सचिव (पश्चिम) और सरकारी प्रवक्ता द्वारा मीडिया वार्ता (25 मार्च, 2015) का प्रतिलेखन
मार्च 25, 2015
सरकारी प्रवक्ता (श्री सैयद अकबरूद्दीन) :दोस्तो, नमस्कार और हमारी नियमित बातचीत के लिए इस दोपहर यहां आने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। जैसा कि पहले होता आया है, मैं कुछेक घोषणाएं करूंगा जिसके उपरांत आप लोग
उनके बारे में कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं।
मेरे द्वारा की जानी घोषणाओं में से एक घोषणा मेरे दो सहकर्मियों से संबंधित हैं जो आज यहां उपस्थित हैं। मेरे साथ सचिव (पश्चिम) श्री नवतेज सरना हैं। उनके दाएं श्री विनय कुमार हैं जो संयुक्त सचिव (पूर्व एवं दक्षिणी अफ्रीका) हैं। हम यह करेंगे कि घोषणाओं के बाद
श्री सरना कुछेक टिप्पणियां करेंगे जिसके उपरांत आप सभी वे मुद्दे रख सकते हैं जिन पर उन्हें टिप्पणियां करनी हैं। मैं जो कुछ भी घोषणाएं करूंगा उनके अलावा, आपके पास मुझसे वह सब भी पूछने का अधिकार है जो आप मुझसे पूछना चाहेंगे।
मुझे पहली घोषणा यह करनी है कि भारत सरकार ने 21 जनवरी को यमन में सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक एडवाइजरी जारी किया था। हम उसे अब दोहराना चाहेंगे और यह है कि "यमन में भारी लड़ाई-झगड़े और अव्यवस्थाओं के साथ सुरक्षा की स्थिति नाजुक है।" इसलिए, हम यमन में रह रहे
सभी भारतीय नागरिकों से आह्वान करते हैं और उन्हें सलाह देते हैं कि वे जल्दी से जल्दी जो भी कमर्शियल विमान उपलब्ध हो उससे स्वैच्छिक आधार पर यमन छोड़ने पर विचार करें।
मुझे जो दूसरी घोषणा करनी है वह प्रधान मंत्री मोदी के आगामी दौरों से संबंधित है। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 9 से 16 अप्रैल तक फ्रांस, जर्मनी और कनाडा के सरकारी दौरों पर जाएंगे। उनका पहला गंतव्य स्थान फ्रांस होगा, 9 तारीख की देर शाम से लेकर 12 तारीख
तक। फ्रांस में प्रधान मंत्री राष्ट्रपति फ्रांसिस होलांडे के साथ बैठकें होंगी। वे फ्रेंच सोसायटी के भिन्न-भिन्न वर्गों के साथ-साथ वहां के नेतृत्व और फ्रांस में रह रहे भारतीय समुदाय के सदस्यों के साथ बातचीत करेंगे। उनका दूसरा गंतव्य स्थान जर्मनी होगा।
जैसा कि आप जानते हैं, प्रधान मंत्री हनोवर मेस्से फेस्टिवल के उद्घाटन के सिलसिले में 12 से 14 अप्रैल तक जर्मनी में होंगे। इस साल के हनोवर फेस्टिवल में भारत एक पार्टनर देश है। चांसलर मर्केल के साथ हनोवर मेस्से का उद्घाटन करने के अलावा प्रधान मंत्री की चांसलर
मर्केल और अन्य सीनियर लीडरों के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं भी होंगी। उसके बाद वे अपने अगले गंतव्य स्थान, कनाडा के लिए प्रस्थान कर जाएंगे।
प्रधान मंत्री 14 से 16 अप्रैल तक कनाडा में होंगे। इस अवधि के दौरान वे अपने कनाडाई समकक्ष प्रधान मंत्री हार्पर के साथ, और कनाडा में रह रहे विशाल भारतीय समुदाय के साथ भी विचार-विमर्श करेंगे। इन तीन में से प्रत्येक देश में प्रधान मंत्री द्वारा राजधानियों के अलावा
अन्य स्थानों में विजिट किए जाने की उम्मीद है। हम अभी भी इन व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं, और हम उनके बारे में कुछ दिनों के बाद ही आपको बता पाएंगे। लेकिन, हमने यह सोचा कि हम आपको इन तीन स्थानों के उनके दौरे की मुख्य-मुख्य बातों से आपको अवगत करा
दें।
फ्रांस, जर्मनी और कनाडा का प्रधान मंत्री का दौरा भारत की विदेश नीति की ‘लिंक वेस्ट’ पहलू को परिलक्षित करता है। हम इसे इनमें से प्रत्येक देश के साथ, निवेश और प्रौद्योगिकीय गठजोड़ों पर फोकस के साथ, अपने गहरे संबंधों को और सुदृढ़ करने के अवसर के रूप में देखते
हैं। यह मेरी घोषणा का दूसरा घटक है।
मैं जो तीसरी घोषणा करने जा रहा हूँ वह संभवत: नई दिल्ली में हमारे द्वारा इस साल आयोजित किए जाने वाला सबसे बड़ा राजनयिक आयोजन से संबंधित है। यह भारत-अफ्रीका फोरम शिखर-सम्मेलन (आईएएफएस) से संबंधित है। मेरे साथ मेरे सहकर्मी हैं जो इस आयोजन की महत्व और आशय से
आपको अवगत कराएंगे जो अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में आयोजित किया जाएगा।
इन तीनों घोषणाओं के साथ मैं सचिव (पश्चिम), मि. नवतेज सरना से अनुरोध करता हूँ कि वे आगामी भारत-अफ्रीका शिखर-सम्मेलन के बारे में कुछ बातें बताएं जिसके उपरांत आप लोग प्रश्न पूछ सकते हैं।
सचिव (पश्चिम) (श्री नवतेज सरना) :धन्यवाद अकबर; आप सभी के लिए गुड आफ्टरनून।
जैसा कि संयुक्त सचिव (एक्सपी) ने आप लोगों को पहले ही बताया है, हम इस साल बाद में अफ्रीकन यूनियन कमीशन के परामर्श से तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम का आयोजन करेंगे। शिखर-सम्मेलन के लिए जो तारीखें निर्धारित की गई हैं वे 26-30 अक्तूबर हैं। विवरण कदाचित निम्नलिखित
के अनुसार होगा। 26 अक्तूबर को वरीय अधिकारियों की बैठक होंगी। 27 अक्तूबर को विदेश मंत्रियों की बैठक होगी। 28 को देशों के प्रमुखों और शासनाध्यक्षों का आगमन होगा। शिखर-सम्मेलन 29 अक्तूबर को आयोजित किया जाएगा। हम 30 अक्तूबर की तारीख अपने लीडरशिप के साथ विभिन्न
शासनाध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं के लिए नियत रखेंगे। यह शिखर-सम्मेलन के कार्यक्रमपरक पहलू हैं। ठीक-ठीक स्थानों, समयों आदि के बारे में आप सभी को यथासमय बता दिया जाएगा।
