मार्क सुजमैन: नमस्कार, इस वर्ष रायसीना संवाद का हिस्सा बनने में काफी प्रसन्नता हो रही है। मैं मार्क सुजमैन, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी हूं। तथा मैं इस बात का स्वागत कर रहा हूं कि माननीय विदेश मंत्री एस जयशंकर तथा भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजयराघवन से आकर्षक बातचीत होगी। गेट्स फाउंडेशन में, हमने भारत सरकार तथा निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी के साथ मजबूत साझेदारी की एक लंबी परंपरा है, दोनों क्षेत्र भारत तथा भारत से बाहर, स्वास्थ्य मुद्दों पर तथा कई अन्य मुद्दों पर भी कार्य कर रहे हैं। परन्तु इस वर्ष, स्वास्थ्य केंद्रित विषय पर संभवतः सबसे उपयुक्त चर्चा हो सकता है। इससे पहले कभी भी वैश्विक स्वास्थ्य ने वैश्विक मामलों में ऐसी केंद्रीय भूमिका नहीं निभाई है तथा मैं कहूंगा की इससे पहले कभी भी भारत ने वैज्ञानिक अनुसंधान तथा विकास, वैक्सीन विनिर्माण तथा कोविड-19 से संबंधित अन्य संबंधित गतिविधियों के संदर्भ में इसके महत्व को देखते हुए ऐसी केंद्रीय वैश्विक भूमिका नहीं निभाई है ।
कोविड-19 महामारी एक अभूतपूर्व तरीके से विश्व भर में जीवन तथा आजीविका को प्रभावित किया है। और शोधकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मियों, व्यापार जगत के नेताओं, जमीनी संगठनों में भी अभूतपूर्व प्रतिक्रिया हुई है तथा भारत इस प्रयास में सबसे आगे रहा है। इसलिए मंत्री जयशंकर, यदि मैं आपके साथ शुरुआत करते हुए, मैं भारत को कोविड-19 टीकों की 100 मिलियन से अधिक खुराकों को प्रदान करने के लिए बधाई देना चाहूंगा। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की कोविड-19 के प्रति वैश्विक भावात्मक प्रतिक्रिया के पिछे का प्रमुख कारण प्राचीन संस्कृत वाक्यांश "वसुधैव कुटुंबकम" रहा है, जो विश्व को एक परिवार मानता है। क्या आप इस बारे में थोड़ा और बात कर सकते हैं कि इस सिद्धांत ने विश्व स्तर पर भारत की प्रतिक्रिया तथा कार्यों को कैसे निर्देशित किया है?
डॉ एस जयशंकर: धन्यवाद। धन्यवाद, मार्क आज इस पैनल में आपके साथ तथा विजय के साथ होना प्रसन्नता की बात है। देखिए, "वसुधैव कुटुंबकम" एक दृष्टिकोण है। सचमुच, इसका अभिप्राय है कि विश्व एक परिवार है। और, जब मैं कहता हूं कि यह एक दृष्टिकोण है, यह दोनों का अभिप्राय है कि विश्व हमारे लिए महत्वपूर्ण है और यह भी कि हम विश्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। अब, आज के विश्व में यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग में तब्दील हो। अब, मैं कहूंगा की अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अच्छा है। परन्तु मुझे लगता है कि अच्छा होने के नाते सिर्फ अच्छा नहीं किया जा रहा है। मुझे लगता है कि अच्छा होने का अभिप्राय स्मार्ट होना भी है,वहां मूल्यों को आप अंतरराष्ट्रीय सहयोग से प्राप्त कर रहे हैं, चीजें है जो संभव नहीं होगा अगर आप अंतरराष्ट्रीय सहयोग नहीं हो। और यदि आप आज देखें, तो यह केवल हमारे कहने के लिए नहीं है "वसुधैव कुटुंबकम", का वास्तव में अभिप्राय है कि हम क्या कहते हैं, तथा हमारे पास इसका प्रदर्शन करने के व्यावहारिक तरीके हैं।
