैली पर काफी प्रभाव पड़ा है, सबसे उल्लेखनीय बिरयानी है। फारसी हमलावरों द्वारा
उत्तर भारत में इसे लाया गया तथा तब से यह मुगलई पाक शैली का अभिन्न अंग बन गया है।
भारतीय पाक शैली दक्षिण पूर्व एशिया में मजबूत हिंदू एवं बौद्ध सांस्कृतिक प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। मलेशिया की पाक शैली पर भी भारतीय पाक शैली का काफी प्रभाव है तथा यह सिंगापुर में भी लोकप्रिय है। सिंगापुर पाक शैली के मिश्रण के लिए विख्यात
है जिसके तहत सिंगापुर की परंपरागत पाक शैली का मिश्रण भारतीय पाक शैली के साथ किया जाता है। एशिया के अन्य भागों में शाकाहार के प्रसार का श्रेय अक्सर हिंदू एवं बौद्ध प्रथाओं को दिया जाता है जिसका जन्म भारत में हुआ।
चिकन टिक्का मसाला को सही ब्रिटिश राष्ट्रीय डिश कहा गया है। 2003 में, इंगलैंड और वेल्स में 10,000 रेस्त्रां भारतीय व्यंजन परोस रहे थे। ब्रिटेन की खाद्य मानक एजेंसी के अनुसार यूनाइटेड किंगडम में भारतीय खाद्य उद्योग 3.2 बिलियन पाउंड का है।
(विकास खन्ना पुरस्कार विजयी, मिशलीन स्टार वाले भारतीय शेफ, भोजनालय के मालिक,
खाद्य लेखक, फिल्म निर्माता, मानवतावादी एवं टीवी शो मास्टर शेफ इंडिया के होस्ट हैं। आप न्यूयार्क शहर में आधारित हैं।)