यह पुन:स्मरण उपयोगी होगा कि भारत-अफ्रीका शिखर-सम्मेलन तंत्र वर्तमान सदी में अफ्रीका के साथ भारत के जुड़ाव – समूचे महादेश के साथ समग्र रूप में प्रकार्यात्मक, आर्थिक, एवं राजनैतिक जुड़ाव - को एक संरचना प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था। पहला भारत-अफ्रीका
फोरम शिखर-सम्मेलन भारत में 2008 में आयोजित किया गया था। दूसरा शिखर-सम्मेलन 2011 में अदीस अबाबा में आयोजित किया गया था। यह तीसरा शिखर-सम्मेलन होगा।
यह समिट इस दृष्टि से अलग होने जा रहा है कि हम इस महादेश के साथ किस प्रकार का जुड़ाव रखने जा रहे हैं उसे पूरी तरह परिलक्षित करने के लिए हम पिछले शिखर-सम्मेलनों के उलट सभी 54 सदस्य देशों को आमंत्रित करने जा रहे हैं जिनमें एयू द्वारा तैयार एक फार्मूले के अनुसार
सीमित संख्या में इन्गेजमेंट हुआ करता था। इसलिए, उस दृष्टि से भी यह इस तरह का पहला सम्मेलन होगा।
हम किस प्रकार का संबंध रखना चाह रहे हैं और हम क्या सुदृढ़ करना और बनाना चाह रहे हैं, उसका एक आइडिया देते हुए मैं कहना चाहूँगा कि पिछले लगभग 10 वर्षों में, जबसे यह तंत्र स्थापित किया गया था और उसके पहले भी हमने दरअसल अपने अफ्रीकी पार्टनरों को 7 बिलियन यूएस
डालर से अधिक का साफ्ट ऋण उपलब्ध कराया है। वह पिछले 10 वर्षों में भारत द्वारा दिए गए सभी ऋणों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा बनता है। ऋणों के अलावा, हमने क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में कई प्रकार के क्षमता-निर्माण संस्थाओं को स्थापित किया है। तीन ऐसे वोकेशनल
ट्रेनिंग सेंटर हैं जो इथोपिया, बुरूंडी और रवांडा में पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं और ऐसे कई अन्य हैं जो पूरे होने के निकट हैं। चूंकि अफ्रीका के साथ हमारे सहयोग में क्षमता निर्माण हमारे प्रमुख आधारों में से एक है इसलिए मैं इनका उल्लेख कर रहा हूँ। यही
कारण है कि हमारे यहां अफ्रीका से दरअसल बहुत से लोग विभिन्न कोर्सों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आ रहे हैं। लेकिन, हम जब अफ्रीका में क्षमता-निर्माण संस्थान स्थापित करते हैं तो अफ्रीकी देशों के लिए उनके स्वयं के देशों में प्रशिक्षण प्रदान करने की संभावनाएं
उतनी अधिक बढ़ जाती हैं।
स्कॉलरशिप्स पर आने वाले लोगों की दृष्टि से अफ्रीकी प्रतिभागियों को विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत 22 हजार स्कॉलरशिप्स दिए गए हैं। इनमें पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क प्रोजेक्ट, कृषि स्कॉलरशिप्स, सी.वी. रमन वैज्ञानिक फेलोशिप, आईटीईसी, आईसीसीआर और अन्य प्रशिक्षण
कार्यक्रम शामिल हैं।
पैन अफ्रीकन ई-नेटवर्क प्रोजेक्ट का जहां तक संबंध है, मैं आपको बताना चाहूँगा कि ई-मेडिसीन और ई-एजुकेशन की दृष्टियों से यह हमारे सबसे अधिक कामयाब प्रोजेक्टों में से एक है, और यह अब 48 अफ्रीकी देशों में एक्टिव है और बहुत अच्छी तरह काम कर रहा है। इसे 2014 में
अफ्रीकन यूनियन को सौंपा जाना था लेकिन, उनके अनुरोध पर हमने इसे और दो वर्षों के लिए अपने आप चलाते रहने का निर्णय लिया है।
इसके अलावा, इस फ्रेमवर्क के तहत भारत में कई प्रकार के शैक्षणिक और बिजनेस सम्मेलन आयोजित किए गए हैं, और सांसदों, पत्रकारों और विद्वानों के विचार-विनिमय भी हुए हैं।
कारोबारी आंकड़ों की दृष्टि से जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। पिछले 10 सालों में उस स्थिति से कारोबार में 14 गुणा बढ़ोतरी हुई है जहां यह पहले थी। आज इसने अफ्रीका के साथ 70 बिलियन यूएस डालर को पार कर लिया है। कारोबार के अलावा भारतीय कंपनियों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
से 32 बिलियन यूएस डालर का निवेश हुआ है। भारत अफ्रीकी विद्यार्थियों के लिए और मेडिकल टूरिज्म के लिए भी एक आकर्षक गंतव्य स्थान के रूप में उभर कर सामने आया है।
यह शिखर-सम्मेलन हमें सभी अफ्रीकी महोदश के साथ अपने समग्र इन्गेजमेंट का आकलन करने का एक और मौका देगा और आने वाले वर्षों में इस इन्गेजमेंट को भावी दिशा देगा। यह ऐसी बात है जिसकी हमारे पार्टनरों के साथ-साथ हमारे द्वारा भी बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही थी।
इसलिए, मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे-जैसे सप्ताह और महीने बीतते हैं और हम शिखर-सम्मेलन पर पहुंचते हैं हमारे पास आपको विनिर्दिष्ट दस्तावेजों के बारे में, विनिर्दिष्ट घोषणाओं के बारे में, उन विभिन्न घटकों, जिन्हें शिखर-सम्मेलन के पहले अंतिम रूप दिया
जाएगा, के बारे में और अधिक विवरण देने का मौका मिलेगा। धन्यवाद।
सरकारी प्रवक्ता : अब हम यह करेंगे कि सचिव (पश्चिम) ने जो कहा है हम पहले उससे संबंधित सवालों का उत्तर देंगे। उसके बाद हम उन सवालों का उत्तर देंगे जो मेरे द्वारा की गई घोषणाओं से संबंधित होंगी। फिर आप लोगों को कोई भी प्रश्न
पूछने की छूट होगी। इसलिए, अब भारत-अफ्रीका फोरम शिखर-सम्मेलन से संबंधित प्रश्न पूछे जाएं।
प्रश्न : आपने अफ्रीका के साथ इन्गेजमेंट की बात की। लेकिन, आज की स्थिति के अनुसार वह बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। पहले, यह कि अफ्रीका से आवक विजिट्स ज्यादा होते हैं और बदले में जावक विजिट्स नहीं होते हैं। दूसरे, यह
कि भारतीय दूतावास की 54 में से केवल 42 देशों में ही उपस्थिति है। और आईटीईसी, जिसके बारे में आपने कहा कि यह अफ्रीका के लिए भारत का फ्लैगशिप कार्यक्रम है, केवल 48 देशों में मौजूद है। चूंकि आप यहां सभी 54 देशों के लीडरों को आमंत्रित कर रहे हैं तो आप इस अंतर को
किस तरह पाटेंगे ?