यह एक बहुत ही व्यावहारिक, वितरण उन्मुख सरकार है। और आपने टीकों के बारे में बात की; हमने बहुत से देशों में टीके वितरित किए। लेकिन महामारी से पहले भी, यदि आप मानवीय सहायता के संदर्भ में देखें, चाहे वह नेपाल में भूकंप हो, अथवा यमन में गृहयुद्ध हो, या मोजांबिक में चक्रवात हो, या फिजी में तूफान हो, या श्रीलंका में मडस्लाइड हो, अथवा अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों के माध्यम से पेरिस के एजेंडे को आगे ले जाना हो, या आपदा के प्रभाव को कम करने की दिशा में सामूहिक रूप से कैसे प्रतिक्रिया देना है। इसलिए, बहुत ही व्यावहारिक तरीके हैं जिनके द्वारा हमने एक परिवार के रूप में विश्व में अपने विश्वास का प्रदर्शन किया है। तथा टीका केवल हाल ही का एक उदाहरण है। तथा जो लोग वास्तव में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर प्रश्न उठाते हैं, मैं चाहता हूं कि लोग भी इस बात को समझें, कि टीके बनाने की हमारी क्षमता, जैसा कि विजय पुष्टि करेंगे, वह अपने आप में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का परिणाम है। तो अंतरराष्ट्रीय सहयोग एक तरफ़ा सड़क नहीं है जहां हम अंय लोगों को सिर्फ प्रदान कर रहे है तथा स्वयं को कम कर रहें है, मुझे लगता है कि इस बात को लोगों को समझने की जरूरत है।
मार्क सुजमैन: इसके लिए धन्यवाद। तथा निश्चित रूप से गेट्स फाउंडेशन के नजरिए से, पिछले 20 वर्षों में भारत में हमारे सहयोग में वैज्ञानिक भागीदारी तथा सहयोग का एक बड़ा मसौदा शामिल है, जिसमें अब बड़े वैश्विक टीका निर्माता शामिल हैं, जहां हमारे साथ साझेदारी तथा गावी टीका गठबंधन के साथ, जो भारत को एक वैश्विक अग्रणी राष्ट्र में बदलने में मदद की है, इसका एक हिस्सा आज है ।
परंतु डॉ विजयराघवन, अगर मैं उस पर थोड़ा और जोड़ देकर आपसे पूछूँ तो, कोविड-19 से संबंधित वैज्ञानिक नवाचार पर कार्यबल के सह-अध्यक्ष के रूप में, इस पृष्ठभूमि में मुझे लगता है कि यह भारत में एक बहुत अभूतपूर्व प्रयास किया गया है और कैसे आपने टीका विकास को त्वरित रूप से आगे बढ़ाया है, क्या आप इस पर प्रकाश डाला सकते है कि आपने ये सब कैसे किया है तथा आगे इसमे आपको क्या संभावना दिखती है।
डॉ के विजयराघवन: बहुत-बहुत धन्यवाद, मार्क। आपके और हमारे विदेश मंत्री के साथ यहां होना प्रसन्नता की बात है। और, जैसा कि हमने अभी सुना है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग सिर्फ यह है कि यह एक सहयोग है। और यदि आप महामारी की शुरुआत को देखें, तो भारत ऐसी स्थिति में था जहां पीपीई, स्वास्थ्य उपकरण वेंटिलेटर, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के कारण कम आपूर्ति था क्योंकि कुछ मजबूत गाँठ हावी होने के कारण प्रभावित हुए थे। हमने उस सबक से बहुत तीव्रता से सीखा हैं और तुरंत ही दो कार्य किए। हमने इस सब के निर्माण को तीव्र किया, परन्तु टीका पर, हमने अत्यंत प्रभावशाली कार्य किया है। कहीं और विकसित टीकों को अपने यहाँ निर्माण कर इसमे वृद्धि कर अपने यहां टीका विकसित किया। और वह काफी प्रभावशाली है। भारत न सिर्फ एक विशाल टीका निर्यातक तथा निर्माता बन गया, बल्कि एक टीका विकसित करने वाला राष्ट्र बन गया। सिर्फ बड़ी कंपनियां ही नहीं, बल्कि हमारे स्टार्ट-अप्स, हमारे शिक्षाविद टीका विकास तथा टीकाकरण में लिप्त हैं। और आप उस के परिणाम बहुत जल्द ही देखने जा रहे हैं। तो यह एक बहुत ही बदली हुई स्थिति को दर्शाता है, जहां न केवल वर्तमान महामारी में अच्छी तरह से सेवा कर रहें हैं, परन्तु अगले वैश्विक महामारी के लिए हमारी तैयारी है, तथा इस मोर्चे पर वैश्विक सेवा के लिए तैयारी को एक अविश्वसनीय रूप से तैयार किया गया है।
