लेखक : मनीष चन्द
पुनरूत्थान, नवीकरण और पुनर्जागरण। लोकतंत्र, विकास और जनसांख्यिकी लाभांश। व्यापार, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण। 2015 एक संभाव्यताओं वाला वर्ष होगा जिसमें उभरते भारत और अफ्रीका के संबंधों का नया इतिहास रचा जाना तय है और दोनों देश परस्पर संबंधों की नई एवं बहु-आयामी
परिभाषा को जन्म देंगे। इस वर्ष के अंत में नई दिल्ली में तृतीय भारत–अफ्रीका फोरम शिखर- सम्मेलन का आयोजन होगा जिसमें दोनों देशों के बीच परस्पर हितों, मूल्यों और नए अवसरों के बढ़ते अभिसरण को एक नई दिशा मिलेगी। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा आयोजित यह पहला भारत-अफ्रीका
शिखर सम्मेलन होगा और इसमें ''कौशल, पैमाना और गति'' का मंत्र फूंका जाएगा ताकि विश्व के दो देशों के बीच संबंधों में गतिशीलता और प्रगाढ़ता स्थापित हो सके।
एक नए शिखर सम्मेलन का महत्व
तीसरा शिखर सम्मेलन एक मील का पत्थर सिद्ध होगा और नई दिल्ली (2008) तथा अदिस अबाबा (2011) में आयोजित विगत दो शिखर सम्मेलनों से वृहत एवं भव्य होगा, क्योंकि यह पहला अवसर है जिस शिखर सम्मेलन में सभी 54 अफ्रीकी देशों के नेताओं को आमंत्रित किया गया है। इस संदर्भ
में, 2015 का शिखर सम्मेलन एक नई शुरूआत का द्योतक है क्योंकि पूर्व में शिखर सम्मेलन की प्रक्रिया में अफ्रीकी नेताओं की भागीदारी बेंजुल फामूर्ले के आधार पर की गई थी, जिसमें लगभग 12-14 अफ्रीकी देशों की भागीदारी थी और जिन्होंने शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय
आर्थिक समुदायों (आर ई सी) के प्रमुखों की हैसियत से भाग लिया था। बेंजुला फामूर्ले को समाप्त करने और सभी नेताओं को आमंत्रित करने के इस निर्णय से दोनों देशों में यह सकारात्मक संदेश जाता है कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी भागीदारी की संभावना को बढ़ाने और अपने सामान्य
एजेंडे में एक नई ऊर्जा डालने के लिए कृत संकल्प हैं।
तीसरे शिखर सम्मेलन से यह अपेक्षा की जाती है कि इसमें मानव जीवन के लिए खतरनाक गतिविधियों के प्रति आपत्ति दर्ज की जाएगी और
2008 में नई दिल्ली और 2011 में अदिस अबाबा के शिखर सम्मेलनों के महत्वपूर्ण परिणामों और योजनाओं के आधार पर इसे नई दिशा प्राप्त होगी तथा अफ्रीका - भारत व्यापक सहयोग ढ़ांचे के अनुरूप मजबूती से आगे ले जाएंगे। इस सम्मेलन में प्रस्तुत सभी दस्तावेज आधिकारिक
व्यापार, क्षमता-निर्माण और प्रशिक्षण के संदर्भ में परस्पर भागीदारी बढ़ाने वाले सिद्ध होंगे।
पुनरूत्थान के नए अवसर सृजित करते हुए
इसकी संभावना व्यक्त की जा रही है कि तीसरे शिखर सम्मेलन के अंतनिर्हित विषय भारत - अफ्रीका के समन्वित विविध उद्देश्यों को उल्लेखनीय रूप से गुणवत्तापूर्ण एवं व्यापक उत्थान प्रदान करेंगे। एक ओर नई दिल्ली में सत्तारूढ़ नई सरकार के तहत द्वितीय चरण के आर्थिक
सुधारों में आई बाढ़ से विश्व भारत की प्रगति के बारे में काफी आशान्वित है, आर्थिक संवृद्धि में होने वाले संभावित उत्थान से भारत को न सिर्फ अपने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण हेतु अधिक पूंजी एवं संसाधनों की प्राप्ति होगी बल्कि अफ्रीका जैसे विश्व में उभरते संवृद्धि
के केंद्रों के साथ अपनी सहभागिता के अवसर को बढ़ाने में और अधिक वित्तीय सहयोग मिलेगा। वहीं दूसरी ओर, अफ्रीका महाद्वीप में नए आर्थिक उत्थान की पटकथा निरंतर लिखी जा रही है जिससे अफ्रीका में निवेश संबंधी सुअवसरों हेतु प्रभावशाली एवं नए निवेशकर्ताओं के बीच स्वस्थ