सचिव (पश्चिम) : मैं आपके प्वाइंट्स के लिए आपका काफी शुक्रगुजार हूँ क्योंकि मैंने दरअसल जो कहा था आपने उसमें जान डाल दी है। मैं केवल आपके निष्कर्ष से असहमत हूँ। यदि हम 54 में से 48 देशों में हैं तो मैं मानता हूँ कि यह
अत्यन्त शानदार इन्गेजमेंट है। मैं नहीं जानता कि आप इसे किस तरह शानदार नहीं मान रहे हैं।
मैं मानता हूँ कि वीवीआईपी विजिट्स हमारे इन्गेजमेंट के अत्यन्त महत्वपूर्णपहलू हैं लेकिन वे केवल एकमात्र कारक नहीं हैं। यदि आप देखें तो इस साल प्रधान मंत्री ने जो पहले विजिट्स किए हैं वे दो अफ्रीकी देशों, सेशल्स और मॉरीशस के लिए थे। और आने वाले वर्ष में
विभिन्न स्तरों पर अन्य विजिट्स की योजना बनाई गई है। वीवीआईपी विजिट्स अक्सर कार्यक्रम-निर्धारण के प्रश्न होते हैं, और एक साथ घटित नहीं भी हो सकते हैं। लेकिन, जो तथ्य पर फोकस कर रहे हैं वह जैसे-जैसे हम समिट के पास पहुंचेंगे वह स्पष्ट होता जाएगा। इस चरण
में मैं उस पर कोई सूचना साझा नहीं करूंगा।
आईटीईसी, जैसा कि आपने स्वयं कहा, 48 देशों में सक्रिय है। हालांकि आपको विश्वास नहीं है लेकिन मैं आपसे सहमत नहीं हूँ, अन्य देशों के साथ अपने इंटरएक्शनों में हमने इस सच्चाई के प्रति हमेशा सकारात्मक मान्यता मिली है कि भारत का दरअसल इतने अफ्रीकी देशों में
प्रतिनिधित्व है। वास्तविकता यह है कि हमारा निवेश वही है जो है, और मैं आपको कुछ अन्य देशों के साथ तुलना करना चाहू्ंगा। मैं यहां नाम नहीं लेना चाहूँगा लेकिन इस पर जनवरी के अंतिम सप्ताह में अदीस अबाबा में आयोजित अफ्रीकी यूनियन समिट में काफी पाजिटिव रूप से
टिप्प्णी की गई है। हकीकत यह है कि पैन अफ्रीकन ई-नेटवर्क 48 देशों में मौजूद है लेकिन, अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आईटीईसी 54 देशों में मौजूद है।
आईटीईसी प्राप्तकर्ता देश द्वारा स्कॉलरशिप्स का उपयोग करने का प्रश्न भी है। हम स्लॉट देते हैं; कभी-कभी हम प्रत्येक देश को सौ स्लॉट देते हैं। उस समय देश दरअसल 100 लोगों को भेजने की स्थिति में नहीं होता है। मुझे यह कहने की छूट दीजिए कि यह निष्कर्ष निकालना
बिल्कुल आसान-सी बात है कि भारत अफ्रीका में पूरी तरह इनगेज्ड नहीं है। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इसे घटकों में बांट दीजिए। विजिट एक पहलू है, कारोबार दूसरा, क्षमता निर्माण और बात है, निवेश और बात है, डायस्पोरा और बात है। और जब आप वह करते हैं तो आप उस गहरे
इन्गेजमेंट को देखेंगे जो पहले से मौजूद है। अच्छे से अच्छे संबंधों को और प्रगाढ़ किया जा सकता है और हम वही करने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रश्न : क्या सभी 54 देशों के शासनाध्यक्षों ने अपने भाग लेने की पुष्टि कर दी है?
सचिव (पश्चिम) : रंजीत, मैंने आज केवल तारीखों की घोषणा की है। अब औपचारिक आमंत्रण सभी तीन स्तरों – हमारे नेतृत्व से देशों के प्रधानों और शासनाध्यक्षों को, हमारे विदेश मंत्री द्वारा विदेश मंत्रियों को, और हमारे वरिष्ठ
अधिकारियों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को। तब, हम पुष्टियां प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
सरकारी प्रवक्ता : और हम आपको सूचित करते रहेंगे, रणजीत।
सचिव (पश्चिम) : हां, हम समय-समय पर आकलन करते रहेंगे।
प्रश्न : सर, पिछले साल जब तीसरे भारत-अफ्रीका समिट का आयोजन करने की मूल रूप में योजना बनी थी तो हमने पश्चिम अफ्रीका में इबोला वायरस से संबंधित चिंताओं के मद्देनजर इसे स्थगित कर दिया था। पश्चिम अफ्रीका में, ये चिंताएं अभी
भी बनी हुई हैं। क्या हम इस बार परिस्थिति को बेहतर तरीके से हैंडल करने के लिए तैयार हैं?