मार्क सुजमैन: इसलिए इस संदर्भ में, मंत्री जी, यदि मैं आपके पास वापस आऊं तो विश्व स्तर पर टीकों तक समान पहुंच के बारे में काफी चर्चा हुई है। जाहिर है, यह हमारे समय का एक अहम मुद्दा है। हम जानते है तथा निश्चित रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर, उदाहरण के लिए, जहां से मैं बात कर रहा हूं, जबकि यहाँ कोवैक्स के लिए महत्वपूर्ण समर्थन किया गया है, अन्य देशों अथवा विश्व के अन्य भागों में टीकों के वास्तविक वितरण के समर्थन के लिए कुछ नहीं किया गया है। जबकि भारत, आपकी वैक्सीन मैत्री पहल के माध्यम से, आपके पास पहले से ही 85 देश हैं, जिन्हें सहायता दी गई है, मेरा मानना है कि उन टीकों तक पहुंच अन्यथा नहीं होते। तो उस संदर्भ में, कैसे साक्षात्कार तथा इस तरह के प्लेटफार्मों पर सिर्फ आपके विचारों को सुनने के लिए बहुत अच्छा होगा, परन्तु यह भी की कोवैक्स तथा अन्य द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय दृष्टिकोण, दोनों मौजूदा संकट के लिए, लेकिन यह भी, यह कुछ विश्व के लिए आगे बढ़ने में बाधा करने जा रहा है, स्वास्थ्य में तथा स्वास्थ्य से परे भविष्य की चुनौतियों के लिए सही रणनीति क्या हो सकती हैं।
डॉ एस जयशंकर: मार्क, मैं वास्तव में आपका ध्यान ऐसे बिंदु पर ले जाना चाहता हूँ जो विजय आपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले बताया था, जो है, हम इस महामारी से लड़ रहे है पर उठाना चाहते हैं, परन्तु जबकि हम ऐसा कर रहें हैं, हमें सादृश्य को समझने की जरूरत है, जैसे की टाइफून। जब एक बार टाइफून आ जाता है तब आगे चलकर यह और मजबूत हो जाता है। तो सब कुछ हम कर रहे हैं, हम अभी के लिए कर रहे हैं, परन्तु जो कुछ भी हम कर रहे है, इससे हम आगे आने वाले संकट के लिए भी तैयार कर रहें है। अब, मुझे लगता है कि इसमें समान पहुंच गंभीर रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं होगा तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। परन्तु जबकि हम यह जानते है फिर भी इसे अनिवार्य रूप से अभ्यास में नहीं लाते। तो, काफी ईमानदारी से, वैश्विक प्रवृत्ति यह होनी चाहिए की प्रत्येक कोई अपना ख्याल स्वयं रखे। अब, मैं समझता हूं कि, मैं उस के खिलाफ नहीं हूं। मुझे लगता है, अगर को भी देश तनाव में है, अगर संख्या बढ़ रही है, जैसा की अभी हमारे यहाँ हो रहा हैं, मुझे लगता है कि यह पूरी तरह से वैध है कि जहां तत्काल चुनौती है हमारे उत्पादन वहीं के लिए पुनः लक्षित किया जाए।
परन्तु तथ्य यह है कि दूसरों की मदद करने के लिए आपके पास सिमित सीमा ,क्षमता तथा दायित्व होती है, मुझे लगता है कि यह बात करना ठीक है, जैसा कि मैंने कहा, अच्छा करने का अभिप्राय स्मार्ट रूप से करने से भी है।अब, हमारे मामले में, हमारे टीका उत्पादकों के पास कुछ संविदात्मक प्रतिबद्धताएं थीं, जैसा कि आप जानते हैं, उनके पास कोवैक्स के प्रति प्रतिबद्धताएं थीं, जहां हमने वास्तव में कई अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की मदद की, दक्षिण एशिया में हमारे अपने कुछ पड़ोसी देशों में फिपिक तथा कैरीकॉम के साथ मदद की। क्योंकि छोटे देशों में, केवल खरीदने की क्षमता नहीं होती है, वे वास्तव में वास्तव में बाजार का उपयोग करने के लिए साधन भी नहीं होती है। इसलिए मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है और फिर, जब हम अभी जाहिर है टीकों पर चर्चा कर रहे हैं, मैं चाहता हूं कि आप इसे एक बड़ी तस्वीर के संदर्भ में देखें, क्योंकि मेरे विचार से, वैश्वीकरण के बारे में वास्तविक बहसों में से एक वैश्वीकरण की समानता तथा निष्पक्षता रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वैश्वीकरण समाजों और समाजों के बीच लाभप्रद नहीं रहा है। परन्तु आपने देखा होगा लोग वैश्वीकरण के गुणों पर सवाल उठाते हैं, और जो वास्तव में वैश्वीकरण के लिए प्रतिबद्ध है तथा अच्छा करना चाहते हैं, मुझे लगता है कि स्वयं को उस के लिए समर्पित करना चाहिए।