प्रतिस्पर्धा विकसित हुई है।
निश्चित रूप से अफ्रीका ने ''उम्मीदरहित महाद्वीप'' की अपनी परंम्परागत छवि को दूर कर दिया है और उप- सहारा अफ्रीका प्रदेश
में सर्वाधिक तेजी से विकसित हो रही छ: अर्थव्यवस्थाओं तथा तीस से अधिक अफ्रिकी देशों में प्रजातंत्र का सफलतापूर्वक लागू हाने से अब यह ''भरपूर उम्मीदों का केंद्र'' बन गया है। इस प्रभावी क्षमता में 19–35 आयु वर्ग के भारत एवं अफ्रीका दोनों की आबादी सहित उन दोनों
की जनसांख्यिकीय विशिष्टताओं को शामिल करना होगा। गुणवत्ता उन्मुख मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं की नयी पीढ़ी के उद्भव से अफ्रीकी और भारत दोनों की आकर्षक उपलब्धियां बढ़ी हैं। इसका समग्र प्रभाव है कि द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश को संवर्धित करने हेतु नए द्वार
खुलने संभावित हैं। भारत–अफ्रीका व्यापार लगभग 70 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है और यदि मौजूदा आशावादी प्रवृत्तियां जारी रहीं, तो अगले 2–3 वर्षों में इनका द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 100 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
विकास में भागीदारिता
यह आर्थिक पुनरूत्थान अन्य कार्यक्षेत्रों में भी परिलक्षित होगा। चूंकि दोनों पक्षों ने वर्ष 2008 की ग्रीष्मकालीन अवधि में महत्वाकांक्षी एवं बहु-स्तरीय शिखर सम्मेलन प्रक्रिया की शुरूआत की थी, भारत ने इस पूरे विकासशील महाद्वीप में परियोजनाओं की व्यापक श्रृंखला
हेतु साख स्वरूप 8.5 बिलियन डॉलर से अधिक राशि के योगदान की प्रतिबद्धता दिखाई है। पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए, भारत की नई सरकार द्वारा वर्ष 2015 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में महत्वाकांक्षी कई बिलियन डॉलर के विकासात्मक पैकेज की घोषणा किए जाने की संभावना है।
भारत ने एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में विभिन्न अफ्रीकी देशों में 100 से अधिक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करने संबंधी प्रतिबद्धता को भी पूरा करने वाला है, जिसके अंतर्गत कृषि, ग्रामीण विकास तथा खाद्य प्रसंस्करण से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी जैसे व्यापक क्षेत्रों,
पेशेवर प्रशिक्षण, अंग्रेजी भाषा केंद्रों तथा उद्यमिता विकास संस्थानों को कवर किया गया है। व्यापार, प्रौद्योगिकी तीन अनवरत महत्व के क्षेत्र हैं जो बहुआयामी भारत - अफ्रीका संबंधों को प्रगाढ़ बनाते हैं और आगे आने वाले महीनों में भी इसकी विद्यमानता बनी रहेगी।
ज्ञान शक्ति
अफ्रीका के साथ कई अन्य राष्ट्रों का भी अपेक्षाकृत बड़ा द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध हो सकता हैं, लेकिन भारत के साथ इसकी सम्बद्धता की सबसे महत्वपूर्ण विशिष्टता यह है कि इसका मुख्य ध्यान नवीन क्षमता निर्माणकारी कार्यक्रमों और आई सी टी के उपयोग पर केंद्रित
है, जो अफ्रीका महाद्वीप में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करने में देश की विलक्षण विशिष्टता है। भारत किसी भी परियोजना द्वारा सहायता प्राप्त अखिल अफ्रीका ई – नेटवर्क से अधिक बेहतर ढंग से इस पर इतना ध्यान केंद्रित किया है जो हजारों मील दूर रहने वाले