सचिव (पश्चिम) : दरअसल, अगर आप पहले की बात कर रहे हैं तो यात्रा की दृष्टियों से, पर्याप्त मेडिकल व्यवस्थाओं की दृष्टि से चारों ओर व्याप्त चिंताओं के मद्देनजर स्थगन किया गया था। हालांकि, हम लोग उसे हैंडल करने के लिए
तकनीकी दृष्टि से तैयार थे लेकिन, हमने सोचा कि वह एक समिट के लिए अच्छा वातावरण नहीं होगा कि जब एक आनंददायक, पाजिटिव और रचनात्मक इन्गेजमेंट होने की उम्मीद है तो हमें उसमें आगमनों पर अत्यन्त विस्तृत मेडिकल जांच करने की व्यवस्था करनी पड़े।
हम इबोला पर डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों को देख रहे हैं। हम ऐसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों को भी देख रहे हैं जो दुनियाभर में और अफ्रीका में भी आयोजित किए गए हैं। और एक सुविचारित अभिमत के आधार पर हमने एक संतुलित निर्णय लिया है कि इस तथ्य के बावजूद कि वे
चिंताएं बरकरार हैं फिर भी, आज प्रवृत्तियां अलग दिख रही हैं, और यह तथ्य भी कि अफ्रीका के साथ समग्र इन्गेजमेंट को हम अनिश्चितकाल के लिए नहीं टाल सकते। यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए, हम वह सब कुछ करेंगे जो किया जाना जरूरी होगा।
सरकारी प्रवक्ता : अगर आपके पास मेरे द्वारा की गई दो अन्य घोषणाओं के संबंध में कोई प्रश्न है तो हम उनका उत्तर देना चाहेंगे। मैं विजिट्स की घोषणा के प्रस्तावना में केवल यह निषेघ करना चाहूँगा कि हम विजिट्स की तिथियां
नजदीक आने पर उस विजिट के विशिष्ट घटकों पर अलग से ब्रीफिंग्स करेंगे। यह तो केवल आप लोगों को सामान्य रूपरेखा से अवगत कराना था जिससे कि आप सभी तैयारी करना शुरू कर दें। ऐसे अनेक लोग हैं जो पहले से ही भिन्न-भिन्न गंतव्य स्थानों के साथ-साथ सफर करने की योजना
बना रहे हैं। यह आपको उसका एक आइडिया देगा। यदि आपके पास यमन पार्ट के लिए कोई प्रश्न है तो मैं जवाब दूंगा।
प्रश्न : क्या हम विजिट के दौरान सेना के लिए विमान, राफेल के संबंध में फ्रांस में कोई शुभ समाचार की उम्मीद करें?
सरकारी प्रवक्ता : मैंने कहा कि मैं उन घटकों पर बाद में ब्रीफिंग दूंगा और हम आपके साथ सभी शुभ समाचार शेयर करेंगे।
प्रश्न : सर, क्या आप हमें बता सकते हैं कि पीएम के फ्रांस और जर्मनी विजिट्स में हैनोवर के अलावा उनकी पब्लिक मीटिंग्स भी होगी ॽ क्या वो पेरिस और जर्मनी में कहीं जाएंगेॽ
सरकारी प्रवक्ता : जैसे मैंने आपको बताया है एक एडवांस टीम अभी फ्रांस, जर्मनी और कनाडा गई हुई है। प्रधान मंत्री कैपिटल्स के अलावा हर जगह एक और सिटी में जाएंगे। तो ये अभी फाइनाइज करना है हमें। जैसे कि पेरिस के अलावा एक और
सिटी में जाएंगे फ्रांस के; हैनोवर के अलावा कैपिटल जाएंगे; और कनाडा में ओटावा के अलावा और जगह जाएंगे। तो ये आपको हम तभी बता सकेंगे जब एडवांस टीम वापस आ जाए। शायद इस महीने के अंत में वापस आ जाएंगे, और उसके बारे में हम आपको डिटेल्स में बताएंगे।
प्रश्न : सर, आपने पीएम के कनाडा विजिट के बारे में बताया और आपने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि वहां विशाल भारतीय समुदाय है। इसलिए, क्या वे कनाडा में भारतीयों को संबोधित करने की योजना बना रहे हैं जैसा कि उन्होंने यूएस
में किया थाॽ
सरकारी प्रवक्ता : प्रधान मंत्री जिन स्थानों में विजिट करते हैं वहां बड़ी संख्या में रह रहे निवासी भारतीयों के साथ इन्गेज करने का कोई मौका नहीं गंवाते हैंॽ इसलिए, भिन्न-भिन्न स्थानों में प्रधान मंत्री के इन्गेजमेंट
की, वहां के स्थानीय समुदायों द्वारा मिशन के साथ काम करके निर्धारित की गई व्यवस्था के अनुसार, उम्मीद करिए।
प्रश्न : यह हैनोवर मेस्से से संबंधित है। थीम ‘मेक इन इंडिया’ है। क्या आप इस बात का संक्षिप्त आइडिया दे सकते हैं कि हम क्या दिखा रहे हैं, कौन-कौन से स्टॉल्स हैं और इसी तरह की अन्य बातेंॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैंने आपको बताया कि मैं इस मामले में समय आने पर एक विस्तृत ब्रीफिंग करूंगा। इस चरण में मैं यहां आपके लिए कार्यक्रम की रूपरेखा बताने के लिए हूँ, मैंने उनकी रूपरेखा बता दी है। यदि आपके पास कार्यक्रम की
रूपरेखा के संबंध में कोई विस्तृत प्रश्न है तो मैं उत्तर दूंगा। लेकिन, इसकी मूल बातों पर हम आपके लिए विस्तृत करेंगे।
प्रश्न : क्या आप यमन में मौजूद भारतीयों की संख्या के बारे में कोई अनुमानित संख्या बता सकते हैं ॽ लीबिया और अन्य देशों में आखिरी क्षणों तक एडवाइजरी जारी किए जाने के बावजूद हमारे सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई जिसमें
आखिरकार भारतीय सरकार को उन्हें बाहर निकालने के लिए विमान भेजने पड़े। इसलिए, वहां इस समय क्या स्थिति हैॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैं मानता हूँ कि हमारी वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने की दृष्टि से यह एक बहुत अच्छा प्रश्न है। जब कुछ वर्ष पहले यमन में समस्याएं शुरू हुईं तो वहां लगभग 11,000 से 12,000 तक भारतीय नागरिक निवास करते थे।