और मैं अपनी साझेदारी, गेट्स फाउंडेशन के साथ सरकार की साझेदारी को एक प्रकार के वैश्विक निष्पक्ष गठबंधन के रूप में देखता हूं, यदि आप चाहें, तो हम वास्तव में यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि समाजों के भीतर तथा देशों के बीच कमजोर,कम विशेषाधिकार प्राप्त लोग पीछे न छूटें। परन्तु इस के लिए, जो हम कर रहे है के अलावा, मुझे लगता है, यह महत्वपूर्ण है कि वहां अतिरिक्त क्षमता रहे, क्योंकि यह पर्याप्त नहीं है। जब तक आपके पास अधिक उत्पादन नहीं होगा, तब तक वितरित न्याय अपने आप पर्याप्त नहीं होगा। और मैं समझता हूं कि वैश्विक विकास के अतिरिक्त इंजन के रूप में भारत की भावना, जैसा कि विजय ने उदाहरण के लिए इस तथ्य के लिए कहा है कि आपके पास भारत ने भी टीका का विकास किया है। इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण विकास है। इसलिए मेरा मानना है कि भारत के उदय का एक हिस्सा वास्तव में अतिरिक्त क्षमताओं का प्रदर्शन करना होगा। और मुझे लगता है कि विश्व को बेहतर उन अतिरिक्त क्षमताओं द्वारा सेवा की जाएगी। क्षमता, जो एक ऐसे देश के पास है, जो विश्व को गले लगाती है, जो वास्तव में, जैसा कि मैंने कहा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग में विश्वास करता है, जिसकी विरासत में ऐसा करना मिला है, और जो अपने धन को वहाँ भेज रहा है जहाँ इसकी आवश्यकता है, और जो अपनी क्षमता को वहाँ प्रदान कर रहा है, जहाँ इसकी आवश्यकता है, चाहे वह हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन हो, अथवा अब टीका हो, हमने कदम आगे बढ़ाया है। मुझे लगता है कि यह कुछ है जो रेखांकित करने लायक है।
मार्क सुजमैन: मैं बहुत ज्यादा एक वैश्विक निष्पक्ष गठबंधन के आपके दृष्टिकोण का समर्थन करता हूँ, आप जानते हैं मैं तथा गेट्स फाउंडेशन ऐसा कर सकते हैं, हमारे मूल मिशन में जब 20 वर्ष पहले इसे स्थापित किया गया है, जो सिएटल के बाहर हमारे मुख्यालय पर खुदी हुई है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक स्वस्थ तथा उत्पादक जीवन के लिए मौका मिलना चाहिए। और वास्तव में, नाराजगी है कि बिल तथा मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने महसूस किया जब वे देखा कि कई आसानी से पहुँच सेवाओं का उपयोग करने के लिए, विशेष रूप से स्वास्थ्य उपचार, कृषि तथा वित्तीय समावेशन और स्वच्छता में, धनी देशों के लिए नियमित पहुंच प्राप्त है विकासशील देशों में यह वितरित नहीं किया जा रहा था वास्तव में हमारे सभी कार्य के पीछे प्रेरक शक्ति यही है। और इस संदर्भ में, यह भारतीयों के साथ हमारी साझेदारी का एक मुख्य तत्व भी रहा है, मैं शुरू में टीकों के बारे में कहाँ हूं, जहां भारत पहले से ही रोटावायरस के लिए मजबूत स्थानीय टीके बन चुका है तथा विकसित कर चुका है, घरेलू उपयोग के लिए तथा वैश्विक उपयोग के लिए भी। इसका जुड़ाव दक्षिण-दक्षिण विकास का एक दृष्टिकोण है, जिसमें भारत फिर से सबसे आगे रहा है तथा मैं सोचता हूं कि अब हम जो देख रहे हैं उसका हिस्सा, मुझे आशा है कि दक्षिण-दक्षिण साझेदारियों के एक अलग तरह का दृष्टिकोण हैं, जिनमें भारत अग्रणी रहा है। और जैसा कि आप, मंत्री जी इस बारे में थोड़ी सी बात की है की आप उस दृष्टि को स्वास्थ्य से परे आगे बढ़ते हुए कैसे देखते हैं, स्वास्थ्य सहित परन्तु स्वास्थ्य के अलावा भी।
डॉ एस जयशंकर: आप जानते हैं, मार्क, दक्षिण-दक्षिण सहयोग एक लंबे समय के लिए किया गया है। मुझे लगता है कि बहुत से लोगों को ईमानदारी से और वास्तव में इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। परन्तु यह महत्वपूर्ण है, मुझे लगता है, अधिक वैश्वीकरण के साथ, मजबूत अंतर-जुड़ाव, निर्भरता, अधिक प्रौद्योगिकी, और भी अधिक चुनौतियों के साथ वास्तविकता में इसका समाधान करने के लिए। मुझे लगता है कि यह आज के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लुभावना शब्दों का इस्तेमाल करना तथा उंहें