अफ्रीका के नागरिकों को भारत के उत्कृष्ट शैक्षिक संस्थाओं तथा अति – विशिष्ट सुविधा युक्त अस्पतालों से सम्बद्धता प्रदान करते हुए टेली–मेडिसीन एवं टेली–एजुकेशन की सुविधा उपलब्ध कराता है। एक बार प्रचालनरत हो जाने पर प्रशिक्षण संस्थान कुशल एवं प्रौद्योगिकी
दक्ष कामगारों की नयी पीढ़ी का निर्माण करने में अफ्रीका के सतत प्रयासों के लिए एक वरदान साबित होगा। मोदी सरकार द्वारा आरंभ किए गए ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘डिजिटल इंडिया’ मिशनों का अफ्रीका में इसकी अभिगम्यता एवं राजनयिक माहौल में दूरगामी परिणाम होंगे।
वास्तविक जांच : गहन रणनीति
उच्च आकांक्षाओं एवं पुनर्जागरण के निर्माण के इस स्वरूप में वास्तविकता जांच की भी आवश्यकता होती है जबकि अफ्रीकी की संवृद्धि की कहानी का समग्र अनुमान पूर्णत: उज्ज्वल है, हाल के महीनों में महाद्वीप के बहुत बड़े भाग को बर्बाद करने वाले आतंकवाद के घातक कारनामें
देखने को मिले हैं। महाद्वीप में आतंकवादी एवं चरमपंथी समूहों जैसे- माघरेब में अल-कायदा, नाईजीरिया मूल के बोको –हराम एवं अल–शबाब के तेजी से पैर पसारने और विश्व के अन्य भागों में युद्ध लड़ाकों के साथ उनके संदिग्ध संबंधों के मद्देनजर, भारत और अमेरिका के बीच
आतंकवाद के मुद्दे पर एक अति सक्रिय सहयोग की अनिवार्यता है। अत: भारत–अफ्रीका भागीदारी के अगले चरण की ओर मुखातिब होते हुए, आतंकवाद, समुद्री डकैती के खतरों और समुंद्री सुरक्षा से संबंधित विभिन्न विषयों में सुरक्षा सहयोग और अधिक प्रगाढ़ होने के प्रबल आसार हो
सकते हैं।
तीसरा शिखर सम्मेलन : नई संभावनाएं
इसलिए, तीसरे भारतीय–अफ्रीका शिखर सम्मेलन एक बड़े राजनयिक समारोह के रूप में साबित होने वाला है जिसमें इन दो क्षेत्रों की समृद्धता, उद्यमिता तथा शक्तियों का प्रदर्शन होगा; भारत और अफ्रीका के समानांतर एवं अंतर्संबंध उद्भव के द्वारा उत्पन्न नए अवसरों का उपयोग
करने हेतु समीक्षा करने और आगे की रूपरेखा तैयार करने का उपयुक्त अवसर है। एक दूसरे को समर्थ बनाने के परस्पर सहयोग की संभावनाएं वस्तुत: असीमित हैं। जैसा कि घाना के राष्ट्रपति जॉन कुफूर ने कहा है, ''अफ्रीकी संसाधनों और भारतीय विशेषज्ञता का संयुक्त रूप से
उपयोग करके कुछ भी संभव है।''
वैश्विक शासन को पुनर्स्वरूप देते हुए
द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा, भारत-अफ्रीका समीकरणों से अभरते हुए नए विश्व के परिदृश्य पर भी व्यापक असर पड़ेगा। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र अपनी 70वीं वर्षगांठ मना रहा है, भारत और अफ्रीका को एक साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नए बेहतर विश्व स्वरूप
में नई दिल्ली तथा अफ्रीका महाद्वीप दोनों में इसके कार्यालयों में विस्तार एवं सुधार की चिर–प्रतीक्षित सपने को पूरा करना चाहिए। भारत तथा अफ्रीका दोनों के सपनों का एक–दूसरे का अनुपूरक बनाने में वास्तविक एवं सर्वथा वास्तविक विश्व का स्वरूप प्राप्त करने
में काफी अड़चनें हैं।
(मनीष चंद अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर केंद्रित ऑनलाइन पत्रिका
- जर्नल, ''इंडिया वायर्स'' के प्रमुख संपादक हैं। आपने ''टू बिलियन्स ड्रीम्स : सेलेब्रेटिंग इंडिया – अफ्रीका फ्रेण्डशिप'' का सम्पादन तथा ''इनगेजिंग विद रिसर्जेण्ट अफ्रीका'' का सह – सम्पादन किया है।)