जब हमने हाल में वहां गिनती की तो भारतीयों की संख्या के घटकर 3,500 हो जाने का आकलन किया। उनमें से अधिकतर साना में हैं जो राजधानी है और यहां लगभग 2,500 भारतीय हैं। एडन में लगभग 250 हैं। हुदयादह भी एक स्थान है जहां भारतीय उल्लेखनीय संख्या में मौजूद हैं। शेष
भारतीय भिन्न-भिन्न स्थानों में फैले हुए हैं। यह हुई आंकड़ों की बात।
आप सही हैं कि हमें दूसरे स्थानों में समस्याओं का सामना करना पड़ा था। श्रेणियों की दृष्टि से इन 3,500 में से लगभग 50 प्रतिशत नर्सें हैं। हमने उनसे अनुरोध किया है, हम उनके साथ काम कर रहे हैं। भारत सरकार अत्यन्त संजीदा है, यह तीसरी एडवाइजरी है जो हमने वहां
के मिशन के माध्यम से जारी किया है, दूसरी बार मैं इसका उल्लेख कर रहा हूँ। लेकिन, 19 मार्च को हमने साना में अपने दूतावास के माध्यम से एक और एडवाइजरी जारी किया था। हमने सबसे पहले 21 जनवरी को यह जारी किया, दूसरा 19 मार्च को और तीसरा अब जारी किया। हम उम्मीद
करते हैं कि आपके माध्यम से हम वहां स्थिति की गंभीरता के बारे में सबको बता पाएंगे और सभी को वहां से, जब तक संभव हो सके, निकलने की सलाह दे पाएंगे।
प्रश्न : यमन में जीसीसी की तरफ से सैन्य हस्तक्षेप किए जाने की चर्चा है। क्या आप इसका समर्थन कर सकते हैं, खासकर कतर के अमीर के विजिट को ध्यान में रखकर।
सरकारी प्रवक्ता : आपने जो चर्चा सुनी है, वह मैंने नहीं सुनी है। इतना कहते हुए भी, हम स्थिति की निगरानी करते रहते हैं और वहां परिस्थिति कौन-सा रूप लेती है, हम उसके आधार पर निर्णय लेते हैं न कि उड़ती-उड़ाई गई बातों पर। यदि
इस मुद्दे पर और कोई प्रश्न नहीं है तो आप लोग कोई और प्रश्न पूछिए।
प्रश्न : पिछली ब्रीफिंग में आपने उल्लेख किया था कि जब कतर के अमीर यहां होंगे तो भारत के लिए संभावनाएं खुलेंगी और कतर से निवेश भी होगा। क्या आप इस बात का आइडिया दे सकते हैं कि आज कौन-कौन सी संभावनाएं खुलींॽ
सरकारी प्रवक्ता : प्रधान मंत्री और कतर के अमीर के बीच बातचीत के दौरान आर्थिक इन्गेजमेंट के तीन मुख्य क्षेत्र थे जिन पर हमने ध्यान केन्द्रित किया। एक क्षेत्र भारत में निवेश का था। बातचीत और कतर के अमीर के सकारात्मक
रूख हम देखते हैं कि आगे बढ़ने का काफी स्कोप है। उदाहरण के लिए, उन्होंने इसका उल्लेख जरूर किया कि वे भारत की अर्थव्यवस्था पर भरोसा करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के विकास के लिए प्रधान मंत्री की संकल्पना पर भरोसा करते हैं।
उन्होंने महसूस किया कि यह अब कतर के लिए समय है कि वह बनाने की दृष्टि से गंभीरता से विचार करे, उन्होंने यह भी कहा कि वे एक ऐसा सांस्थानिक तंत्र देख रहे हैं जिससे इस प्रक्रिया में तेजी लाने में मदद मिले। वे वापस जाएंगे और अपनी ओर से एक ऐसा सांस्थानिक तंत्र
बनाने के लिए कार्य करेंगे जो ऐसी परियोजनाओं की तेजी से पहचान करे जो उनकी रुचि की हो सकती है।
हमने जिन मुद्दों की बात उठाई वह यह था कि हमारे पास दो तरह की परियोजनाएं उपलब्ध हैं। एक अनवरत परियोजनाएं हैं या अनवरत सेक्टरों में हैं। उदाहरण के लिए, रक्षा, रेलवे और राजमार्ग। इन तीनों को मुख्यतया सरकारी परियोजनाओं के रूप में निर्दिष्ट किया गया जहां सुरक्षित
प्रतिलाभ हैं, प्रतिलाभ उससे कहीं बहुत अधिक जो उपलब्ध होंगे। आप अवगत हैं कि ये ग्रीनफील्ड परियोजनाएं नहीं हैं। ये ऐसी परियोजनाएं हैं जिनमें काम किए जाने का इतिहास है। ये तीन क्षेत्रों में थे।
दूसरा घटक रक्षा क्षेत्र में था। प्रधान मंत्री ने रक्षा के लिए मेक इन इंडिया की अपनी संकल्पना की रूपरेखा प्रस्तुत की, और उन्होंने यह इंगित किया कि हम भारत में रक्षा उत्पादन के माध्यम से भारत में आयात करने का प्रतिस्थापन करने के प्रति गंभीर हैं, जो हमें
भी उस दिशा में एक बार आगे बढ़ जाने पर, अपने पार्टनरों के लिए सहायता या उपस्कर उपलब्ध कराने के लिए सक्षम बनाएगा। यह और एक घटक था जिस पर चर्चा की गई।
तीसरा विषय कतर में काम करने के लिए भारतीय कंपनियों को मौके देने के संबंध में था। कतर की नजर 2022 के फीफा वर्ल्ड कप के संदर्भ में विशाल मात्रा में बुनियादी संरचना का विकास करने पर है, और प्रधान मंत्री ने उन अवसरों का जिक्र किया जो भारतीय कंपनियों के लिए रोडवेज
में उत्पन्न हो सकती हैं, और वहां बड़ी संख्या में भारतीय कंपनियां पहले से ही कार्य कर रही हैं। उनमें से कुछेक के पास विशाल परियोजनाएं हैं। इसका मिलियनों में हिसाब बैठता है और यदि आप उन सभी का योग करते हैं तो बिलियनों में।
इसलिए, वहां पहले से ही एक बेस मौजूद है, और प्रयास यह है कि उस बेस के आधार पर निर्माण किया जाए। हमने आगे बढ़ने वाले जो कदम उठाए हैं उनमें यहां भारत में संस्थानिक तंत्र का निर्माण करना है जिससे कि कतर सीधे मौकों की मांग कर सके और अपनी निवेश निधि के माध्यम से
भारत में निवेश कर सके।