व्यावहारिक पहल और आपकी तरह नींव बनाने में, स्पष्ट रूप से वहां दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अब, जब हम दक्षिण-दक्षिण सहयोग की बात करते हैं, तो हमारे लिए उसका एक बड़ा हिस्सा एशिया के अंदर है, तथा अफ्रीका के साथ हमारे संबंध भी हैं। और पिछले छह वर्षों में, प्रधानमंत्री मोदी के पद पर आने के बाद से हमने निश्चित रूप से; हमने वास्तव में कदम बढ़ाया है। मेरा तात्पर्य आज 54 अफ्रीकी देशों से है, उदाहरण के लिए, मैं समझता हूं कि 51 देशों में हमारे पास किसी प्रकार की परियोजनाएं हैं अथवा अनुदान या ऋण प्रदान की गई हैं, उनमें से अधिकतर ऋण की तर्ज पर हैं। और कुछ लोग हैं, जो किसी अभिप्राय में सोचते हैं की नहीं, जो इस पर विश्वास नहीं करते अथवा थोड़ा सनकी हैं, अक्सर इन लोगों को यह आत्म हित के रूप में लगता है। और मैं दावे के साथ ऐसा कह सकता हूं, मेरा तात्पर्य अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में है, जहाँ पर ऐसे तत्व है। परन्तु मुझे लगता है कि अगर आप हमने जो किया है, उसे देखें, और कुछ उदाहरणों से मेरा मतलब है, मॉरितानिया जैसा देश, यह अफ्रीका का दूसरा छोर है। मेरा अभिप्राय है, वहां मेरा रणनीतिक हित विशेष रूप से अधिक नहीं है। लेकिन तथ्य यह है कि हम वहां जा सकते है तथा एक दूध प्रसंस्करण संयंत्र की शुरुआत कर सकते हैं, या तथ्य यह है कि हमने तंजानिया तथा मोजांबिक में जल उपचार प्रणाली में अत्यंत सक्रिय रूप से कार्य किए है, अथवा पुनर्जीवित करने में, हमने केन्या में एक कपड़ा संयंत्र, अथवा जिबूती में सीमेंट संयंत्र, विभिंन देशों में चीनी का निर्माण संयंत्र लगाया है। और अब हम प्रौद्योगिकी का उपयोग करके बहुत कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं, हमारे पास टेली-हेल्थ तथा टेली-एजुकेशन के लिए एक बहुत ही महत्वाकांक्षी पहल है। और मुझे लगता है कि कोविड के सबक में से एक, एक बड़ा डिजिटल निर्भरता होने जा रहा है। तो हम जो करने की कोशिश कर रहें है वास्तव में एक मायने में है, जैसा कि मैंने कहा, उंहें विकास प्रदान करने के बजाय उंहें स्वयं से विकसित होने में मदद किया जा रहा है। तथा क्षमता निर्माण को बढ़ाने के माध्यम से, चाहे वह एक मानव क्षमता हो, अथवा परिसंपत्ति निर्माण हो, हम वास्तव में आज एक पदचिह्न है, जो प्रशांत द्वीप से एशिया, अफ्रीका के माध्यम से सभी तरह से फैली हुई है, कैरेबियन के लिए भी। और कई बार मूल्य के लिहाज से यह ज्यादा नहीं हो सकता है, लेकिन यह संबंधित देश के लिए बहुत मायने रखता है। मेरा मतलब है,उदाहरण के लिए, मैंने सेंट विंसेंट तथा ग्रेनेडाइंस के राष्ट्रपति से मुलाकात की, और हम वास्तव में उंहें एक अरोरूट उत्पादन कारखाने को पुनर्जीवित करने में मदद किया, जिसका उनके लिए अर्थ अत्यंत महत्वपूर्ण था।
हम कार्य कर रहे हैं, वास्तव में, यह आज विदेशों में हमारी सबसे बड़ी परियोजना है, जो मंगोलिया में एक पेट्रोलियम रिफाइनरी की है, जो बिल्कुल अलग पैमाने की है। इसलिए आज मेरा मुद्दा यह है कि भारत जैसे देश में हमारी विरासत तथा इतिहास तथा हमारी विश्व रणनीति के संदर्भ में तथा हमारे विश्वास के संदर्भ में यदि हम एक संतुलित विश्व देखना चाहते हैं जहां बहुत कुछ है, तो आप जानते हैं, बेहतर बिजली वितरण, बेहतर क्षमता वितरण के मामले में विश्व की विविधता पूरी तरह से अर्थपूर्ण है। मुझे लगता है कि बाहर जाने तथा अन्य देशों के साथ कार्य करने और उनकी क्षमताओं का निर्माण करने के लिए यही धारणा समझ में आता है। जाहिर है, हम मित्रभाव प्राप्त करते हैं, परन्तु मुझे लगता है कि आप वास्तव में लंबी अवधि के लिए एक बेहतर विश्व का निर्माण करते है तथा हम उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिनमें हम बेहतर हैं, जो स्पष्ट रूप से हमारी ताकत हैं। मुझे लगता है कि हम विदेशों में सुचना-प्रौद्योगिकी में बहुत कुछ कर रहे हैं, विदेशों में डिजिटल उत्पादों के लिए बहुत कुछ। कृषि, मुझे लगता है कि अब रुझान का बढ़ता हुआ क्षेत्र है। परन्तु मेरा विचार, विशेष रूप से महामारी के बाद, तथा मुझे यकीन है कि विजय इस पर अपनी सहमति देंगें की स्वास्थ्य सुरक्षा में भारी रुचि है। और मैं देख रहा हूं कि वास्तव में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पूरी तरह से नए क्षेत्र के रूप में उभर रहा है तथा मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि हम वहां जो कुछ भी हमारी ओर से संभावनाओं के दायरे के भीतर है हम तैयार रहेंगे।
मार्क सुजमैन: मुझे लगता है कि में सबसे महत्वपूर्ण तथा सबसे अधिक क्षमता वाला क्षेत्र वैज्ञानिक दायरा तथा डिजिटल दायरे में है। और जैसा कि आपने उल्लेख किया है, उदाहरण के लिए, डिजिटल वित्तीय समावेशन एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमने भारतीय रिजर्व बैंक तथा अन्य संस्थाओं के साथ फिर से भागीदारी की है ताकि नाइजीरिया तथा इंडोनेशिया जैसे देशों के प्रतिनिधिमंडलों को निर्धनतम लोगों तक वित्तीय पहुंच के विस्तार के संबंध में भारतीय उदाहरण से सीखने में मदद मिल सके। और विजय, यदि मैं उन क्षेत्रों में आपके पास वापस आता हूं जिन्हें मंत्री जी ने पहले ही कृषि विज्ञान के रूप में चर्चा किए थे और मैंने वहां कुछ साझेदारियों तथा अन्य स्वास्थ्य क्षेत्रों जैसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध अथवा वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा तथा प्रौद्योगिकी के बारे में हाल ही में बातचीत की थी। आप जानते है, मैं उत्सुक हूं कैसे आप अनुसंधान में सहयोग बेहतर सक्षम करेंगे, जिसमे हमारी तरह नींव के साथ आपकी भागीदारी की भूमिका भी शामिल है, परन्तु यह भी, बस जहां आप इन राष्ट्रीय और वैश्विक समस्याओं के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी लागू करने के लिए उच्चतम क्षमता देखते हैं।
डॉ के विजयराघवन: धन्यवाद, मार्क. जैसा कि मंत्री जी ने अभी कहा, विश्व स्तर पर भारत की बातचीत की पहुंच, समुदाय की भावना के सही मायने में वैश्विक दृष्टिकोण की ओर इशारा करती है, और अब इसे कृषि और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में आगे ले जा रही है, जिसका आपने उल्लेख किया है, महामारी ने एक साधारण बात पर प्रकाश डाला है कि हमें इन मुद्दों को व्यापक तरीके से देखना चाहिए, अथवा स्वास्थ्य और ऐसे मामले नहीं जैसे मैं जीव विज्ञान के साथ क्या करूं? मैं क्या करूं आप जानते हैं जैसे अधिप्लावन प्रभाव? मैं कृषि कीटों के साथ क्या करूं? अब, यह एक स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य में एक बड़ी चुनौती है। पश्चिम जगत ने अब तक समस्याओं को सुलझाने में संसाधनों की भारी मात्रा में प्रयोग के द्वारा इस बात को संबोधित किया है, जो असंगत रूप से फिर से एक समस्या के रूप में सामने खड़ा है। और यह विश्व स्तर के पैमाने पर तर्कसंगत नहीं है। भारत का दृष्टिकोण जो पश्चिम जगत तथा अन्य जगहों पर सर्वश्रेष्ठ के साथ साझेदारी में गुणवत्ता विज्ञान को जोड़ती है, लेकिन एक डिजिटल पहुंच के साथ भी, जो हमें यह अनुमान लगाने की अनुमति देता है कि किन्हें वाकई में आवश्यकता है और उस आवश्यकता के अनुसार वितरित करते हैं, बजाय एक तरह के आवश्यकता पूर्ति के, जो या तो कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक हो सकता है, और कई जगह पर नगण्य हो सकता है। इस प्रकार के डिजिटल फीडबैक तंत्र के लिए, कृषि स्वास्थ्य में वास्तविक स्पर्श सामग्री परिवर्तनों के साथ संयुक्त रूप से, कुछ लोगों ने ब्रिजिटल के रूप में संदर्भित किया है, डिजिटल को पाटना तथा अन्य विभाजन कुछ ऐसा है जिसमें भारत बहुत अच्छा बन गया है। भुगतान पोर्टल, जिसके बारे में आपने बात की थी, एक उदाहरण है, जिसका विकास अद्भुत रहा है।