प्रश्न : अकबर, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक ऐसे प्रस्ताव के पक्ष में रूस के साथ मतदान किया जिसमें बुनियादी रूप में उन समलिंगी जोड़ों को विवाहित जोड़ों के समकक्ष फायदे दिए जाने को रोकने की मांग की गई थी। मैं समझता
हूँ कि भारत समलैंगिकता को अपराध मानता है लेकिन ऐसे 37 देश थे जो मतदान से अनुपस्थित रहे। और अब हम सीरिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों के साथ और उन देशों के साथ हो गए जिन्होंने समलिंगियों के अधिकारों के खिलाफ मतदान किया। मेरा प्रश्न यह
है कि क्या हम अनुपस्थित नहीं रह सकते थेॽ
सरकारी प्रवक्ता : यह प्रश्न पूछने के लिए आपका धन्यवाद क्योंकि मैं उस संदर्भ को स्पष्ट करना चाहूँगा जिसमें हमारा मत डाला गया। हमने जो पाया वह आगे बताया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में हाल तक ऐसी पद्धति थी जिसमें वे
उस देश, जिससे व्यक्ति आता था, के कानून के आधार पर पार्टनरों या पतियों/पत्नियों के लिए परिलब्धियों या विशेष अधिकारों के स्वरूप पर निर्णय लेते थे। इस दृष्टि से आपके देश में एक व्यक्ति के रूप में आप पर जो अभिशासित होता है वह, वह आधार बनता था जिस पर संयुक्त
राष्ट्र आपको वे हितलाभ या भत्ते या वो हकदारियां देता था। यह संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा द्वारा अनुमोदित और प्रत्येक संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा स्वीकृत स्थापित परिपाटी थी।
हाल-फिलहाल में क्या घटित हुआ कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपनी स्वयं की मर्जी से उसमें परिवर्तन कर दिया। इसलिए, हमारी आपत्त्िा सचिवालय द्वारा इसके बारे में संबंधित देशों के साथ परामर्श किए बगैर बदलाव करने को लेकर था। इसलिए, यह इतना सरल और सीधा नहीं है
जितना आपने इसे बताया। यह – क्या एक देश के राष्ट्रिक अपने कानूनों के द्वारा अभिशासित होंगे या दूसरों के निर्णयों द्वारा अभिशासित होंगे ॽ– का एक जटिल मुद्दा था। मैं मानता हूँ कि यही वह आधार था जिस पर उस प्रस्ताव पर मत देने का निर्णय लिया गया। वह इस बात का
मूल निर्वचन या मूल स्पष्टीकरण है कि हमने उस प्रस्ताव पर उस रीति से मतदान क्यों किया जैसा कि हमने कियाॽ
प्रश्न : सर, क्या भारत-लंका में मछुआरों के मुद्दों पर हुई बातचीत के कोई ब्यौरे उपलब्ध हैंॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैं आपको विशिष्ट विवरणों के बजाय उस स्वरूप या रास्ते के बारे में बताना चाहूँगा क्योंकि कूटनीति की यह मांग है कि लोगों के काम करने के लिए स्पेस है; वे सबकी नजरों में काम नहीं कर सकते। इसलिए, मुझे
आपको यह बताने दीजिए कि यह भारत और श्री लंका के मछुआरा एसोसिएशनों के बीच हाल के दिनों में हुई तीसरी बातचीत थी। पहली बातचीत पिछले साल जनवरी में हुई थी; दूसरी बातचीत पिछले साल मई में हुई थी; और यह तीसरी बातचीत थी। इसलिए, यह उसका आनुक्रमिक दृष्टिकोण था। हमारी
यह समझ थी कि इस बैठक के दौरान माहौल के साथ-साथ एक-दूसरे के प्रति स्वागत की भावना भी पिछली बैठकों की तुलना में बेहतर थी।
अब कौन-कौन से मुद्दे हैंॽ मुद्दे यह हैं कि मैं मानता हूँ कि हर कोई समझता है कि झटपट में कोई समाधान नहीं होने वाला है। इसके लिए लंबे समय तक काम करना होगा। यदि ऐसा है तो भारतीय पक्ष द्वारा दिए गए सुझावों का फोकस इस बात की कोशिश करने और यह देखने पर है कि क्या
अंतरिम अवधि में एक माध्यम तैयार करना संभव होगा जहां पर्यावरण की दृष्टि से दीर्घस्थायी ऐसी फिशिंग हो जो दोनों ही पक्षों के लिए विन-विन की स्थिति हो। यह इस मुद्दे का सारांश है।
उन्होंने कुछ सुझाव दिए हैं। श्री लंकाई पक्ष, जैसा कि मैंने कहा, इन सुझावों के प्रति ज्यादा इच्छुक है। हालांकि, मैं समझता हूँ कि वे श्री लंका जाएंगे और अप्रैल में किसी भी समय वे इस बात पर विचार करने के लिए कि उन्हें किस प्रकार आगे बढ़ना है, आपस में काफी
विस्तृत सम्मेलन करने जा रहे हैं। यह वही सम्मेलन होगा जिसमें वे इन सुझावों पर विचार करेंगे जिसके उपरांत वे वापस आएंगे, या एक अगली बैठक होगी, जो मई में होने वाली है। इसलिए, इस मामले में वस्तुस्थिति यह है।
प्रश्न : क्या आप विस्तार से बता सकते हैं कि मछुआरों के बातचीत के लिए उनके प्लेट में क्या रखा गया थाॽ
सरकारी प्रवक्ता : फिश
प्रश्न : क्या ऑफर थाॽ
सरकारी प्रवक्ता : देखिए, मैं आपको यह नहीं बता सकता कि क्या वह ग्रिल्ड या स्टीम्ड या फ्रॉयड था; आप सभी सुझाव दे सकते हैं।
मेरा प्वाइंट यह है कि यह एक बातचीत की प्रक्रिया है। बातचीत की प्रक्रिया में, जैसा कि मैंने कहा, सामान्य निर्देश पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ दृष्टिकोण हैं। हम उसके लिए किस प्रकार चरणबद्ध तरीके से बढ़ सकते हैं, दृष्टिकोण वह है। मैं उनके विवरणों के बारे में
नहीं जाऊंगा कि वे क्या-कया हैं क्योंकि हर किसी के लिए यह वहां मौजूद प्रतिनिधियों के माध्यम से के बजाय आपके माध्यम से जानना उचित नहीं है। लेकिन, मैंने आपको एक सामान्य आइडिया दे दिया है ताकि आप इसे समझ सकें ... (अश्रव्य) ... शायद यह भुलावा हो!
प्रश्न : अकबर, पिछले दो दिनेां में विदेश राज्य मंत्री पाक राष्ट्रीय दिवस समारोह में भाग लेने के बाद अपने हाल के ट्वीट्स को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। अधिक सुस्पष्टता के लिए क्या हम जान सकते हैं कि सरकार का अभिमत
क्या हैॽ प्रेस कॉन्फ्रेंस से यह स्पष्ट था कि य ह शब्द disgust का गलत कम्युनिकेशन और गलत समझ थी। मैं इस विषय में अधिक सुस्पष्टता की उम्मीद करूंगा कि सरकार का अभिमत क्या है। क्या सरकार इसे गलत कम्युनिकेशन के रूप में देखती है या सरकार विदेश राज्य
मंत्री के ट्वीट्स के द्वारा उलझन में पड़ी हैॽ
सरकारी प्रवक्ता : इसे स्पष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति राज्य मंत्री स्वयं हैं। उन्होंने बारम्बार अपनी राय अभिव्यक्त की है। उन्होंने यह 11 बजे स्पष्ट कर दिया जब यह मुद्दे परसों उठाए गए थे। और वह उस पर
आखिरी शब्द है।
मैं यह भी अत्यन्त स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि वे वहां सरकार के प्रतिनिधि के रूप में गए। वे वहां सुविचारित निर्णय के आधार पर गए। वे वहां हमारी उस समझ के आधार पर गए कि हम चीजों को किस प्रकार लेते हैं। वे वहां जाने वाले पहले राज्य मंत्री नहीं थे, और ऐसे मौकों
पर वहां जाने वाले आखिरी राज्य मंत्री नहीं होंगे। ऐसे मामलों पर सावधानीपूर्वक निर्धारित किया गया दृष्टिकोण होता है जिसका हम अनुपालन करते हैं। और सरकार ऐसे अवसरों पर जाने के लिए एक व्यक्ति को नामित करती है, इस वाकए में यह विदेश राज्य मंत्री मि. वी.के. सिंह
थे।
प्रश्न : क्या हम जान सकते हैं कि विदेश राज्य मंत्री को किस समय बताया गया कि उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करना है। वे जोर देकर कह रहे थे कि शाम में छह बजे तक वह इससे अनजान थे। क्या उन्हें भेजना आखिरी समय में लिया गया
निर्णय थाॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैं मानता हूँ कि दूसरे लोग विपरीत राय दे रहे हैं। आपने एक निश्चित चरण में वह सुना होगा। मैंने कहा कि यह अत्यन्त सुविचारित निर्णय था, एक जांचा-परखा गया निर्णय, एक ऐसा निर्णय जिस समय रहते ले लिया गया
था।
प्रश्न : सर, पाक उच्चायोग में कश्मीरी अलगाववादी लगातार बातचीत कर रहे हैं। आप लोगों ने पहले जो स्टैंड लिया था वो बहुत कड़ा रुख था। लेकिन अब आपका स्टैंड नरम हुआ है। तो आखिर ऐसा क्या डेवलपमेंट हुआ है इस पूरे दौरान की
आप लोगों का रुख नरम हुआ है पहले से।
सरकारी प्रवक्ता : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे कोशिश करने और स्पष्ट करने दीजिए। कूटनीति में संदर्भगत विशिष्टताओं का महत्व होता है। इसलिए, अपने आकलनों को न्यूनीकारक दृष्टिकोण अपनाए जाने और कूटनीति को अत्यन्त मूक
स्तर पर ले जाने के बजाय संदर्भगत विशिष्टताओं की दृष्टियों से देखें। हम इन परिस्थितियों की सावधानीपूर्वक जांच करते हैं। हम संदर्भगत परिस्थिति की अपनी परिस्थिति की समझ के आधार पर रिस्पांस करते हैं। और हमने यह निर्णय संदर्भगत परिस्थिति, जिसमें इस्लामाबाद
में कुछ समय पहले गणतंत्र दिवस समारोहों में कौन-कौन आए थे, उसकी पारस्परिकता शामिल है, के आधार पर लिया था जिसके बारे में जानने में आपमें से किसी की दिलचस्पी नहीं है।
प्रश्न : प्रधान मंत्री द्वारा कब तक जापान का दौरा किए जाने की संभावना है ॽ और क्या हम जापान सरकार के साथ रक्षा-संबंधी गठजोड़ों के बारे में सुनेंगेॽ
सरकारी प्रवक्ता : हमारा जापान के साथ करार है जिसमें हम वार्षिक शिखर-सम्मेलन करते हैं। आप अवगत हैं कि प्रधान मंत्री ने पिछले साल वार्षिक समिट के लिए दौरा किया था। इसलिए, इस साल हम इस साल के उत्तरार्ध के दौरान जापान के
प्रधान मंत्री का स्वागत करने की उम्मीद कर रहे हैं।
प्रश्न : सर, ट्विटर अत्यन्त हाल का घटनाक्रम है लेकिन भूतकाल में कम्युनिकेशन के अन्य तौर-तरीके रहे हैं। क्या हमारे पास विदेश राज्य मंत्री का भूतकाल में पाकिस्तान उच्चायोग का विजिट करने के उपरांत चर्चा या ड्यूटी
की बात करने का कोई रिकार्ड हैॽ
सरकारी प्रवक्ता : श्रृंजॉय, यदि मेरे पास आपके सवाल का उत्तर होता तो मैं एक प्रवक्ता नहीं बल्कि एक पुरालेखपाल होता। यदि आप मुझे उसके रिकार्ड के बारे में पूछिएगा कि मैंने क्या ट्वीट किया है, मैंने जो कुल 7000 ट्वीट्स
किए हैं, उनका रिकार्ड मेरे पास नहीं है। इसलिए, कृपया मुझसे एक पुरालेखपाल होने की उम्मीद नहीं करिए। मैं एक राजनयिक हूँ। हम परिस्थितियों के प्रति, उनके सामने आने के हिसाब से रिस्पांड करते हैं।
प्रश्न : क्या राज्य मंत्री को सरकार द्वारा उनके ट्वीट्स के लिए फटकार लगाई गई हैॽ
सरकारी प्रवक्ता : आप क्या कह रहे हैं, मुझे उसके बारे में कोई आइडिया नहीं है।
प्रश्न : यह विदेश सचिव के सार्क देशों में विजिट के संबंध में है। क्या आप उसके नतीजों, विशेषकर पाकिस्तान और बांगलादेश में उनके समकक्षों के साथ उनकी बैठकों के संदर्भ में, के बारे में बताएंगेॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैं मानता हूँ कि विदेश सचिव का विजिट सार्क यात्रा के संदर्भ में था जिसका मतलब यह हुआ कि इंटरएक्शन्स का मुख्य फोकस प्रधान मंत्री के उन दूरदर्शीपरक प्रस्तावों को आगे ले जाना था जिसका काठमांडू समिट