यह अब यह अन्य पहलुओं के लिए पैमाने पर कर सकते हैं, उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्णय लेने में प्रतिक्रिया के संयोजन, तथा कृषि स्तर पर की आवश्यकता पर वापस विचार किया जा रहा है। गेट्स फाउंडेशन के साथ साझेदारियां, इसी तरह के अन्य संगठन महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि सभी प्रकार के अन्य कारणों से विकसित की गई प्रौद्योगिकियां, तथा जो सभी प्रकार की सावधानियों के साथ आई हैं, को अब मॉड्यूल में लाने की आवश्यकता है, जिन्हें इस नई वैश्विक मांग के अनुकूल बनाया जा सकता है। और यह कुछ ऐसा है जिसे हमें भागीदार बनाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न केवल भारत, बल्कि सभी विश्व की पहुंच भी हो ।
मार्क सुजमैन: इसलिए मंत्री जी, यदि मैं इस संदर्भ में आपकी ओर वापस आऊं, तो आप जानते हैं कि आपने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंडा का उल्लेख किया है। तथा जी-7 और जी-20 जैसे वैश्विक मंचों पर इस पर जोरदार चर्चा हो रही है। और वह कैसे हम मौजूदा संकट से निपट रहें है, जो अभी हमारे साथ ज्यादा है तथा कुछ दिनों के लिए इसके निहितार्थ भी होंगे तथा भविष्य के संकट का जवाब देने तथा तैयार रहने के लिए है। और मैं वास्तव में भविष्य के महामारी से निपटने के लिए वित्तपोषण पर जी-20 को सलाह प्रदान करने पर एक जी -20 उच्च स्तरीय पैनल पर सेवारत हूं।दुर्भाग्य से, मैं कहूंगा कि ऐतिहासिक पैटर्न एक बार फिर पश्चदर्शी दर्पण से देखने के करीब कदम है, इसके आसपास वैश्विक सहयोग, लड़खड़ा जाता है। लेकिन अक्सर वे लुभावना वाले शब्द होते हैं, परन्तु बहुत सारे कार्य तथा कर्म में नहीं होते हैं। तथा हम न सिर्फ इस वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा का सामना कर रहे हैं, परन्तु जैसा की आपने अभी जल्दी जलवायु परिवर्तन का उल्लेख किया। तथा मैं दोनों को देखने के लिए उत्सुक हूं, आप कितने आशावादी हैं, कि वैश्विक समुदाय इन से अलग ढंग से निपटेगा, जहां आप भारत के दृष्टिकोण और संभावित विशिष्ट योगदान को देखते हैं?
डॉ एस जयशंकर: देखिए, मार्क, एक तरह से, मुझे लगता है, आप जानते हैं, आज भारत प्रयोगशाला है। यह कुछ क्षेत्रों में कुछ हद तक एक उदाहरण है। यह निश्चित रूप से एक अतिरिक्त क्षमता है। हम कई मामलों में आशा करते हैं, यह एक अच्छा मित्र है। और मुझे लगता है कि यह भी महत्वपूर्ण है कि हम अपना प्रयास प्रभावी ढंग से बतायें ताकि लोगों को वास्तव में इस बात का समझ हो। आप जानते है, हमारे पास 400 800 घटना है जिसमें मै आश्चर्यचकित हूं की वैश्विक मीडिया द्वारा इसे पुरजोर रूप से नहीं उठाया गया है। 400 मिलियन बैंक खातों में हमने पैसे प्रदान किए तथा 800 मिलियन लोगों को लॉकडाउन के दौरान बिना रुकावट के अंतिम वर्ष में भोजन प्रदान किए गए। अब, यदि आप विश्व में कहीं भी जाते हैं और कहते हैं, की दोस्तों मैंने 400 मिलियन लोगों को भुगतान किया है, तथा मैंने 800 मिलियन लोगों को खिलाया है, आपको अत्यंत प्रशंसा मिलेगी। जिस भी कारणों से हम कर सकते हैं, यह एक अलग विषय है; आप चर्चा कर सकते है की क्यों इस बात को उतना ध्यानाकर्षण नहीं मिला जितना इसे मिलना चाहिए।