के दौरान उनके बयान में प्रतिपादन किया गया था। इसलिए, उनमें से कुछेक विशिष्टताओं के बारे में काफी विचार-विमर्श किया गया। उदाहरण के लिए, सार्क उपग्रह। दूसरा उदाहरण वैक्सीन का है जिसकी पेशकश भारत ने की है। तीसरी बात दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय की है। यह सच
है कि जब विदेश सचिव इन देशों का दौरा करेंगे तो वे निश्चित रूप में द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे। राजनयिकों के रूप में हम अपने हितों को आगे ले जाने के लिए समय और स्थान का उपयोग करने के लिए हर एक मौके का स्वागत करते हैं। इसलिए, पाकिस्तान और बांगलादेश
के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई, उन द्विपक्षीय मुद्दों के सभी पहलुओं पर। वे कौन-कौन से मुद्दे थे हमने वे पब्लिक डोमेन में रख दिए हैं। पाकिस्तानी पक्ष ने भी उस पर अपनी राय रखी है।
बांगलादेश के साथ आप जानते हैं कि आज भारत और बांगलादेश के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। हम बांगलादेश के साथ कई मुद्दों, जिनमें नदियों के जल, सीमा प्रबंधन, आर्थिक संबंध, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में वैश्विक सहयोग, डेवलपमेंट पार्टनरशिप शामिल हैं, पर काम कर रहे हैं।
इन सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया।
प्रश्न : क्या किसी भी प्वाइंट पर विदेश राज्य मंत्री ने मंत्रालय को इस बात से अवगत कराया कि वे पाकिस्तान राष्ट्रीय दिवस समारोह में भाग नहीं लेना चाहते हैंॽ
सरकारी प्रवक्ता : मैं मानता हूँ कि उन्होंने इस सवाल का स्वयं उत्तर दे दिया है। उन्होंने इसका कल उत्तर दे दिया है। उन्होंने यह कहा कि यह सरकार का निर्णय था। बस इतनी सी बात है।
प्रश्न : अकबर, पिछली ब्रीफिंग में आपने कहा था कि भारत और यूएसए ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर न्यूक्लीयर डील के क्रियान्वयन की बाधाओं को दूर कर लिया है। आपनेक कहा था कि न्यूक्लीयर इंश्योरेंस पूल पर एक कार्यशाला भी
आयोजित की गई थी। क्या हम जान सकते हैं कि जिन कंपनियों ने कार्यशाला में भाग लिया उनका क्या रिस्पांस क्या थाॽ उन्होंने यह आइडिया कितना व्यवहार्य पायाॽ
सरकारी प्रवक्ता : कार्यशाला बीमा दृष्टिकोण की रूपरेखाओं और विधिक अभिविन्यासों को स्पष्ट करने की कोशिश करने से संबंधित है। चूंकि, यह भारत के लिए पहला है इसलिए, हमने यह किया कि हम बाहर से ऐसे लोगों को लेकर आए जिनका इसमें
अनुभव है जैसे फ्रांसिसी। और हमारे पर जीआईसी द्वारा रेखांकित भारतीय दृष्टिकोण भी है ताकि हर कोई यह समझ ले कि हम सामान्य रूप से स्वीकार्य अंतर्राष्ट्रीय परिपाटी के अनुसार क्या कर रहे हैंॽ
एक बार ऐसा कर दिए जाने पर, अगला कदम उठाना कंपनियों पर है कि वे एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें। मैंने आपको बताया कि 100 से अधिक कंपनियों ने उसमें भाग लिया। हमारी समझ यह है कि हम आगे बढ़ चुके हैं। अब ऐसी कोई नीतिगत बाधाएं नहीं हैं जो भारत और बाकी दुनिया, जिसमें
यूनाइटेड स्टेट्स शामिल है, के बीच आण्विक सहयोग में अवरोध उत्पन्न करे। अब, इन बातों की संभवता, वाणिज्यिक व्यवहार्यता का कंपनियों द्वारा स्वयं निराकरण किया जाएगा। नीतिगत बाधाएं समाप्त हो चुकी हैं।
प्रश्न : भारत और चीन ने सीमा वार्ताओं के 18वें दौर को पूरा किया है और मि. यांग जिएची प्रधान मंत्री मोदी से भी मिले। हमने देखा है कि चीनी नेतृत्व के पिछले दो दौरों के दौरान सीमा पर दरअसल तनातनी रही। इसलिए, क्या सीमा वार्ताओं
के 18वें दौर से भारत में इस बार मि. मोदी के चीन विजिट की दृष्टि से सीमा की स्थिति के संदर्भ में भरोसा जगा है।
सरकारी प्रवक्ता : आप जानते हैं कि हमने जो बयान कल जारी किया था उसमें हमने यह जरूर दर्शाया था कि सीमा पर शांति और स्थिरता का हमारे लिए बहुत अधिक महत्व है। यह चीनी पक्ष के साथ हमारी साझी समझ है। और अच्छे पार्टनरों के रूप
में हम इस पर चीनियों के साथ विश्वास और समझ के आधार पर काम कर रहे हैं।
प्रश्न : 18 दिसंबर को श्रीमती स्वराज ने संसद में इटली के मैरिनों के मुद्दे पर आपसी सहमति के आधार पर समाधान किए जाने के संबंध में इटली से मिले प्रस्ताव के बारे में बताया। अब, तीन महीने बीत चुके हैं और मैं यह जानना चाहूँगा
कि क्या इटली से मिले प्रस्ताव के संबंध में विनिर्दिष्ट मुद्दे के बारे में कोई प्रगति हुई हैॽ
सरकारी प्रवक्ता : चूंकि सचिव (पश्चिम), जो ये मामले हैंडल करते हैं, यहां पर हैं इसलिए, मैं उनसे इस पर प्रतिक्रिया देने का अनुरोध करूंगा।
सचिव (पश्चिम) : आप सही हैं। यह प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। वर्तमान में, इसकी हमारे विधिक विशेषज्ञों द्वारा जांच की जा रही है।
प्रश्न : भारत-चीन सीमा वार्ताओं पर केवल एक फॉलो-अप। बयान में कहा गया था कि भारत और चीन ने सीमावर्ती बलों के बीच संपर्क बढ़ाए जाने की मांग की। क्या आप इसका थोड़ा अधिक ब्यौरा दे सकते हैं कि ये किस-किस प्रकार के संपर्क
होंगेॽ
सरकारी प्रवक्ता : एक एग्रीमेंट है जिसमें निर्धारित किया गया है कि कौन-कौन से तंत्र होंगे, कौन-कौन से स्थान होंगे, कौन-कौन से स्तरों पर वे मिलेंगे और कितनी बारम्बारता के साथ। प्रयास यह है कि उन – स्तरों, बारम्बारता,
स्थानों का विस्तार किया जाए।
यदि आपके पास और कोई प्रश्न नहीं है तो आप सभी का यहां होने के लिए धन्यवाद।
(समाप्त)