परन्तु आपके प्रश्न का उत्तर, मैं वैश्विक समुदाय के बारे में कितना आश्वस्त हूं, इस बात पर मैं आपके साथ अलग नहीं हूं। मुझे लगता है कि अनुभव है कि चीज़ों को पश्चदर्शी दर्पण से देखने की आदत है जिसमे प्रत्येक चीज़ दूर और दूर नजर आती है। लेकिन मुझे लगता है कि यही कारण है कि देशों के लिए आगे कदम महत्वपूर्ण है, तथा सुनिश्चित करें कि कि सुर्खियों में इसे दूर नहीं रखा जाए। तथा निश्चित रूप से हमने बहुत ऐसे कार्य किए हैं, मेरा अभिप्राय है, यह नहीं की अफ्रीका के साथ हमने स्वास्थ्य में सहयोग किया, जब संकट का दौर था फिर बाद में इसे बंद कर दिया।अगर आप चाहते हैं, वैश्विक दक्षिण के लिए तो हम निश्चित रूप से स्थिर, विश्वसनीय, अच्छा अनुकरणीय भागीदार रहना चाहते हैं। तथा कई मामलों में, दक्षिण से नहीं अन्य देशों के लिए के रूप में अच्छी तरह से। और मैं एक और बात जोड़ना चाहता हूं, यह स्वास्थ्य सुरक्षा अथवा यहां तक कि विकास का मुद्दा नहीं है देखिए, शक्तियां प्रत्येक जगह है, मेरा अभिप्राय है, हर बड़ी शक्ति का उदय अद्वितीय होता है। हम एक प्रबुद्ध शक्ति बनना चाहूंगा, जो वह नहीं है जो अन्य सभी ने हमारे सामने किया था, की कमरे में प्रवेश करते ही दरवाजा बंद कर दे। मैं यह सुनिश्चित करना चाहूंगा कि अन्य शक्तियों के अंदर आने के लिए दरवाजा खुला है। मेरा अभिप्राय है कि वास्तव में उदाहरण के लिए, अफ्रीका के उदय।
वास्तव में, विश्व अफ्रीका के उदय तक बहुध्रुवीय नहीं होगा, उदाहरण के लिए, यह सिर्फ अफ्रीका का उदय नहीं है, जो वास्तव में जगह ले रहा हैl। इसलिए मेरे लिए आपके पहले प्रश्न पर वापस जाना चाहूंगा, विश्व एक परिवार है, हम एक प्रबुद्ध शक्ति बनना चाहते हैं, जो न केवल अपनी विकास का आयोजन करती है, बल्कि जो दूसरों के उदय को भी सुगम बनाता है ताकि जैसा कि मैंने कहा, इस विश्व की वास्तविक विविधता पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय मामलों में परिलक्षित होती है। तथा ऐसा करने के लिए, हम उन चुनौतियों तथा संकट को देखते रहते हैं जैसे ही वे घटित होते हैं तथा अन्य देशों के साथ कार्य करते हैं। तथा ठीक यही मेरे प्रधानमंत्री की विदेश नीति का दृष्टिकोण है। तथा यही हम भारत की कूटनीति में समावेशित करने का प्रयास करते है।
मार्क सुजमैन: मंत्रीजी धन्यवाद, मुझे लगता है कि समापन के लिए इससे अच्छी टिप्पणी नहीं हो सकती। तथा दक्षिण अफ्रीकी होने के नाते मुझे अफ्रीका के भविष्य की भूमिका के बारे में आपकी दृष्टि सुनकर प्रसन्नता हुई। तथा एक वैश्विक नागरिक के रूप में एक वैश्विक फाउंडेशन के नेतृत्व में मुझे और भी वैश्विक मामलों के लिए आपके प्रबुद्ध दृष्टिकोण के बारे में सुना, जो वास्तव में मुझे लगता है, आपके 400 800 उदाहरण के लिए प्रसन्नता हुई, यहाँ गेट्स फाउंडेशन में आपके खाद्य सुरक्षा के रूप में भारत की घरेलू प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला गया है तथा वित्तीय समावेशन के लिए उपयोग पर दोनों में अपने आप में एक अद्भुत उपलब्धि है, परन्तु यह भी की एशिया के बाकी हिस्सों में उन देशों के लिए यह एक वृहत मॉडल है, अफ्रीका में तथा विश्व भर में इसका पालन होना चाहिए।
और जैसा कि हम अभी भी कोविड प्रतिक्रिया से जूझ रहें हैं तथा वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को संबोधित करने के मामले में यह एक अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण अवधि होगी जिसमे आगे सहयोग आवश्यक हैं। मुझे लगता है कि हम दोनों आश्वस्त हैं और निरंतर वैश्विक नेतृत्व के लिए भारत की प्रतिबद्धता के लिए उत्साहित हैं। तथा अधिक उत्साह के साथ विजय के साथ भागीदारी तथा भारत में अनुसंधान और विकास समुदाय के साथ भागीदारी उत्साहवर्धक है, जो अविश्वसनीय रूप से जीवंत है। तो आज मुझसे जुड़ने के लिए आप दोनों को बहुत बहुत धन्यवाद।
डॉ एस जयशंकर: धन्यवाद।
डॉ के विजयराघवन: बहुत-बहुत धन्यवाद। धन्यवाद।